माहिमा छन्द

माहिमा छन्द


सुनकर गुनकर कहना


अंतस की बातें


अंतस ही में रखना


 


कुछ कह ले कुछ सुन ले


फिर कब मिलणा हो


मन की बातें गुन ले


 


अगली पिछली बातें


मुश्किल लगती हैं।


अब पूनम की रातें


 


कल क्या होगा तुम बिन


शब होगी कातिल


फिर पागल होगा दिन


 


मिलते - जुलते रहना


फूलों के जैसे


हँसते खिलते रहना


 


किस जा किस दर पर हूँ


कुछ अहसास नहीं


बाहर या घर पर हैं।


 


खुशियों की कतारें हैं


दीद हुयी है क्या


हर सिम्त बहारें हैं।


 


कह कर फिर जाना है


फितरत में उनकी


वादा न निभाना है।


 


जिस जा तू रहता है


आठों याम वहाँ


सुख झर झर झरता है।


 


राह पर बैठे हैं हम


अब आ भी जाओ


वरना जाता है दम


 


तू है तो है जीवन


मौसम खुशियों का


फूलों से भरा उपवन


 


तू जब मिल जाता है


मन खुशियों वाली


मंजिल को पाता है।


आगाज तुम्हीं आखिर


क्या है कैसे है


सब तुम पर है जाहिर


 


कुछ तो बोलो हमदम


सुर्ख हुये आरिज़


क्यों आँख हुयी है नम


 


दिल में रहना हरदम


तुमसे मिलता है


गोया आबे-ज़मज़म


 



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