माँ कभी नहीं मरती

माँ कभी नहीं मरती


वो जब भी कहीं जाता तो रास्ते में अपनी मौसी से जरुर मिलता, यूँ भी मौसी मां समान ही होती है। उसके लिये दो शब्दों का छोटा सा नाम कितने ही अर्थ रखता था। उसके खुद के मां बाप अब दुनिया में नहीं थे। मौसी बड़ी होने के कारण उससे बहुत स्नेह रखती थीं। घर पहुंचने पर उसे यूँ लगता कि मौसी उसी का इन्तजार कर रही थी। वे उसके घर का सुख-दुःख पूछतीं। कितनी ही देर उसकी पत्नी और बच्चों के बारें में बातें करतीं। यूँ वो ममता की एक मूर्ति थीं। वे हरेक रिश्तेदार के दुख-सुख में खड़ी होतीं। इतनी बड़ी कोठी में लाजो मौसी का एक सजा हुआ कमरा था जिसमें एक तरफ दीवान तो दूसरी तरफ सोफा सेट आये-गये मेहमानों के लिये था। खुद मौसी एक कुर्सी पर बैठी रहतीं और उसके आगे एक मेज रखा रहता जिस पर कितना ही कुछ बिस्किट, मठ्ठियाँ, नमकीन और बर्फी प्लास्टिक के डिब्बों में खाने के लिये पड़ा रहता। मगर उसके लिये मौसी ख़ास तौर पर ड्राई फूट मंगवातीं। चाय की केतली भी मेज पर पहले ही रखी रहती मानो घर में कोई मेहमान बस आने ही वाला हो, वरना हमेशा ही उसमें गर्म पानी रखा रहता।


गली-मुहल्ले वालों में से कोई न कोई उन के पास आ बैठता। कुछ तो उनकी नेक-नीयत का नाजायज फायदा भी उठाते थे। कभी किसी की जान-पहचान का दूर-नजदीक का दोस्त-रिश्तेदार आता तो वे सीधा उन्हें मौसी के यहां ले आते। लाजो मौसी बाकियों की तरह उनकी भी ख़ातिर करती, उन्हें चाय-नाश्ता करवाती। जाते हुए उन्हें दुआयें देती न थकती। उनके लिये परमात्मा से सौ-सौ मांगें मांगती। सारा आस-पड़ोस मौसी की प्रशंसा करता और हमेशा खुश हो कर जाता। कभी घर का कोई सदस्य थोड़ी-बहुत आपत्ति भी करता तो मौसी उसे ये कह के चुप करवाती कि अभी तुम्हारे पिता की पैन्शन मिल रही है, मैं तुम पर बोझ नहीं, तुमसे कभी कुछ मांगती नहीं। किसी को खिलाते-पिलाते कोई घटता नहीं। तुम क्यों टोकते हो मुझे? चाहे जो मर्जी करूं। ये सुनकर किसी की किन्तु-परन्तु करने की हिम्मत नहीं रहती थी।


इस बार मनजीत मौसी के यहां गया तो वे कहने लगीं - “बेटा, अकेले आये हो, विकी को भी ले आते। देर हुई उसे मिले हुए, तुम तो चलते-फिरते आ ही जाते हो। आगे से उसे लेकर ही आना।” उन्होंने अपने ट्रंक में से एक प्रिन्ट सूट निकाल कर देते हुए कहा कि विकी से कहना, सिलवा ले। तेरे लिये तो मैंने कुर्ता-पायजामा लिया है। मौसी बाजार जाती तो दूकान से पूरा थान ही खरीद लेती और आये-गये को उसी में से। निकाल कर दे देती। वे हमेशा यही कहती कि मेहमान तो ईश्वर-रूप होते हैं उनकी सेवा। तो इबादत है। मौसी लाजो का मायका भी बहुत बड़ा था, छः भाई और छः बहनें। भगवान की दया से लड़कियों वाला घर था और रौनक लगी रहती थी। घर में लड़कियों के काम बंटे हुए थे - कोई आटा गूंथने पर, कोई खाना पकाने पर तो कोई सारे परिवार को परोसने पर। कोई बर्तन मांजती तो कोई बर्तन सुखा कर तरतीब से लगा देती। पर मौसी लाजो घर का काम थोड़ा-बहुत ही करतीं। उनकी आवाज अच्छी थी और उनके पिता उनसे भजन ही सुनते थे। काम करने के लिये बाकी बहनें बहुत थीं। वे ब्याह कर आई भी अच्छे घर में और सबसे अधिक खुश थीं। उन दिनों में उनकी ससुराल ने उन पर 80 तोले सोना डाला था।


घर में कभी कोई खुशी या ब्याह होता तो लड़कियां बहुत रौनके लगातीं। छोटी जीतों और भोलां मौसी तो नाचते हुए घरती हिला देती थीं। वो नकलचियों के जैसे ऐसे स्वांग भरतीं कि देखने वाले के पेट में बल पड़ जाते। मौसा जी कहते रहते - “लड़कियों, अब बस करो। सुबह उठना भी है।” पर उनकी सुनता कौन था। मौसा जी हद से ज्यादा अच्छे थे, कभी किसी से भली-बुरी नहीं की। कभी किसी ने कुछ कह भी दिया तो आगे से कोई जवाब नहीं देते थे। उनमें पूरी सहनशीलता थी। एक बार मौसी लाजो ने सब्जी बनाई तो उसमें नमक डालना भूल गईं। मौसा जी खाना खा कर दफ्तर चले गये, पर कुछ भी कहा नहीं। बाद में पता लगने पर लाजो मौसी बहुत पछताईं। मौसी का एक और गुण था कि वे कई बीमारियों का ईलाज घरेलू टोटकों से कर लेती थीं। कभी किसी का पेट दुखा तो उसे कुआर गंदल में सुखाई हुई अजवायन दे दी तो उसे आराम आ गया। किसी की आंख, कान या घुटना दुखता तो वो उनकी दवाई लेने से ठीक हो जाता। वे सौंफ, अजवायन, मुलठ्ठी, हरड़, आंवला, लौंग को पीस कर कई दवाइयां बना कर रखतीं। उनके हाथों के बने हुए चूर्ण, चटनियां, आचार और मुरब्बे पड़ोस वाले और रिश्तेदार ले जाते। एक बार मनजीत का बुखार बिगड़ गया। उसकी छाती खड़कने लगी जैसे फेफड़ों पर कुछ जम गया हो। उसने कई डाक्टर बदले पर कुछ फर्क न हुआ। लाजो मौसी उसका हाल-चाल पूछने आईं। उन्होंने देसी घी में पाकिस्तानी नमक गर्म करके छाती की मालिश की। दो-तीन बार ऐसे ही मालिश करने पर मनजीत बिल्कुल ठीक हो गया। लाजो मौसी ने बताया कि बुखार के बाद हरारत हो जाती है और पाकिस्तानी नमक बरतने से फायदा होता है।


मौसी लाजो बड़ी मिलनसार और धार्मिक ख्यालों की थीं। किसी का दुख उनसे बर्दाश्त नहीं होता था। मुहल्ले में एक गरीब लड़की थी। बचपन में ही उसकी मां मर गई और बाप ने कहीं और शादी कर ली। किसी ने उन्हें बताया कि लड़की बहुत तंग रहती है। मौसी ने उसे अपने पास रख लिया। उसे अपनी बेटियों की तरह पाला, पढ़ाया-लिखाया और कभी किसी चीज की कमी नहीं आने दी। फिर उसकी शादी अपने हाथों से की। आज वो अच्छे घर में राज कर रही है। पता नहीं लाजो मौसी ने ऐसा परोपकार कितनों पर किया होगा।


इसी तरह मनजीत के किसी रिश्तेदार की लड़की की शादी थी। उससे जो बना, वो दे आया। अमृतसर से वापिस


जालन्धर आता हुआ वो लाजो मौसी के यहां रुका। उसे थका सा देखकर मौसी पूछने लगीं, “तू ठीक तो है? कहीं गया था या घर से ही आया


मौसी क्या बताऊं? हमारी एक लड़की के मां-बाप बड़े गरीब हैं। उन्होंने लड़की की शादी करनी है। पर दहेज देने के लिये उनके पास कुछ भी नहीं। चाहे लड़के वाले कहते ही हैं कि उन्हें कुछ नहीं चाहिए, फिर भी कुछ न कुछ तो देना ही पड़ता है। शादी में गिनती के दिन ही बचे हैं। अब उन्हें सोच लगी हुई है कि कैसे ये काम पूरा होगा रूपयों के बिना कैसे चलेगा।”


यह सुन लाजो मौसी कहने लगी, “बेटा, चिन्ता छोड़ दे। लड़की की मां को फोन कर और यहां बुला ले। तूने पहले क्यों नहीं बताया मुझे। मुझसे जितनी मदद बनी, मैं देंगी।” मौसी को सारी रात नींद नहीं आई। इधर-उधर करवटें बदलती वो उस गरीब लड़की के बारे में ही सोचती रहीं। मनजीत ने लड़की की मां को आने के लिये कह दिया था। पौ फटते ही लड़की की मां अपनी पड़ोसन को लेकर पहुंच गई थी। लाजो मौसी ने पहले उन्हें चाय-नाश्ता दिया फिर अपनी तरफ से सात सूट, एक घड़ी और ग्यारह सौ रूपये साथ में रख कर दिये। साथ ही कहा, “बेटी, कभी-कभी मुझे मिल जाया कर। मैं तुझे आने-जाने का किराया भी दे देंगी। लाजो मौसी ने तो लड़की के लिये पूरा दहेज ही तैयार कर दिया था। यह सब ले कर लड़की की मां का कुछ हौंसला बंधा और उसने लड़की को बड़ी इज्जत से घर से विदा किया।


एक दिन मनजीत को सन्देश आया कि लाजो मौसी बीमार हैं। वो उसी वक्त हस्पताल गया। वहां उन्हें ऐमरजेंसी में ऑक्सीजन लगी हुई थी। किसी को भीतर जाने की इजाजत नहीं थी। बाहरी शीशे से उसने देखा कि मौसी उधारे सांस ले रही थी। उनके सारे पारिवारिक मैंबर बड़े उदास बैठे थे। हस्पताल में उन्हें महीना तो हो गया था। कभी स्थिति में सुधार हो जाता तो कुछ आशा जग जाती। मौसी अपने को ठीक महसूस कर रही थीं तो उन्हें घर ले आये। अब वे बिल्कुल ठीक लगती थीं। पर कभी हालत बिगड़ती तो घर में ही आक्सीजन लगा देते। जब होश आता तो पहले ही की तरह आम बातें करने लग जातीं। मनजीत हाल-चाल पूछने आया तो कहने लगीं, “बेटा, यह कपड़ा घिस गया है, इसे तो एक दिन फटना ही है। तू दिल छोटा मत कर। तू जानता है कि मां कभी नहीं मरती। वो हमेशा अपने बच्चों के अंग-संग रहती है। सपने में अभी मेरी मां भी आई थी। कहती थी लाजो तैयार हो जा। मैं तुझे लेने आई हूँ पर मैं ही नहीं मानी। उसने मुझसे वादा किया है कि वो फिर मुझे लेने आयेगी।” मां को याद करते हुए उनकी आंखों में चमक सी आ गई थी।


लाजो मौसी बहुत कमजोर हो गयी थी। उनकी लड़कियों ने जैसे तन-मन से उनकी सेवा की, वह अपने में एक मिसाल थी। मौसी का इकलौता लड़का अमेरिका में रहता था। शायद वे उसी का इन्तजार कर रही थीं। यह बहुत बड़ी त्रासदी होनी थी अगर आखरी वक्त में उनका बेटा नहीं आता। मौसी ने उसे आंखें भर कर देखा और फिर आंखें मींच ली। जो भी उन्हें मिलने आया, लाजो ने आंखें नहीं खोलीं। चाहे उनकी बातों के लिये हो-हूँ करती रहीं। अब तो वो भी बंद हो गई थी। वे बाहर रह रहे अपने बेटे से बातें करना चाहती थीं, पर जुबान ने साथ नहीं दिया। लाजो कहती थी, “माँ फिर आयेगी।” इसलिए शायद वो सबसे बेफ्रिक हो कर अपनी मां का इन्तजार कर रही थीं या शायद ऊपर के लोक में उस रचयिता के साथ अभेद हो रहीं थीं।


डॉ. घर आया। उसने लाजो मौसी की नब्ज टटोली तो अपना सिर हिला दिया। उनकी रुह जहां से आई थी, वहीं चली गई। सब रिश्तेदार रो रहे थे। मनजीत पत्थर की मूर्ति बना मौसी की तरफ एक टक देख रहा था। अब कमरे में खाली कुर्सी पड़ी हुई थी। उसने उसे माथा नवाया और आंखों से फर-फर आंसू गिरने लगे।


“मैं तो अनाथ ही था। ये मां तूने किया। अब मैं किसे मां कहूँगा।” वो भरे परिवार में बैन कर रहा था। सब भाई-बहन उसे ढाढ़स दे रहे थे, पर वो चुप होने का नाम नहीं ले रहा था। उनसे एक घने बरगद की छांव हमेशा के लिये खो गई थी, जिसके तले इतना बड़ा परिवार आराम करता था। चाहे तपती लू चलती या बारिश-तूफान बरसते, मौसी लाजो सबको अपनी बाहों में छुपा कर बैठी थी। अगले दिन मनजीत को सपने में मौसी लाजो दिखाई दी, वे कह रही थीं, “पगले, तू क्यों रो रहा है। मैं तो तेरे साथ हूँ। मैं कभी दूर नहीं गई थी। तुझे यकीन नहीं आता था न। देख मेरी तरफ। यह सच है, मां कभी नहीं मरती।”


 


Popular posts from this blog

अभिशप्त कहानी

हिन्दी का वैश्विक महत्व

भारतीय साहित्य में अन्तर्निहित जीवन-मूल्य