द्वार हृदय के आ जाओ
द्वार हृदय के आ जाओ
द्वार हृदय के आजाओ
फिर परिचय भी कर लेंगे
पावन कितने हम दोनों
ये निश्चय भी कर लेंगे
देखो कितना मोहक है
जीवन जीने का सपना
आती जाती श्वांसों की
माला का जैसे जपना
मैली होने से पहले
जीव चदरिया रख देंगे
जीव जुलाहा बुनता है
परिधान तंतु नूतन का
काल कलेवा फिर करता
संधान करे जीवन का
ले लो अपना ये तन मन
नभ में विचरण कर लेंगे
बंधन कैसा ये तन का
मन भी अपना है बेमन,
भले करे कितना क्रंदन
निष्फल है इसका मंथन
भौतिकता पूरित सागर
पल में खाली कर देंगे
रिश्ते पल पल रिसते हैं
फिर भी हर पल ढोते हैं
नए नए फिर फिर बनते
देख पुराने रोते हैं
चलो चलें अब अपने घर
तन का बंधन तज देंगे