गजलें

उम्र भर ना हुआ मन बैरागी एक


धोका ही था मन बैरागी


धूप में जलते रहे नंगे बदन


साये-साये चला मन बैरागी


शहर में उनके था कुछ ऐसा तिलिस्म


गया खिंचता हुआ मन बैरागी


दुनिया थी और तमाशा उसका


मैं था और था मेरा मन बैरागी


खेलते देखे जो नाती-पोते


देखता रह गया मन बैरागी


उम्र के साथ ये क्या और भी अब


मनचला हो गया मन बैरागी।


है जरूरी कि रहे जग में भी तू


और जग से तेरा मन बैरागी


पाई है किसने सलिल इससे निजात


हुआ किसका भला मन बैरागी



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