कैलाश का कंपन
कविता
कैलाश का कंपन
नाट्य-शास्त्र का एक पन्ना
जैसे उन की चेतना में सुलग उठा
नृत्य-नाट्य की अनूठी मुद्राओं में
और वे पार करतेगए एक-एक कर कई सोपान
भरत मुनि अवाक्
महाकवि व्यास स्तब्ध
देखते हुए-
सुनील सोनी और भाषा संुबली1 को
शिव और पार्वती की भूमिकाओं में
अभिनय की चरमता में लीन एक पल
दूसरे पल बाहर आते
कैलाश से मंच पर
भाषा की सीमाएँ लांघते
उंगलियों, हाथों और पूरी देहभाषा का प्रकंपन
देखा मैंने-
नाट्य स्पंदनों के साथ
कैलाश का कंपन!