अभिनव इमरोज़ सितंबर 2023

गीत श्री सूर्य प्रकाश मिश्र, वाराणसी, मो. 09839888743 गुमसुम चाँद गुमसुम सा गलने लगा चाँद ना जाने किसकी नजर लगी अब रहने लगी चाँदनी भी कुछ कुछ उदास खोई-खोई कितना समझाया लोगों ने लगवा लो काजल का टीका लेकिन बातों का ना सुनना जंजाल बन गया है जी का है अच्छा भला देखने में पर रौनक सारी उतर गई कोई कहता संजोग इसे कोई कहता है प्रेम रोग कोई कहता दीवाने को है सता रहा कोई वियोग जितने मुँह हैं उतनी बातें जाने इनमें है कौन सही ऐ हवा जरा कहना उनसे बे-वजह बात बढ़ जायेगी इस चाँद की तरह उनको भी कोई भी नजर लग जायेगी परदा कर लें मत रहा करें नन्हें से तिल के भरोसे ही दुल्हन रात आ रही रात धीरे-धीरे घूँघट में हँसता चाँद लिये अपलक निहारता नील गगन नाजुक सी शर्मीली दुल्हन मिल गई नजर शबनमी हुआ इस दुल्हन का कोरा यौवन ये नूर नजारों ने देखा मदहोश हो गये बिना पिये जो थे उदास रूठे-रूठे सूरज से जिनके दिल टूटे खुश हैं गुलमोहर अमलतास खुश लगते इमली के बूटे इस नई नवेली दुल्हन के स्वागत में सारे बिछे हुए जब से पूनम का चाँद दिखा खिलखिला उठी मखमली हवा जलवों से ऐसी दुल्हन के सारा मौसम