गजलें
दिन भर की थकन अंत में आराम हो गई
रुक सी गई है यात्रा अब शाम हो गई
देखा न किसी ने मेरे कामों का उजाला
थोड़ी सी चूक ख्यात सरेआम हो गई
वह साथ-साथ चलता रहा बन के मेरा दोस्त
की उसने ख़ता जब भी मेरे नाम हो गई
झरते रहे जवान से उपदेश खोखले
आवाज़ दिल से निकली तो पैगाम हो गई
करता वो खुशामद रहा तो वाह वाह थी
पर सच की मेरा बात तो इलज़ाम हो गई
इक अजनबी से प्यारी मुलाकात हो गई
यात्रा में मेरे वास्ते सौगात हो गई
आँखों से मिलीं आँखें हँसी से हँसी मिली
हम चुप थे मगर जाने क्या क्या बात हो गई
अपनों की भीड़ में तो रही जेठ की तपन
लगता है आज बावरी बरसात हो गई
हम हो गये सफ़र के किसी मोड़ पर विदा
संगीत से सपनों के मुखर रात हो गई
तुम पूछ प्रयोजन रहे किन्तु मैंने तो योंही याद किया
जब तब कर तुमको याद सखे मैंने है दिल को शाद किया।
कोई न रहा जब साथ और सालने लग गई तनहाई
कविताओं के स्वर में मैंने तब खुद से ही संवाद किया
खुद को खोजते हुए खुद में मेरी लंबी यात्रा गुज़री
कहता मुझसे पैसा हँस कर तूने जीवन बरबाद किया
वे खुश हैं डंका है बज रहा राहों में उनकी शोहरत का
मैं खुश हूँ मेरे आँगन में लघु पंछी ने कल नाद किया
उनका पुरुषार्थ रहा पिंजड़ों में करना कैद परिंदों को
थी मेरे मन की कमजोरी इसको उसको आज़ाद किया