Abhinav Imroz July 2024
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********************************************************************************** कविताएँ रश्मि रमानी, इंदौर, मो. 9827261567 पक्की ख़बर जब सामने दिख रही हो सिर्फ़ तबाही तब नहीं सोचा जा सकता तितलियों, फूलों और परिन्दों के बारे में एक-एक करके जब मरते हैं सैनिक पल-पल गुज़रता है इस आशंका में कि, मौत यहीं आसपास तो नहीं ऐसे में क्या बात की जा सकती है अधूरे कामों को पूरा करने की या कुछ नया शुरू करने की इन्हीं दिनों में चीज़ें नहीं होती वैसी जैसा कि उन्हें होना चाहिए रोज़ की तरह राष्ट्रीय त्यौहारों पर बजते सलामी बिगुल सुनकर होती है खुशी और गर्व आमतौर पर किन्तु युद्ध के दिनों में इनका बजना भर देता है दिलों में दहशत हर सायरन रोक देता है कईयों की धड़कन भयभीत लोगों के मुँह से फूटते हैं प्रार्थना के शब्द जाने-अनजाने हवा में तैरती हैं कुछ अस्फुट ध्वनियाँ कोई भी नहीं होता आश्वस्त सिर्फ़ बातों और सूचनाओं से हरेक को चाहिए पक्की ख़बर हाँ, अपनों के सही सलामत होने की पक्की ख़बर 'सही-सलामत' और 'पक्की खबर' यही वे शब्द हैं जो बेहद महत्वपूर्ण होते हैं युद्ध के दिनों में हार-