मशाल क्रांति की....
रहे सदा प्रयास ये, मशाल क्रांति की जले ।
बयार में सुगंध है, नया - नया विहान है।
प्रफुल्य सी धरा लगे, नवीन गीत गान है।
सुदूर पूर्व देश से , दिनेश चक्षु खोलते।
हुआ विहान जान के, विहंग पंख तोलते।
विदा निशा हुई तभी प्रभात को लगा गले ।
रहे सदा प्रयास ये मशाल क्रांति की जले।
कपोत श्वेत रंग के, सियासते उड़ा रहीं ।
अखंड सत्य धर्म की जमीन को छुड़ा रही।
असंख्य लाल मात के, मिटे मिली स्वतंत्रता।
शहीद का लहू पड़ा जमीन पे पुकारता ।
अमीर क्या गरीब क्या, सभी उठो चलो चले।
रहे सदा प्रयास ये मशाल क्रांति की जले ।
सुषुप्त राष्ट्र –भक्ति का पड़ा हुआ जमीर है।
प्रपंच पाप जो रचे, वही यहां अमीर है।
निदान भूख रोग का अबूझ है व गूढ़ है।
यकीन आप मानिए स्वतंत्रता अपूर्ण है।
कभी किसी गरीब का, न सूर्य आस का ढले ।
रहे सदा प्रयास ये मशाल क्रांति की जले।
मिटे न आन -- बान ये, दहाड़ते चले चलो।
कि धर्म जाति की जड़े, उखाड़ते चले चलो।
पढ़े सभी बढ़े सभी , ध्वजा कभी झुके नही।
करो कृपा यही प्रभू , कि कारवां रुके नही।
न ईस्ट इंडिया पुनः , समाज को कभी छले ।
रहे सदा प्रयास ये मशाल क्रांति की जले ।