कविता

अग्निपरीक्षा


ऊषा ने लाल-लाल आँखें खोलीं


और साफ होने लगे वस्तुओं के चेहरे,


विहगों का कलरव


और छात्रों का भविष्य।


उजाला तब होता है


जब हम अपने अवस्थान से


पहुँच जाते हैं प्रतिष्ठान तक - ठठिया में ठठपाल।


नदी के ऊपर उड़ती भाप की नदी


सारी समस्याओं को बहा ले जाती है


और छात्रों की संख्या को भी


परीक्षा-कक्ष में छात्रों का पतझड़


प्रस्तावना लिखता है वसंत की।


छात्रों के अच्छे दिन आएँ न आएँ,


बेरोजगारी कम अवश्य हो जाएगी ।


सीसीटीवी कैमरे में दिखता है


परीक्षार्थियों का शालीन चित्र,


वीणापाणि सरस्वती के चित्र को


बिगाड़ दिया था किसी ढीठ बच्चे ने


और हंस उल्लू बन गया था


और विद्यालय के नक्शे में उभर आया था


कोई मॉल या मल्टीकॉमप्लेक्स ।


आज एक्स ने वाय से कहा,


विद्यालय से निकलते हुए -


''दोनों हरामी हैं, गलत सेंटर फंस गया''


डिग्री मिल गयी केंद्र-व्यवस्थापकों को ।


और राज्य-प्रबंधन को भी मैं पूरा नंबर दे देता


परंतु शिक्षकों के अभाव में


शिक्षा और परीक्षा की यह प्लास्टिकर्ढरी


कुछ वैसी ही है


जैसे यमराज सावित्री को तो पुत्रवती होने का वरदान देते हैं


और सत्यवान को लिए चले जा रहे हैं साथ ।


ठेके पर शिक्षक, ठेके पर कर्मचारी !


अरे देश को विश्वगुरु बनाने के ठेकेदारो


क्या केवल सरकार ही रहेगी सरकारी ?


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