अतीतजीवी
अतीतजीवी
नदी पार कर उसे जाना था दूसरे किनारे
उसके पास नाव थी मिट्टी की
जो कभी उसने ही बनाई थी
उसे नहीं पता था मिट्टी का गुणधर्म
उसी नाव में बैठ कर आज पानी में उतर गया
उसकी सांसे अभी तक अतीत में धड़कती हैं
वह रोता है
और गिरे हुए आँसुओं की नमी से
आने वाले कल की पगडंडी पर उगाता है फिसलन
बेज़रूरत जगाता है नींद में गया हुआ इतिहास
वह खंडहरों के अँधेरों में घुल गया है इस तरह
कि, चिन्गारी भर उजाले से भी
अब आँखें चुंधियाती हैं
भंवर में फंसा हुआ आदमी
किसी तरह तैर कर
पार कर तो गया नदी,
उस किनारे उतर कर
मिट्टी ढूँढ रहा है
उसे अगली यात्रा के लिए बनानी है नई नाव