प्रेमी के दोहे
चार चिड़ीं इक पेड़ पर बैठी करतीं बात।
अपने ही अक्सर मिले मीत लगाये घात।।1।
बात हमारी रख गया, आज सभा के बीच।
जुल्म किये जिस पर सदा, हमने अँखियाँ मीच ।।2।।
साथ छोड़ कर चल दिया, क्यों कर मेरे यार।
पीर सरीखा हो गया, पल-पल अब दुश्वार ।।3।।
छुटकर तुमसे दम-ब-दम, तबिअत है बेचैन।
रैन हमारी दिन हुयी, और हुआ दिन, रेन।।4।।
गन्ध मिलन की तन-बदन, अंग-अंग लिपटाय।
सागर से मिलने चली, नदिया पंख लगाय।।5।।
दरिया, गिरिया कर रहा, बढ़ता जाता नीर।
गहरे लोगों की भला, किसने समझी पीर।।6।।
कब, कैसे क्यों कर मिले, मीत हमारे नैन।
रैन-वैन अब रैन है, दिन हू है बेचैन।।7।।
पीर दिया सी हिय जरै, सुलगत हैं दिन रैन।
निश दिन तड़पें मीन से, पल हु कों नहिं चैन।।8।।
साँझ सकारे रटि रही, प्रेमी प्रिय को नाँव।
जर्द भयो गुल सो बदन, देखे धूप न छाँव।।9।।
जा दिन से प्रियतम गये, ता दिन से दिन आज।
विरह वेदना की गिरे, निश-दिन हिय पै गाज।।10।।
उलझी-उलझी सी रहे, सुलझी-सुलझी बात।
जा दिन से विछुई प्रिये, चैन न दुइ पल आत।।11।।
खूब समझ कर छेड़ना, मीत प्रेम का राग।
दिल जलते याँ दीप से, काले होते फाग।।12।।
अपना सा कोई मिला, बड़े दिनों के बाद।
फूल लगे हैं महकने, शाद हुआ नाशाद।।13।।
मन से मन की बात कर, चुप रहना दे छोड़।
दिल मेरा नाजुक बहुत, यूँ मत तोड़-मरोड़।।14
रीत-महोव्वत राखियो, रखियो अँखियन नीर।
इंसा है सच में वही, जाके हिरदय पीर।।15।।
सोच समझ कर बोलना, कड़वे-मीठे बैन।
मुश्किल से मिलते सुनो, फिर नैनों से नैन।।16।।
एक बिरादर हम सभी, जाति-पाँति का चीज।
आये सब नंगे गये, पहिरे कौन कमीज।।17।।
नैनन सों नैना मिलें, मिलें बैन सों बैन।
प्रिय बैठो निक पास में, पड़े हिया कों चैन ।।18।।
मौन गिरा इक टक नयन, चकित-चकित खामोश।
रूप तुम्हारा देखकर, गॅवा चुके हैं होश।।19।।
खूब दिया ईश्वर तुम्हें रूप रंग से लाद।
दिल रखने वाले सुनो, होंगे अब बरबाद ।।20।।