संपादकीय


आदरणीय भाई साहब, नरेन्द्र मोहन जी!


                                  सादर सप्रेम प्रणाम!


ज़िन्दगी इत्तिफ़ाक़ात का मज्मूअी सिलसिला है। गिनती किए बगै़र मैं कह सकता हूँ कि 2007-2008 में आप से मुलाक़ात मेरी ज़िन्दगी का एक अहम इत्तिफ़ाक था। जिसके लिए मैं डाॅ. रमेश सोनी (इन्दौर) का शुक्रगुज़ार हूँ। उस वक्त तक 'अभिनव इमरोज़', और भी बहुत से प्रोजेक्ट्स सिर्फ मेरी परिकल्पना के ही हिस्सा थे, किसी और से ज़िक्र तक भी नहीं हुआ था। क्योंकि हिन्दी साहित्य क्षेत्र में कोई एक भी मेरा दोस्त या जान पहचान नहीं थी। डाॅ. सोनी ने दो  और साहिबान से भी मिलवाया था। इस इत्तिफाकन मुलाक़ात का क्या असर हुआ और क्या नतीजा निकला- यह सब बेमानी है। अहमीयत इस बात की है कि हमारा रिश्ता आज और अब किस मुक़ाम पर है।


हमारे इस रिश्ते की बुनियाद, आत्मतियता, मोहब्बत और ख़ुलूस से पुख़्ता हुई- यह मेरी ख़ुश क़िस्मती है कि  हिन्दी से बाबस्ता दिल्ली में आप मेरी पहली पहचान बने, सही मायने में यह पहचान 2013 में आगे बढ़ी और आज तक बनी हुई है और सानिध्य भी समृद्ध हुआ है। इसका राज़ शायद यह है कि आपने अपनी डायरी के पन्नों में जो कुछ भी लिखा हो लेकिन आपने मेरे साथ कभी किसी तरह की खेमेबाजी, दावपेच की सियासत और किसी दूसरे हम कलम के बारे में नाकाररात्मक टिप्पणी नहीं की। ज़िक्र किया हो तो किया हो जिराहत शायद कभी नहीं। आप का सौहार्द और प्रोत्साहन मेरी ऊर्जा बन कर हमारे रिश्ते को सशक्त करता रहा है। मुझे विश्वास है कि आप मेरी बरखुर्दाराना औकात का एहतराम करते रहंेगे और मैं आपने सिर पर आप के हाथ की जुंविश हमेशा महसूस करता रहूँगा।


निंदर भाई- जिसके लिए शब्द ही रत्न है और शब्द ही प्राण है- का हार्दिक अभिनन्दन।


 



 


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