कविता-पत्रांश

पत्रांश


आदरनीय बहल जी,


                 प्रणाम,


'अभिनव इमरोज़' मुझे नियमित प्राप्त हो रही है। हर एक अंक में इतनी संजीदगी से बेहतरीन विषयों का समावेश और प्रकाशन मुझे हर बार अभिभूत कर जाती है। मैं सदैव उस घड़ी की सराहना करती हूँ जब मैंने इस पत्रिका से जुड़ने का निर्णय लिया था।


मेरी सदस्यता की स्थिति क्या है ? यदि यह मगचपतम हो गया है तो कृपया बतायें। मैं पुनः नवीनीकरण करवाना चाहूँगी।


 


कविता


मैंने देखा है तुम्हें-


धंसते हुए अदहन में


सीटी बजाते हुए


कुकर में


बहते हुए


नल के पानी में


कतरा-कतरा कटते हुए


साग-भाजी के साथ।


मैंने कार के भीतर से देखा है तुम्हें


मुझसे भी तेज भागते हुए


दूर बहुत दूर जाते हुए।


 


बहुत सालता है


मुझे तुम्हारा ये


एक झलक दिखलाकर


फिर दूर भाग जाना।


यूं तुम्हारे कलेवर का


बारिश के मानिंद


बूंद-बूंद टपकना


और बिखर जाना।


 


आओ न कभी कविता


मेरे पास


अपने पूर्णावयव में


सालंकृत, सम्पूर्णा हो कर...



 


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