कविता
शहीदों को नमन
इन दिनों
देश की सीमाओं पर
फैल रहा
आंतकी जखीरा
धुंएॅ से पटा सैलाब
छाया
दहशत का बखेरा
बोलती व्यथाओं का
स्वप्न डेरा
बिखरे है खून के
लाल-लाल-कतरे
कायनात में
मची कराहें
जाबांज प्रहरियो पर
पल पल खतरे
हाय ! कि
पुलवामा में
शहीदों का बलिदान
नफरत-औ-आंधियों
का घोर घोर
मचा घमासान
शून्य में ताकती
माँ की पथराई आँखें
पिता की पीठ पर
लद गई निःश्वासें
ठुमकते नन्हें-मुन्नों के
पिता खो गए
जीवन संगिनी को
कौन दे विश्वास
बेटियों को देने वाली
सदाएं/खो गई आशाएं
हम सभी का
यह प्रण हो
आंतक से लड़ने का
हरेक मंे दम हो
अब न बहने देंगे
खूब हम
लड़ेंगे आंतक और
आंतकवादियों से
देश का/वतन का
प्रहरी नौजवान दोस्तों का
हम साथ देंगे
बात तभी परवान
चढती है,
जब एकता देशभक्ति
मानवता- देश पर
कुर्बान होती है
नमन है उन शहीदों को
अमन की धरा भी
उन्हें गौरव से नवाज
ऐसा अवदान देती है
वरदान देती है।