लू की नदी किनारे पर है
एक उमस का गाँव.....
पानी का अभाव जैसे
सच्चाई का व्यवहार
स्वेद बहुत सस्ता जैसे
हो रिश्वत का बाजार
सभी कह रहे बालू में ही
खींचो अपनी नाव....
कुएं हुए अंधे जैसे हो
चैपालों का न्याय
अंधड़, जैसे चले गाँव में
मुखिया जी की राय
पवन कि जैसे भोले भालों
का, न कहीं पर ठाँव।