शहादत
सुनो
लहू का रंग लाल होता है,
वो अपनांे का हो,बेगानों का हो।
दुश्मन का हो, दोस्त का हो
शैतान का हो, इन्सान का हो।
भगवान ने इन्सान बनाया,
उसे विवेक मस्लेहत से नवाज़ा।
फिर क्यों इन्सान को इन्सान काट रहा है,
सरहदों में दीवारों में बांट रहा है।
पिछले दो विनाशकारी युद्ध हमारे सामने हैं,
सरहदें बनतीं नहीं, बना दी जाती हैं
बेशर्म हैं हम लोग, हम सब
सरहद, ये सब कुछ सहती है
मगर फिर भी ये कैसी विडम्बना है,
सरहद के उस पार मरे तो दुश्मन
सरहद के इस आर मरे तो शहीद।
मां दोनां तरफ रोती हैं, बिलखती है
सरहद, सरहदें दीवार, दीवारें - सब
रहबरों की ज़िद का नतीजा है
शहीद की शहादत का नहीं
शहीद की शहादत,
तो माँ की इबादत है।
चाहे वो इस पार हो,
चाहे वो उस पार हो।