प्रकाशनाधीन
रायसाहब से भी सामना हुआ- तुम देवदास को जानती थी- पार्वती।
जी!
कितना जानती थी।
जितना एक पड़ौसी दूसरे पड़ोसी को जान सकता है।
इतना ही या उस से कुछ ज्यादा।
ज़्यादा- कम का माप दंड होता है क्या ?
पार्वती तुम कुछ छुपा रही हो।
इतना नहीं- जितना आप ने छुपाया।
क्या कह रही हो?
इस का उत्तर आप के पास है।
रायसाहब हतप्रभ हुए और कहीं झुके भी पर सामंती अहम् टकरा गया।
हम सामंती रजवाड़े हैं। बड़े घरों में यह सब चलता है।
मैं मानती हूँ.... पर छुपाना तो नहीं चलता न...।
तुम्हारी माँ ने ही कहा था कि तुम्हें अभी कुछ न बताया जाए।
तो आप ने यह निर्णय ले लिया और मुझे पहले ही दिन नकार भी दिया। फिर आप को आज मेरा सच क्यों खल रहा है?
ऐसा सच किसी को भी खलेगा पार्वती!
स्त्री.पुरुष की सच्चाईयों की गरिमा क्या अलग.अलग होती है! एक तरफ के सच को मान लेना चाहिए और दूसरी तरफ के सच की भत्र्सना करनी चाहिए।
तुम किस बूते पर यह विवाद कर रही हो।
यह बात किसी विशिष्ट अस्तित्व या बूते की नहीं एक साधारण
सिद्धांत की है।
तुम किसी से प्रेम करती थी- जानती हो यह कितना बड़ा अपवाद है-
आप भी तो आज तक अपनी राधा से प्रेम करते हैं।
पर वह मेरी पत्नी थी।
हमारे प्यार के बीच हमारे प्यार की पवित्रता थी। मुझे उस प्यार की कोई ग्लानि नहीं है बल्कि वह आज तक मेरी शक्ति है।
पार्वती! तुम कैसी बातें करती हो यह अवैध है।
अवैध!
हाँ-जायो! मुझे इस विषय में और कोई बात नहीं करनी।
आप सच्च से कन्नी काट रहे हैं-