डी हेच लारेन्स की कविता The Mountain Lion

डी हेच लारेन्स की कविता The Mountain Lion


का हिन्दी अनुवाद, चंद्रमोहन पोखरियाल,


नार्थहैम्पटनशाइर, यू.के.


 


हिम तेंदुआ


जनवरी की बिछी बर्फ पर चढ़ कर


पहुँचे लोबो घाटी के भीतर


अँधेरे, सनोवरी के वृक्ष घनेरे


नीली गुल मेहँदी


तरल जल, उसकी निर्मल कल-कल


और अभी भी है पदचिन्ह, प्रत्यक्ष सकल


मानव!


दो मानव!!


मानव ! दुनिया का एकमात्र भयावह प्राणी


वे झिझके


हम झिझके


उनके पास बंदूक


और हम बिना बंदूक के


फिर सब बढ़े, मिलने के लिए


लोबो घाटी का आंतरिक एकाकीपन


बर्फ और अंधेरे से उभरते, दो अजनबी मैक्सिकन


लुप्त होती पगडंडी पर, आखिर कर क्या रहे हैं ये दो नर ?


और है क्या उसके काँधे पर


जैसे कोई पीली गठरी


हिरण है क्या ये सुनहरी?


''आपके पास क्या है, दोस्त?''


''एक शेर!''


वो मुस्कुराया, झेंपते हुए, जैसे पकड़ ली गई हो उसकी कोई गलती


और हम मुस्कुराये, मूर्खतापूर्ण, जैसे अनजान थे उस दुखांतिका से


उसका गहरा चेहरा, है काफी सभ्य


आह! यह तो एक हिम तेंदुआ है भव्य


एक लम्बी, लम्बी छरहरी बिल्ली, शेरनी सी पीतवर्णी


निर्जीव !!!


फाँसा था उसने आज सुबह उसे


बताया उसने, तिरस्कारपूर्ण मुस्कुराते हुए।


उठाया जो उसका मुखड़ा,


उसका गोल, कांतिवान मुखड़ा, तुषार धवल वर्ण


उसका गोल, उत्कृष्ट माथा, जिस पे थे दो निष्प्राण कर्ण


और धारियाँ उसके प्रभावशाली सर्द चेहरे पर, महीन काली दमकती किरणें


गहरी, स्पष्ट, तीक्ष्ण ज्योति उसके उज्ज्वल सर्द चेहरे पर


आँखें निष्प्राण अतिसुन्दर


''बहुत सुन्दर है''


वे चले गए खुले की ओर बाहर


हम सिमट गए लोबो के उदास धुँधलके के भीतर


और मिली मुझे उसकी माँद वृक्षों की कतार के पार


शानदार रक्तवर्णी-नारंगी चट्टान की उभरी छाती पर एक सुराख, एक छोटी सी गुफा


कुछ बिखरी हड्डियाँ, और बारीक टहनियां, और एक दुर्गम चढ़ाई


 


 


तो अब नहीं लपकेगी वो कभी,


बिजली की चमक जैसी कौंधती, एक हिम तेंदुए की द्रुत लंबी झपट के साथ


और उसका चमकता धारीदार कुहासे सा धवल चेहरा, अब नहीं करेगा सिंहावलोकन, न ही कोई पहरा


रक्तवर्णी-नारंगी चट्टानों की घाटी में, अंधेरी माँद से... बाहर


वृक्षो के ऊपर लोबो घाटी के अँधियारे मुहाने पर!


बजाए उसके मैं देखता हूँ दूर


बहुत दूर उदास रेगिस्तान में, एक स्वप्नमयी, मृगमरीचिकाय


देखता हूँ सांगरे-डे-क्रिस्टो के पहाड़ों पर जमी बर्फ, पिकोरिस के चट्टानों पर हिम


और पास ही बर्फ की खड़ी चट्टान के ठीक सामने, हरे वृक्ष हैं सलोने से


बर्फ में हैं चुपचाप खड़े, ज्यूँ क्रिसमस के खिलोने से


और सोचता हूँ कि मेरे लिए और एक हिम तेंदुए के लिए भी, इस शून्यचित्त संसार में पर्याप्त स्थान था


और शायद इस संसार के पार भी,


कितनी आसानी से हम लाखों लोगों के मरने पर भी, कभी उनकी कमी महसूस नहीं करते


परन्तु संसार में कितना बड़ा शून्य पैदा करता है


बर्फ जैसे श्वेत चेहरे वाले


छरहरे पीतवर्णी हिम तेंदुए का खो जाना !



 


 


 


 


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