लघुकथा


गुनाह/प्रार्थना


आज फिर उस पहली मंजिल की बालकनी के नीचे से गुजरते हुए मानवी ने तिरछी नजरों से उस ओर देखा; फिर नजरें और सर नीचा कर तेज कदमों से आगे बढ़ गई। कहीं मिसेज भल्ला की तरसती ,उदास आँखों से नजर न मिल जाए। मिसेज भल्ला कोई छः - सात साल पहले , ढलती उम्र की बीमार काया किसी तरह सम्हालती अपने बीमार पति के साथ इस सोसायटी में रहने आईं थीं । उस समय मानवी भी जीवन के साठ दशक पार कर शारीरिक समस्याओं से रूबरू हो चली थी। नियमित जीवन की आदतों के कारण यह नजर नहीं आ पाता था। शुरू- शुरू में मानसी मिसेज भल्ला के घर गई भी, पर वह उनके साथ कुछ सहज हो अधिक न बैठ पाई। मानवी को उनका व्यवहार कुछ असामान्य व बाँधने वाला लगा। घर आए लोगों को रोके रखने की जिद और जकड़ कर हाथ पकड़े रहना सामने वालों को असहज कर देने वाले थे। मानवी समझती तो थी कि यह उनके एकाकी जीवन से किसी प्रकार उबरने की नाकाम कोशिश ही है!! फिर भी उस माहौल में सहज होना मुश्किल था। वहाँ से बाहर निकलने की छटपटाहट मानवी को अनबूझ अपराध -भाव से भर देती। वह मिसेज भल्ला की हालत में भविष्य की छाया देखती! वृध्दावस्था का अकेलापन उसे डराता। अक्सर उनकी बालकनी के नीचे से गुजरते समय यह बोध उसे कचोटता। वह हर बार मन को दिलासा देती किसी रोज आऊँगी, पर वह यह भी कहीं जानती थी कि ऐसा कभी नहीं होगा!! मानवी ने आज भी तेजी से क़दम बढ़ाये ईश्वर से मन ही मन प्रार्थना की -‘‘ मुझे इस गुनाह से बख़्शना !!! ‘


कौन देस ?!


मुहल्ले के इकलौते रेडियो को घेरे सभी आदमी सांसें रोके ख़बर सुन रहे थे। औरतें अपने-अपने घरों में बैठी कुछ उत्सुक, कुछ सहमी हुई प्रार्थना कर रहीं थीं; उनके गाँव, मुहल्ले, घर पर कहर न बरपे !! चारों तरफ एक ख़ौफनाक सहमा सा माहौल सबको जकड़े हुए था! रह - रह कर अल्लाह -हु- अकबर या हर-हर महादेव की हुँकार सुनाई देती थी! एक मुल्क नहीं एक मुल्क के लोगों के भाग्य का फैसला होने को था!! जैसे ही रेडियो पर बँटवारे की घोषणा हुई सारा माहौल एक ख़ौफनाक क़त्लेआम में तब्दील हो गया!! जाने कैसे इतनी हैवानियत लोगों पर तारी हो गई थी! सभी अपनी जान बचा कर अपने-अपने परिवार वालों को समेट भागमभाग करने लगे। ऐसे में संतो अपने परिवार से बिछुड़ , चारों ओर उन्हें तलाशती। फटी फटी आँखों से देखती क़ाफिले की भीड़ में धक्के खाती चली जा रही थी , न जाने किस ओर!! ऐसे में उसकी निगाह जमीन पर खून से लथपथ अपनी मृत माँ के आँचल में लिपटे शिशु पर पड़ी ! उसने बमुश्किल खुद को सम्हालते हुए उसे उठा लिया।


उस ख़ौफनाक मंजर में से निकले संतों को आज दस दिन हो गये हैं। वह नन्हे शिशु की तरह ही जन्मे नये भारत में एक रिफयुजी कैम्प में बैठी उस शिशु को लोरी सुना रही है - ‘‘ कौन है रे बालक देस तुम्हारा , कौन तुम्हारा ग्राम है ?!! ‘‘ साथ ही मन ही मन सोच रही है -‘‘ जन्म भूमि को माता बल्कि उससे भी बढ़कर स्वर्ग का दर्जा दिया जाता है। हमारी जन्म भूमि कौन सा मुल्क होगी ?! सरहद के उस पार या इस पार ?!!


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