वेदना

वेदना


कौन सुन पाता है?


सर्दीओं की निस्तब्ध रात्रि में


वृ़द्ध माता का - मौन रुदन


कौन देख पाता है ?


उसका विलखना-सिसकना


कौन समझ पाता है?


उसकी प्रिय वस्तु का


उससे दूर हो जाना


कौन महसूस करता है?


उसके प्रेम की असह्य वेदना


वह प्रेम, जो कल तक


उसकी पूँजी थी


वह प्रेम, जो कल तक


उसका विश्वास था ....


यह आस, यह विश्वास


अब, निशा के अंधेरे में


चक्षुओं से धार बन कर


जब, फूटती है


उसे पोछने को


उसका, अपना आँचल भी


छोटा पड़ जाता है


और, उसकी वेदना


स्वयं में सिमट कर


रह जाती है



 


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