Abhinav Imroz, April 2012

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सम्पादकीय


 


                  नई मंजिल, नई राहें, नया है मेहवां अपना


         'अभिनव इमरोज़'= नया आज का दिन, यूनानी दार्शनिक हैराक्लाईटस का कहना है कि आप एक ही नदी में दोबारा पांव नहीं डाल सकते-दूसरी बार पांव डालने तक वह नदी भी बदल चुकी होगी और आप भी। नदी की भांति हमारा भी हर दिन नया होता है। हर रोज नए सवाल, नए इम्तिहान और नए जबाव ढूंढने की कोशिश जारी रहती है। हर नए दिन में सफलताएँ भी और असफलताएँ भी नई-नई होती हैं। नई मंज़िल नई राहें और नए-नए मेहरवां तलाशने का सिलसिला निरंतर चलता रहता है। कई आज के बिछुड़े अगले आज में मिल जाएंगे, यह आशा भीबनी रहती हैं। अभिनव इमरोज़ की सरिता भी प्रकृति की रोज़ नए होने के स्वभाव को साथ लेकर निकली है-इस का हर अंक नए-नए प्रतिभाशाली लेखकों और कलाकारों से हमारा परिचय कराने में प्रयत्नशील रहेगा।


          अभिनव इमरोज़ का सफर शुरु हो चुका है। इसे नए-नए प्रतिभाशाली लेखकों और प्रबुद्ध पाठकों के रुप में नए-नए हमसफर मिलेंगे। इसे दोनों की जरुरत है और इन दोनों के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए सलाहकारों का मार्गदर्शन भी चाहिए। हम इस छोटे से जीवन को भरपूर जी सकते हैं बशर्ते हम अपनी संकल्प शक्ति से अंतर्निहित शक्तियों का शत् प्रतिशत इस्तेमाल करें।


           आओं-परस्पर संवाद से आगे बढ़ें और नए आज के दिन का स्वागत करें। यह तो आप मानेंगे ही कि प्रोत्साहन संजीवनी है, लेकिन यह उन्हीं को अनुप्राणित करती है जहां आत्मविकास, महत्वाकांक्षा और जिज्ञासा का रुधिर नसों में बह रहा हो। मुर्दो (प्रतीक) में भी जीवन डाला जा सकता है बशर्ते जीने, जीतने और जूझने की प्रबल इच्छाशक्ति मन में स्थित हो। आप शायद सहमत हों कि कुछ तो हम प्रोत्साहन पाने के लिए करते हैं और कुछ प्रोत्साहन पा कर करते हैं। अगर प्रोत्साहन पाने के लिए किए गए प्रयास का परिणाम उम्मीद से कम हो तो हम निराश हो जाते हैं और अगर प्रोत्साहन पा कर की गई कोशिश नकाम भी हो जाए तो भी हम हताष नहीं होते अपितु चुनौति को स्वीकार कर दुगुने आक्रमक जोश से जूझ पड़ते हैं।


            आओ अपनी सृजनशीलता को पहचानें, पढ़े, पचाएं और लिखें। किसी प्रबुद्ध लेखक से मार्गदर्शन पाएं और साकारात्मक संवाद से जीवन का उत्सव मनाएँ, अपनी अभिव्यक्ति को हर नए 'आज' में परिष्कृत होने का अवसर दें, साहित्य की विविध विधाओं से कुछ भी चुन लो साहित्य सागर के किनारे आई किसी भी र कल्पना की पतवार बना अपनी कहानी और कविता को दूर तक ले जा सकते हो। किसी दूसरी भाषा की रचना को अनुदित भी कर सकते हो। किसी रोचक हादसे को भी पाठकों से सांझा कर सकते हो। पहल तो केवल डुबकी से करनी होगी-हौंसले खुद-ब-खुद बुलंन्द हो जाएंगे और पार पा जाना सरल होता जाएगा। अश्क साहब के शब्दों में,  


अरे डूबना सागर का यदि,


पा जाना है पार


तो फिर व्यर्थ प्रतिक्षा किसकी,


कैसा सोच विचार,


बहने दे, नौका बहने दे


लहरों को अपनी कहने दे।


 



 


 


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