फिक्र कैसी, ख़ौफ़ किसका
मेरे सिर पे हाथ उसका
जली झुग्गी, लोग चीखे़
जला बीड़ी कोई खिसका
लूट डाके और दंगे
काम गुंडे या पुलिस का
सामने साहब का बेटा
क्या करे पत्ता तुरूप का?
हाथ फिर आया न मौक़ा
बहुत दौड़ा, बहुत लपका
दुश्मनों से जो मिले है
कह रहे हैं, वतन सबका
फिर धमाके, फिर चिताएँ
सोचिए यह काम किसका
पीतज़ा के दौर में अब
जिक्ऱ क्या हो आम-रस का
टिकी पीढ़ी की निगाहें
लगे चैका या कि छक्का
मयकशी को भीड़ जाए
इबादत को, इक्का-दुक्का