व्यंग्यालेख

एक मित्र का संदेश मिला, ''आपकी पढ़ाई का कोई महत्त्व ही नहीं रहता जब दूसरे दिन कोई अनपढ़ आदमी आपका फेंका हुआ कचरा उठाता है।'' बात तो पते की है। हाँ अनपढ़ चाहे तो थोड़ा-बहुत कूड़ा फेंक सकता है लेकिन पढ़े-लिखे आदमियों को तो कचरा बिल्कुल नहीं फेंकना चाहिए। और जिसकी डिग्री जाली हो उसे तो किसी भी सूरत में कचरा इधर से उधर नहीं करना चाहिए नहीं तो उसकी पोल खुलते देर नहीं लगेगी। आज जब पूरे देश में स्वच्छता पर ज़ोर दिया जा रहा है तो ऐसे में किसी का भी कूड़ा फेंकना किसी भी तरह से जायज़ नहीं ठहरता। यदि राष्ट्रव्यापी स्वच्छता अभियान को सफल बनाना है तो हमें स्वयं को कूड़ा फेंकने और फैलाने से रोकना होगा लेकिन यदि गंभीरता से इस पर विचार करें तो इस अभियान की सफलता का पूरा श्रेय फैलाए गए कूड़े-कचरे को ही जाता है। कूड़ा-कचरा नहीं फैलाएँगे तो किसे साफ करेंगे और साफ करने को कुछ नहीं बचेगा तो ये महत्त्वपूर्ण राष्ट्रव्यापी अभियान बेवक्त दम तोड़ देगा। बात साफ है कि इस महत्त्वपूर्ण राष्ट्रव्यापी अभियान को जिं़दा रखने के लिए कूड़े-कचरे का यत्र-तत्र-सर्वत्र प्रदर्शन अनिवार्य है।


इसके लिए तो लोगों का अहसान मानना चाहिए कि वे बिना कुछ लिए कूड़ा-कचरा फैलाते रहते हैं क्योंकि इसके बिना स्वच्छता अभियान प्रारंभ करना ही संभव नहीं। स्वच्छता अभियान शुरू करने के लिए कई जगहों पर तो पैसे देकर कूड़ा डलवाना पड़ा तब कहीं जाकर स्वच्छता अभियान का उद्घाटन हो पाया और झाड़ू के साथ कूड़ा धकेलते नेताओं और बड़े-बड़े अफसरों के फोटो खिंच पाए। दरअसल कोई चीज़ मुफ़्त में मिल जाए या हो जाए तो उसकी क़ीमत नहीं रहती। वह महत्त्वहीन हो जाती है। कूड़े के संबंध में भी यह बात बिल्कुल सही है। पता नहीं हम कूड़े के महत्त्व को कब समझेंगे और कूड़ा फैलानेवालों की क़द्र करना कब सीखेंगे? कूड़े के सहारे बड़े-बड़े व


महत्त्वपूर्ण राष्ट्रव्यापी अभियानों को बल मिलता है। देश में हर तरह के कूड़े की सख़्त ज़रूरत बनी रहती है। यदि देश में बेईमानी और भ्रष्टाचार नहीं होगा तो सरकार इनके विरुद्ध कैसे क़मर कसेगी? और यदि सरकार इनके विरुद्ध क़मर नहीं कसेगी तो सरकार की कमर की ख़ैर नहीं।


यदि दुनिया में बेईमान और भ्रष्ट लोग न रहें तो अच्छे लोगों की कद्र ही कौन करेगा? वैसे तो अच्छे लोगों की कोई क़द्र नहीं लेकिन अच्छे लोगों की कुछ क़द्र है भी तो वो बुरे लोगों के कारण ही है इसलिए अच्छे लोगों को बुरे लोगों की निंदा करने की बजाय उनके प्रति कृतज्ञ होना चाहिए। गंदगी चाहे जिस प्रकार की भी हो उसके बिना सुंदरता महत्त्वहीन है अतः कूड़ा-कचरा फैलानेवालों के प्रति सरकार और हम सबको कृतज्ञ होना चाहिए। पुनः मूल विषय अर्थात् कचरे पर आते हैं। कचरे का देश में रोज़गार से भी गहरा संबंध है। सरकारों के पास लोगों को बाँटने के लिए ख़ैरात तो है पर उन्हें सम्मानपूर्वक जीवनयापन करने देने के लिए रोज़गार नहीं हैं। ऐसे में कूड़ा अपनी बाँहें फैलाकर हमारा स्वागत करता है। अनेक लोग कूड़े-कचरे में ही अपना रोज़गार ढूँढ़ लेते हैं। वे उसी में से कुछ उपयोगी चीज़ें खोजकर बेच लेते हैं और इस तरह से कई बार भूखे सोने से बच जाते हैं। ये कूड़ा ही जो उन्हें ज़िंदा और पुरउम्मीद बनाए रखने में सक्षम है।


वैसे सरकारों के पास रोज़गार बेशक न हों लेकिन रोज़गार विषयक सुझाव बड़े अच्छे-अच्छे होते हैं। उदाहरण के लिए चाय या पकौड़े बेचने का सुझाव। लेकिन दोस्तो क्या कूड़ा-कचरा फैलाने से रोज़गार के अवसरों का सृजन नहीं होता? कूड़ा-कचरा फैलाने से भी रोज़गार के अवसरों का सृजन होता है इसमें संदेह नहीं। बेशक कूड़ा उठाने के लिए नई नौकरियों का सृजन न हो सके लेकिन यदि लोगों ने कूड़ा फैलाना बंद कर दिया तो उससे तो लोगों के वर्तमान रोज़गार भी छिन जाएँगे। कूड़े के फैलाव में रोज़गार की अपार संभावनाएँ निहित हैं ज़रूरत है तो बस पहचानने वाले की। सरकार के अपने ख़र्चे बहुत बढ़ गए हैं इसलिए कूड़ा साफ करने की नौकरी देना भी संभव नहीं। सरकार कूड़ा उठाने की नौकरी न दे तो कोई ख़ास बात नहीं लेकिन कूड़ा उठाने का काम करने का सुझाव तो दे ही सकती है। कूड़ा साफ करेंगे तो भी कुछ न कुछ मिल ही जाएगा। सिर्फ चाय और पकौड़ों के भरोसे रहना कहाँ की समझदारी है?


अब भारतीय रेलगाड़ियों को ही ले लीजिए। चलती रेलगाड़ियों में सरकार कहाँ तक सफाई करवाए? वहाँ भी कुछ लोग स्वेच्छा से डिब्बों में घुसकर सफाई कर डालते हैं। यात्री इतने बेरहम और बेशर्म नहीं कि मुफ़्त में सफाई करवा लें। वे भी सफाई करनेवाले को कुछ न कुछ दे ही देते हैं। कुछ पैसे और कुछ बचा-खुचा न खाने लायक खाना भी उन्हें मिल ही जाता है। ये भी तो रोज़गार ही हुआ कि नहीं? बात तो हाथ में दो पैसे आने और पेट भरने की है। ये तो कुछ लोग कूड़े को खिड़की और दरवाज़ों से बाहर फेंक देते हैं वरना और अधिक रोज़गार के अवसर उत्पन्न हो सकते हैं। लोगों को चाहिए कि रेलों में ख़ूब कूड़ा फैलाएँ और उसे अंदर ही रहने दें। फिर देखना कैसे रोज़गारों को ढेर लग जाता है। अब सरकार ही सबको सरकारी दामाद बनाकर तो नहीं रख सकती न। हमें स्वयं भी तो कुछ प्रयास करना चाहिए।


रेलों में कई बार कूड़े के साथ-साथ दूसरे सामानों की सफाई भी हो जाती है। ये भी तो एक रोज़गार ही है। बड़े सफाईवाले बड़ी मशीनों की ख़रीद में अपना हिस्सा ठीक कर लेते हैं तो छोटे सफाईवाले छोटी-मोटी चीज़ों पर हाथ साफ कर संतुष्ट हो जाते हैं। रोज़गार रोज़गार है। कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता। चाय बेचने से लेकर सफाई करने तक कोई काम छोटा नहीं होता। सफाई करके तो देखिए। तो लोग रेलों में कूड़ा फैलाते हैं तो वहाँ भी कुछ लोगों को रोज़गार मिल जाता है कि नहीं? कूड़ा कहीं भी फैलाया जाए रोज़गार के अवसर उत्पन्न करता है। जो काम सरकार नहीं कर सकती ये कूड़ा फैलानेवाले कर देते हैं अतः सरकार को चाहिए कि कूड़ा फैलानेवालों को न सिर्फ सम्मान की दृष्टि से देखे अपितु उनके लिए छोटे-मोटे पुरस्कारों की घोषण भी कर दे। साथ ही सरकार क्वालिफिकेशन के हिसाब से हर व्यक्ति की कूड़ा फैलाने की न्यूनतम सीमा भी निर्धारित कर दे ताकि निर्बाध गति से कूड़ा फैलता रहे और रोज़गारों का सृजन होता रहे।



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