पुरानी दिल्ली
जिसे छोड़कर मरते दम तक पछताये मीर
जिसकी गलियां नहीं छोड़ना चाहते थे ज़ौक़ उसी पुरानी दिल्ली में पीढ़ियों से बसे लोग
नज़रें झुकाये-झुकाये सामान समेट रहे हैं
चुपचाप नई दिल्ली की ओर निकल रहे हैं
और उनके घर के घर गोदाम बन रहे हैं
उन गोदामों में अंटा रहे हैं नये-नये सामान
नये तौर-तरीकों से लैस मॉडर्न बिजनेसमेन
जो आम कुल्फीवाले से लेकर शाही हलवाई जैसे
पुराने बैपारी-शैपारियों को बेदखल करते हुए
बाजार का कोना-कोना फतह कर रहे हैं और
शिकस्त खाये लोगों की पिछाड़ियों पर
उनके बेशर्म ठहाकों के थप्पड़ पड़ रहे हैं
बात करें गर पुरानी दिल्ली की उस जबान की
जो दर्ज है तारीख़ में तहजीब के नमूने की तरह
तो इशारा काफी होगा ग़ालिब की हवेली के हवाले से
भूले-भटके जो उधर निकल जाये कोई अदीब तो
अदब का उसे नामोनिशान तक नहीं मिलेगा
रिन्दाना मस्ती में जहां बेमिसाल शायरी करते थे ग़ालिब
वहां कोई क्रददान साफ जबान सुनने को तरसेगा
जिस तारीख़ में एक मुकाम है पुरानी दिल्ली का
उस तारीख़ का नई दिल्ली में कोई नामलेवा नहीं
जिस तहजीब की मिसाल हुआ करती थी पुरानी दिल्ली
उस तहजीब से नई दिल्ली का कोई रिश्ता नहीं
बस शुरुआती दौर है अभी इक्कीसवीं सदी का
और दिल्ली में दूर तक नई दिल्ली ही दिख रही
पुरानी दिल्ली तो बस अपनी आख़िरी सांसें गिन रही