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Abhinav Imroz April 2023 (Special Issue on Dr. Kamla Dutt, Georgia, USA )

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********************************************************************************** उपन्यास अंश उस सप्ताह हम उन्मादित रहे  उस सप्ताह हम इस विश्वास में रहे कि सभी कुछ ज्यों का त्यों रहेगा हे ब्रह्माण्ड, मेरा विश्वास उसे ले लगभग खत्म। शायद उसने मुझे नहीं चाहा, मुझे नहीं सराहा। यह जो उसका मेरी ओर आकर्षण, मेरा उसकी ओर, एक मिथ्या भर क्षण, एक और खोया मैंने, वो आकर्षण। एक जिज्ञासा भर एक कम उम्र वाले व्यक्ति की ओर खत्म हो गई प्रोत्साहन न पा, मेरा बोझा क्या ठीक, क्या नहीं ठीक, कितना बढ़ावा न दूं, क्या वाजिब क्या नावाजिब। हे ब्रह्माण्ड ! मैं तो जीवन भर यूं ही भटकती रही कोई थोड़ा-सा इशारा तो दो, छोटा-सा संकेत। कुछ ज्यादा नहीं, बस नन्हा-सा संकेत, बड़ा नहीं बस छोटा-सा। हे ब्रह्माण्ड ! मैं अभी स्वपन ले सकती हूं न ब्रह्माण्ड मैं जानती हूं, समझती भी हूं कि जीवन मे नफा-नुकसान तो चलता रहता है लेना-देना भी। नफा होगा तो नुकसान भी होगा। तुम जानते हो ब्रह्माण्ड, मुझे क्या चाहिये? एक छोटा-सा अपनापन उसकी ओर से एक छोटा-सा उसकी ओर से नहीं तो उन पत्रिकाओं की ओर से जहां मैंने अपनी कहानियां भेजी, स्वीकृति। नकारना। कुछ