वानर-वध विध्वंस (व्यंग्य लेख)

वानर-वध विध्वंस


त्रेता युग में रावण की बुराइयों को पराजित करने में वानर सेना की प्रमुख भूमिका रही थी। रावण विजय उपरान्त, श्री राम जब अयोध्या के सिंहासन पर पुनः आसीन हुए, तब वानर यूथाधिपति ने प्रभु से प्रार्थना की, “भगवन्! युद्ध समाप्त हो चुका है। माता जानकी आपके वामांग में सुशोभित हो आपके ऐश्वर्य को अलौकिक कर रही हैं। अब हमारे लिए क्या आदेश है?”


प्रसन्न मुद्रा में वरदहस्त श्री राम ने कहा, “यूथ प्रमुख... आपका सौहार्द एवं सहयोग अतुलनीय है। युग-युगांतरों तक आपकी कीर्ति एवं यशोगाथाएं भारत की वीथियों और पथों में सुनी-सुनाई जाएंगी।” भक्तवत्सल श्री राम ने मुग्धावस्था में वानर यूथ को वरदान दिया - ‘कलियुग में आपका शौर्य प्रगतिशील होगा एवं ऐश्वर्य में आशातीत अभिवृद्धि होगी। कलियुग के अंत में आप उत्तर भारत के हिमालयी क्षेत्रों में अपना विशेष प्रभुत्व स्थापित करेंगे। आप जहां से गुजरेंगे खेत खलिहान आपके लिए खुले छोड़ दिए जाएंगे; और भी, आपको भोजन मांगना नहीं पड़ेगा-आप छीन लेने में सक्षम होंगे।’ कालान्तर में मेरे अपर सहयोगी, सत्तासीन प्रशासकों की आप पर विशेष दया दृष्टि बनी रहेगी तथा जानकी की एक सखी उसी युग में आपकी और अन्य विध्वंसक प्राणियों की रक्षा हेतु अवतरण लेगी। तथास्तु !


कलियुगान्ते, जंबुद्वीपे, भरतखंडे, हिमाचल प्रदेशस्य सुदूर ग्रामे.... एक सभा आज की विकराल समस्या पर चिंतन करने के लिए जुटी है। ग्राम प्रमुख, पंच परमेश्वर, बुद्धि जीवियों सहित गांव के कुछ उद्दंड बुद्धि यूथ गहन मंथन कर रहे हैं।


एक यूथ आकस्मिक भावावेश में भर कर - ‘प्रधान जी! लहरी का क्या दोष है?’ कल शाम इस गरीब की छत के स्लेट उघाड़ कर बंदरों ने इसकी बौहड़ लूट ली। खेत पहले से बीजना छोड़ चुके हैं हम। सरकारी राशन जो मिलता है उससे पेट काट कर कुछ बचा लेते हैं बुरे दिनों के लिए, अब यहां भी बंदर जीने नहीं देंगे तो गांव खाली हो जाएगा। आप कुछ करते क्यूं नहीं, कहिए - यूथ के स्वर में रोष मुखर था।


सिर झुकाए बैठे प्रधान की जैसे तंद्रा टूटी, लाचार आंखों से सभा स्थल के सामने खड़े पीपल की चोटी को निहारा। हमेशा की तरह बदरों का एक झुंड ना बुरा देखो, ना बुरा सुनो, ना बुरा कहो की मुद्रा में बैठा मानो चिढ़ा रहा था। यहां लहरी बेचारा हाथ बांधे, उम्मीद भरी नजरों से पंचपरमेश्वरों को निहार रहा था।


तभी एक प्रबुद्ध जन बोले - देखिए, कल मैंने अख़बार में पढ़ा था, सरकार ने बंदरों को मारने की इजाजत दे दी है। इतना सुनते ही वार्ड पंच झंडूलाल आग बबूला हो उठा - बाबा, आत्महत्या की सलाह मत दो। प्राणी संरक्षण दल की अध्यक्ष का खौफ करो। मुझे तो वह किसी यक्षिणी का अवतार लगती है। पिछली बार आपकी सलाह पर एक कुत्ता क्या मारा, आज तक यमसेवकों की धुलाई याद आती है। इसलिए आप तो कोई झूठी अफवाह मत ही फैलाएं।


बाबा सकपका गया था - नहीं बेटा, मैं झूठ क्यूं कहूंगा? विश्वास न हो तो कल का अख़बार देख लो।


पड़ताल की गयी। खबर सच्ची थी। पढ़ते ही प्रधान की आंखों में सहस्त्रकोटि सूर्यों की चमक उत्पन्न हुई। पंचो से परामर्श करके फरमान सुनाया गया - “गांव के पंद्रह उद्दंड यूथ समूह मिल कर कल एक खड्डा खोदें। चूंकी बंदरों की संख्या अधिक है, खड्डा जरा बड़ा हो, साथ ही, गांव के अग्रणी निशानची अपनी-अपनी बंदूकें ले कर परसों यत्र-तत्र सर्वत्र बंदरों की खोज करें तथा गांव को शाखामृगों के आतंक से मुक्त करें।”


एकाएक यलगार हो का युद्धघोष गरजा।


प्रधान ने भृकुटि तान कर पीपल की चोटी पर बैठे वानर झुंड को कातर दृष्टि से देखा, जवाबी कार्यवाही में वानर यूथ प्रमुख ने भी ख़ी-ख़ी करके भावी विनाश का इशारा दे दिया।   


अगले दिन कुदाल, बेल्चा, फावड़ा ले कर उद्दंड यूथ समूह ने अति उत्साह से गांव की सीमा की ओर कूच करते हुए एलान किया - इस कार्य के लिए हम मनरेगा से पैसा नहीं लेंगे। ग्राम सेवा के पुनीत कार्य में यह हमारा निःशुल्क सहयोग माना जाए। हो सके तो, इसके बदले हमें भी बुद्धिजीवी कहलाने का अधिकार दिया जाए।


सुबह से कब शाम हुई पता ही नहीं चला। अथक परिश्रम से यूथ समूह ने अभूतपूर्व कार्य किया था। एक विस्तीर्ण शवगाह का निर्माण हो चुका था। यूथ प्रमुख ने दूर से गांव के बुद्धिजीवी बुजुर्ग को आते हुए देखा और दल को इशारे से रुकने का आदेश दिया। भांग के नशे में उन्मत्त एक यूथ इशारे को गलत समझ बैठा और कार्यशीलता की पराकाष्ठा परिभाषित होने लगी जिसे  नियंत्रित करने के लिए विशेष प्रयत्न किए गए।


बुद्धिजीवी बुजुर्ग ने प्रशंसात्मक दृष्टि से कार्य को निहारा- अभूतपूर्व कार्य किया है निकम्मो! चलो, प्रधान आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं। चर्चा का विशेष सत्र बुलाया है।


पीपल के समक्ष प्रधान अपनी सभा परिषद् सहित बैठे थे। यूथ समूह ने उत्साहपूर्वक अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई।


प्रधान - सभासदो... कल निर्णय के उपरान्त मुझे विमर्श करने का समय मिला। मैं चिंतित रहा, कहीं हमारा निर्णय हमें पाप का भागी ना बना दे। जीव हत्या ब्रह्म हत्या है, फिर बंदर तो हमारे पूर्वज रहे हैं और प्रभु राम के सहायक थे।


हत्या के प्रयास में सजायाफ्ता एक सभासद ने टोका - प्रधान जी, आप अनर्गल प्रलाप न करें। मुर्गा तो आप भी मार कर खाते हैं।


प्रधान पर अकस्मात् आक्रमण को देखते हुए झंडूलाल ने बचाव किया - माराज! आप तो चुप ही बैठें, प्रधान को बात कह लेने दें।


प्रधान - मैंने निर्णय लिया है, हम वानर संहार नहीं करेंगे। यूथ समूह ने अति उत्साह में जो शवगाह का निर्माण किया है, कल उसे मिल कर भर दें। इस विषय पर अधिक चर्चा नहीं होगी कहते हुए शर्माई आँखों से प्रधान ने पीपल की चोटी को देखा, मानो अपने पिछले कल के निर्णय के लिए लज्जित हो। वानर समूह अपेक्षाकृत शांत था आज।


गांव का उद्दंड यूथ समूह सदमे में था, बुद्धिजीवी कहलाने का प्रयास निरर्थक हो चुका था। दिनभर के परिश्रम की प्रशंसा तो दूर, उलटे अति उत्साही घोषित किए जा चुके थे। एक ही झटके में प्रधान ने उनके उत्साह की हवा निकाल दी थी। अस्तु... आधे दिन की दिहाड़ी और लगनी थी शवगाह को भरने में।


अगले दिन पुनः कुदाल, बेल्चा, फावड़ा ले कर उद्दंड यूथ समूह ने भारी मन से गांव की सीमा की ओर प्रस्थान किया। आते-जाते लोग घृणा से निहारते और नजरों-नजरों में ‘निकम्मे‘ की उपाधि दे जाते। यहां उनके जाते ही गांव में चहुं ओर कोलाहल का आलम पसरा था। सभी लोग ‘है...... तुए तुए तुए तुए....’ करते हुए इधर से उधर दौड़ रहे थे। कुत्तों का एक समूह जो अति उत्साह में दौड़ाया गया था, चपेड़ास्त्र खा कर, वापसी में ‘टाउं टाउं टाउं’ करता हुआ अपनी हार का संदेश सुना रहा था। गांव पर पुनः आज ‘श्री रामसेवक सिंहों‘ ने भीषण आक्रमण किया था। दो प्रहर तक घात-प्रतिघात का खेल चला। उधर इस युद्ध में पारंगत वीर लड़ाके यहां से बेखबर शवगाह भरने में जुटे थे, इधर पत्थरबाजी के नौसिखियों ने गांव के दो-तीन बुजुर्ग टुचकरों के तथाकथित अनुभव की धूप से धवल कपाल को रक्तरंजित कर दिया था। वानर यूथ ने मनुष्यों की इस आपसी कलह का फायदा उठाते हुए संतरे, पपीते, अमरूद सहित गोभी, पालक और तो और मिर्चों पर भी हाथ साफ किया। मिर्चों से प्रज्ज्वलित अग्नि में वानर यूथ ने गांव को वैसे ही उजाड़ा जैसे कभी लंका उजाड़ हुई थी। लूट पाट मचा कर वानर यूथ ओझिल हो चुका था। गांव में अचानक मृत्यु का सा सन्नाटा पसरा था। मैदान के बीचों बीच खड़ा प्रधान एकटक पीपल की चोटी की ओर देख रहा था, वहाँ पाँच बंदर बैठे थे। एक के हाथ टिंकु का कुरकुरे वाला लिफाफा, दूसरे के हाथ हरिया के खेत का टमाटर, तीसरा भस्मावृत बेताल बना हुआ था - शायद आटे की देगची में गिर गया था, चैथा मुट्ठी में चने दबाए अक्रोशित नजरों से प्रधान को ही देख रहा था। पाँचवें के हाथ में कुछ लाल रंग का सालू जैसा दिखा, प्रधान ने गौर से निहारा, यह वही फुलकारी वाला सालू था जो प्रधान ने बड़े चाव से पत्नी के लिए अमृतसर से लाया था। एकाएक प्रधान के मस्तिष्क में रक्त का ज्वार उमड़ा, क्रोध में अपने आसपास पत्थर ढूँढने का असफल प्रयास किया, फिर झल्लाकर चिल्लाया, “आम सभा बुलाई जाए।”


इधर शवगाह भर कर थके-हारे यूथ समूह ने गांव में प्रवेश किया ही था कि बुद्धिजीवी बुजुर्ग ने संदेश सुनाया - निकम्मो! प्रधान ने पुनः आम सभा का विशेष सत्र बुलाया है। सभी आप की प्रतीक्षा कर रहे हैं। बुद्धिजीवी के अधरों पर कुटिल मुस्कान थी। बेदम यूथ समूह प्रमुख ने आत्मनियंत्रण का अभूतपूर्व परिचय दिया, उन्हें चलने को कहा और थोड़ा दम ले कर आने का आश्वासन दिया। जब तक वह सबको एकत्रित करता पता चला थका हुआ यूथ पहली धार की सुरा का अस्वादन कर चुका था। जैसे तैसे वह सभी को ले कर सभा में पहुंचा। अस्त-व्यस्त सभासदों को देख कर वह अवाक् रह गया - क्या हुआ? क्या आज फिर आक्रमण हुआ? हम तो पहले कहते थे, सरकार ने छूट दी है तो यह मुआ प्रधान क्या सांठ गांठ कर बैठा है वानर सेना से? निश्चित आशंका के क्रोध में यूथ प्रमुख प्रधान के प्रति विष वमन कर चुका था। चुनरी खो देने के गम में प्रधान पत्नी द्वारा पहले ही प्रताड़ित था, यह आकस्मिक प्रहार झेल पाना सम्भव नहीं था फिर भी स्वयं को संयत करते हुआ बोला - मैंने पुनः निर्णय किया है, कल वानर संहार होगा। सभी गांववासी अपना-अपना सहयोग दें।


सुरा सुंदरी के मोह में ग्रस्त यूथ समूह में से आवाज आई - तेरे बुह्ड़े दे नौकर हन् (आपके पिता जी के नौकर है)? यूथ प्रमुख ने चुप रहने का इशारा किया।


प्रधान आक्रोश में भर कर - ‘उद्दंड यूथ समूह जो शवगाह भर आया है, कल फिर से उसे खोदे।’


खड्डा खोदने और भरने की कवायद से पहले ही सभी खीज चुके थे।


तभी सुरा मुग्ध एक यूथ बोला - प्रधान जी, यह सब तो ठीक है पर आप एक बात सुन लो, ‘खड्डा तो हम फिर खोद देंगे पर कल शाम यदि आपने निर्णय बदला तो याद रखिएगा, उसी खड्डे में आपकी समाधि बनेगी अब।’ स्तब्धता के माहौल में कुछ लोगों की हँसी सुनी जा सकती थी। प्रधान किंकर्तव्यविमूढ़ था, इससे पहले वह कुछ कह पाता उसके छोटे भाई हरि का स्वर गूंजा - किसकी मजाल हुई प्रधान से ऐसे बात करने की?


इतने में दूसरा यूथ बोल उठा - प्रधान जी सुबह से ले कर शाम तक निर्णय-पुनर्निर्णय करते रहते हैं। खड्डा क्या जुबानी जमाखर्च से होता है? यहाँ हमारी जान निकलती है खड्डा करने में और शाम को भरने के आदेश पारित हो जाते हैं।


बस इतना कहना था कि सभा का माहौल संगीन हो गया। पीपल की चोटी पर बैठा वानर झुंड इस कोलाहल से पहले तो बिदका फिर सहज हो कर ‘वानर वध सभा‘ की अगली कार्यवाही देखने हेतु बैठ गया।


सभा में पहले तो जोर-जोर से वाद-प्रतिवाद सुनाई दिया, फिर उच्च स्वर में कर्णभेदी गालियों के अमोघ अस्त्र चले। उसके बाद शस्त्र चालन मुद्रा में हाथ इधर से उधर लहराते हुए दिखाई दिए। अन्त में धूल का एक भयंकर गुबार उठा। पीपल पर बैठे वानर शावक किसी अनिष्ट की आशंका से अपनी अपनी माँ की गोद की गोद में दुबक गए। वानर यूथ प्रमुख ने गांव वासियों द्वारा रचित ‘वानर वध लीला‘ का सीधा प्रसारण देख कर प्रभु राम के आशीर्वाद ‘अपर सहयोगी प्रशासकों की दया दृष्टि’ को स्मरण किया।


धूल का गुबार छँटा। कतिपय सभासद शवासन की मुद्रा में तो कुछ योगनिद्रा में लीन पाए गए। उद्दंड यूथ समूह अपने बाहुबल के बूते विजयी मुद्रा बना ही रहे थे कि टुचकरे बुजुर्गों के आशीर्वाद से खाकी वर्दी धारी यमसेवकों ने ‘वानर-वध सभा विध्वंस’ में प्रवेश किया।


प्रधान एवं सहयोगियों के लिए श्री श्री 108 पुष्पक विमान मँगाया गया। उन्होंने भी विमान में बैठने से पूर्व, जान बचा लेने हेतु प्रभु श्री राम का धन्यवाद किया और शासकीय बैकुंठ की ओर प्रयाण किया।


उद्दंड यूथ समूह को यमपाश मिला और निर्दयता पूर्वक घसीटे जाते हुए यूथ को देख कर किसी के भी चेहरे पर शिकन नहीं आई।


वानर यूथ समूह ने भरपेट श्री राम का जयघोष किया, “रघुकुल रीति सदा चली आई, प्राण जाई वरदान न जाई।”


‘इति वानर-वध विध्वंस‘


 



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