मैं बनारस हूँ - कविता
मैं बनारस हूं
शिव के त्रिशूल पर बसी हुई,
सनातन शाश्वत पौराणिक,
बाबा विश्वनाथ अन्नपूर्णा संकटमोचन,
गंगा विभूषित काल भैरव सरंक्षित,
दिवोदास हरिश्चंद्र की नगरी,
आध्यात्मिक नगरी मैं बनारस हूं।
दस अश्वमेध यज्ञों का साक्षी दशाश्वमेध
मैं तुलसी कबीर रामानंद की काशी हूँ,
सत्यवचन की प्रतिबद्धताके लिए विख्यात,
हरिश्चंद्र और डोमराजा के मध्य का वार्तालाप,
सिद्धार्थ के सारनाथ रविदास आश्रम,
विश्व विश्रुत सुश्रुत शंकराचार्य मंडन मिश्र,
पंचकोशी परिक्रमा वाली काशी,
गुरु नानक के आगमन से भाव विभूत,
प्राचीनतम मैं वह बनारस हूं।
भारत की सांस्कृतिक राजधानी,
उसके दर्शन सर्वधर्म सद्भाव,
महामना मालवीय की तपस्थली,
वाग्देवी का प्रतीक बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय,
मैं बनारस हूं।
भारत के हर कोने कोने का प्रतिनिधित्व,
सोनारपुरा मदनपुरा देवनाथपुरा रामघाट,
केदारघाट हनुमानघाट अंक वीथियों में समेटे,
ऐसा अद्भुत शहर में बनारस हूं।
मैंने औरंगजेब की क्रूरता देखी,
लार्ड डलहौजी का पलायन देखा,
आजादी के बाद का कमलापति,
नये बनारस का जननायक देखा,
कितने आये कितने चले गये,
लेकिन मैं वही शहर बनारस हूं।
उस्ताद बिस्मिल्ला खां वाला बनारस,
धूल जहाँ की पारस है,
मैं वह शहर बनारस हूँ,
पक्कड़ फकीर लकीर की पुरी
लालसा मोक्ष की नगरी,
ज्ञान का सारस,
शहर बनारस हूँ,
मैं बनारस हूं।