पिता दुनिया का अमूल्य नगीना - कविता

...पिता दुनिया का अमूल्य नगीना...


पिता इस दुनिया का अमूल्य नगीना हैं


पिता का होना एक सुखद अहसास है


पिता हैं तो घर का सुनहला भूगोल और इतिहास है


पिता हैं तो हर ऋतु मधुमास है


और...घर एक रोशनी की मीनार है


घर में तभी तो दुनिया की हर खुशी की भरमार है


पिता घर की दहलीज हैं


और...घर का आधार हैं


लौह स्तम्भ हैं...रोशनी की मीनार हैं


पिता हैं तो घर में हर समय त्यौहार है


पिता हैं तो आंखों में चटकीले सपने हैं


पिता हैं तो दुनिया भर के खिलौने अपने हैं


पिता घर के लिए दिन-रात खपते हैं


घर की खुशियां रहें सलामत


चिलचिलाती धूप में इसीलिए तो चलते हैं


घर की खुशियों को वही तो संभालते हैं


घरेलूता के रथ के पहियों को वही तो चलाते हैं


वही तो दिन-रात घर के सपनों को सजाते हैं


तभी तो आंगन का गुलमोहर खिला है


तभी तो घर की छतें हमारी हैं


दीवारें अपनी हैं...रोशनी की मीनारें अपनी हैं


पिता को कभी थकते नहीं देखा


हांफते नहीं देखा...रूकते नहीं देखा...


उनके स्कूटर की डिग्गी कारों का ख़ज़ाना है


उनके झोले में घर की ज़रूरतों की फेहरिस्त रहती है


क्योंकि पिता के साथ मां भी तो


घर की ज़रूरतों की सलीब उठाती है


पिता हैं तो घर की रसोई महकती है


पिता ही से आंगन की फुलवारी चहकती है


पिता को विस्मृत करके कभी देखो तो


घर की हर दीवार भुरभुराती हुई नज़र आएगी


आंगन की तुलसी भी मुरझाती हुई नज़र आएगी


लगता नहीं कि दुनिया हर शय


हाथों से फिसलती नज़र आएगी???


पिता के हाथों की लकीरों में ही तो


घर के भविष्य की लकीरें हैं


और जाने कितनी जागीरें हैं


पिता हैं तो घर में ज़िन्दगी की खूबसूरत तस्वीरें हैं


पिता घर के लिए आसमान हैं


आशीषों का कोरा थान हैं


पिता हैं तो सिर उठाता हुआ अपना मकान है


पिता के लिए दुआओं में उठते हाथ हैं


घर के सभी जने एक सूत्र में तभी तो बंधे हैं


क्योंकि सभी का जीना और मरना साथ-साथ है


पिता आशीषों की कथरी खोल रहे हैं


घर सलामत रहे अपना


इसीलिए तो भगवान के आगे रोज झुकते हैं


इसीलिए तो घर की दहलीज़ों के भाग खुलते हैं


पिता को कभी टूटे हुए नहीं देखा


पिता को कभी अंधी दौड़ में पीछे


छूटे हुए नहीं देखा


पिता घर के गुलमोहर हैं


आंगन में फैली शीतल छांव हैं


और...घर के सपनों का कोई गांव हैं


पिता हैं तो घर के हर हिस्से में


सुनहली शीतल छाया हैं


पिता की आंखों में उगते हुए सपने हैं


और...वे सपनों के पीछे अथक भाग रहे हैं


वे सपनों के रथ पर चढ़ेंगे


तभी तो घर के रंग महल की दीवारों पर


उम्मीदों के रंग भरेंगे


तभी तो उनकी झोली से


खुशहाली के जाने कितने फूल झरेंगे


और...घर की मुंडेरों पर


उम्मीदों के टिमटिमाते चिराग जलेंगे


पिता कभी हारते नहीं हैं


वे कभी हार ही नहीं सकते


क्योंकि पिता के हाथों में


उम्मीदों की लकीरें हैं


और...लकीरों में छुपी हुई


अपने घर की जाने कितनी तस्वीरें हैं...



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