गजलें

हाल अपना सुना दिया मैंने


गुम हवा में उड़ा दिया मैंने


लोग भटके हुये ये जंगल में


एक दीपक जला दिया मैंने


तुम से मिल कर सकून मिलता है


फोन पर ये बता दिया मैंने


एक वो ही पसंद थी मुझको


साथ उसका निभा दिया मैंने


खूबसूरत बला की हो फिर भी


नागनी हो जता दिया मैंने


जब से जल्वा तुम्हारा देखा है


तुम पे खुद को लुटा दिया मैंने


 


पराई आग में अक्सर बहुत से लोग जलते हैं


कहो कैसा ये रिश्ता है के पत्थर भी पिघलते हैं


शजर बूढ़ा भी हो जाए तो फिर भी काम आता है


दुआ देगा परिन्दों को यहां बस ख़ाब पलते हैं।


मुहब्बत में नफा नुकसान तो होती ही रहता है


समन्द्र में कभी लहरें कभ तूफां मचलते हैं।


यकीं किस पर करें यारों बड़ा मुश्किल हुआ अब तो


ये कैसे लोग हैं हर पल कई चेहरे बदलते हैं


सभी अपनी जगह बहतर शिवाला हो भले मस्जिद


अगर दिल में अकीदत हो तो पत्थर भी पिघलते हैं


गिरा दीवारं नफरत की ये झगड़े ख़त्म हों सारें


रिफाकत हो तो सहरा में भी ‘सागर फूल खिलते हैं।


 



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