भूगोल
इन्सान
पढ़ रहा है भूगोल
बना रहा है ख़याली नक्शे
कोरे कागजों पर
खींच रहा है बेजान लकीरें
पहाड़ों और नदियों की
खूबसूरती खत्म करके
कभी बारूद से उड़ा देता है
पहाड़ों का वजूद
तो
कभी अनादिकाल से
हवा के संगीत पर थिरकती नदी के बहाब को
दे देता है दुःखदायी मोड़
शायद भूगोल के आधार पर ही हुए हैं
देशों के विभाजन
पहाड़ों के टुकड़े
और नदी-जल के बँटवारे
अफ़सोस!
कभी किसी ने सोचा है
सब की है ये सारी धरती
हाथी से लेकर चींटी तक
हर एक को जिसकी जरूरत है।