मीनाकुमारी की अमर कहानी
एक जीवनीमूलक कविता
नाम यही शीर्षक बना सोहराब मोदी की फिल्म का बेहतरीन
ओ हसीन ! माथा चांद-सा, बानो ओ महजबीन !
दिलीप यदि "ट्रेजेडी “के "किंग ", तो तुम रहीं क्वीन !
पृथ्वी थ्येटर में हारमोनियम के वादक
पिता तुम्हारे अलीबखुश संगीत शिक्षक!
माता नर्तकी इक्बाल बेगम,
जो पहले थीं ईसाई बंगालन, नाम प्रभावती !
नानी थीं हेमसुन्दरी ठाकुर,
मरने पर पति बिल के जिसको
निकाल दिया था टैगोर के परिवार ने छीनकर नाम
बाहर घर से, और बेदखल करके जायदाद से !
हे मीना ! पैदा होने पर पिता दे न पाए फीस डॉक्टर की
छोड़ आए थे यतीमखाने ।
बाद में जोर मारा ममता ने, तो घर लौटा भी लाए।
सन् 1939, निर्देशक विजय भट्ट ने अभिनय पहचाना
फिल्म “फर्जन्दे-वतन "में नाम रखा बेबी मीना!
कमाल अमरोही ने एक्टिंग तुम्हारी मानी,
और की बड़ी अदाकारा बनने की भविष्यवाणी !
1950, फिल्म "श्रीगणेश महिमा ", बनी हीरोइन पहली बार !
1952 आया, फिल्म "बैजूबावरा "ने चोटी पर पहुँचाया !
साल वही, तिथि थी माह फरवरी की 15
15 ही साल बड़े कमाल अमरोही से हुआ निकाह !
जिनका तीसरा था वह ब्याह !
सय्यद जाति तुम्हारी के कारण दिया पति ने
कभी ना सुख सन्तान का आह !
सौत के बेटे ताजदार को लिया गोद,
वाह ! दी ममता की छाँह !
1953, फिल्म “दायरा “में जवान बीवी की भूमिका निभाई
अधेड़ खाविन्द से सन्तुष्टि काम-भाव की न हुई,
तो हुईं तपेदिक की रोगिणी !
यह कैसी होनी कि स्वयं तुम्हें भी हो गई टी.बी. !
1962 फिल्म "साहब, बीबी और गुलाम "गुरुदत्त की
बनीं तुम छोटी बहू सत्ती एक ऐयाश पति की !
सुधारना तो क्या था उसे,
तुमने आप ही ओढ़ ली बीमारी शराब पीने की !
थे तीन "फिल्मफेयर पुरस्कार !
आया 1964 लाया तुम्हारे लिए तलाक !
1966 "फूल और पत्थर "में साथ तुम्हारे
अदाकारी करके बन गया
अपने समय का साधारण
अभिनेता धर्मेन्द्र भी असाधारण !
बनी 16 साल में फिल्म "पाकीजा ",
निर्देशक के. आसिफ की अथाह मेहनत का नतीजा !
4 फरवरी 1972, प्रीमियर के दिन मौजूद तुम वहाँ
शुरु में वह फिल्म थी "फ्लॉप ", देख सभी कलाकार थक-हारे
मौत तुम्हारी ने ही किया किरिश्मा ।
रिकार्ड तोड़ दिए सारे-के-सारे !
थी फिल्म की एक पंक्ति-
“जख्मे जिगर देखेंगे ', 'खूने-जिगर देखेंगे
और रोग भी निकला जिगर का ही तुम्हें आह !
थामी मौत ने बाँह तुम्हारी, 1972, 31 मार्च को बाँह !
पैसे न थे नर्सिंग होम का बिल तक भरने को !
त्रासदी की रानी की यह कैसी थी त्रासदी !
विस्मयजनक थीं लाइनें तुम्हारी ही फिल्मी
“ये चिराग बुझ रहे हैं मेरे साथ जलते-जलते.."
तुम्हारी इच्छा के अनुसार ही।
कब्र पर ये अलफाज नक्श करवाए गए थे :-
"इसने जिन्दगी खत्म की, टूटी बाँह, दिल और गीत के साथ, पर
रहा न कोई भी अफसोस उम्र भर ।”
पति से तलाक के वक्त शेर, यह उसी को सम्बोधित था
तलाक तो दे रहे हो नज़रे–कहर के साथ,
जवानी भी मेरी लौटा दो मेहर के साथ ! "