परिंदा
परिंदा
चुपके से आ बैठा
डाल पर
एक परिंदा
एक हिलोर में रोमांचित डाल
उड़ने लगीं
आसमान में
परिदें के साथ
डाल में परिंदा कि परिंदे में डाल
पता ही न चला
और मैं लौट आया
अन्त में
आरंभ में
डाल पर परिंदे की तरह
और उड़ता चला गया
अनन्त में !
एक सवाल
‘एक सवाल’
‘हाँ, बस एक सवाल’
मृत्यु की आँखों में आँखें डालते हुए मैंने कहा-
‘क्या है वह जो तुम्हारा हो जाने के बाद भी अमर बनाता है?’
‘अरे, वही जो डरता नहीं
देता है मुझे चुनौती
मेरी आँखों में बैखौफ झांकता है
मेरी तरह देख हँसता है
और भगत सिंह हो जाता है’
मैंने देखा-
कहीं नहीं है डर के साये
मौत ज़िन्दगी-सी मोहक है
और मैं उस के आर-पार झाँक रहा हूँ