जश्न-ए-मोहब्बत
उस लड़की की आंखों में दिसंबर की ठिठुरन थी, बिल्कुल शुष्क-सी और पाले की मार से कुम्लाइ फसल-सी थी उसकी देह! लगता था कभी कोई ऊष्म पानी का सोता फूटा ही नहीं था। इक्कीस की जवानी और यह वीरानगी?
और एक था बाईस की जवानी वाला जवान। जनवरी का उत्साह और नयापन था उसमें, बेकरार, बसंत के इंतजार में हो जैसे..!
एक दिन दोनों की आँखें टकराईं और दिसंबर -जनवरी भींगने लगे प्यार की बारिश में, फरवरी वाले बसंत और वैलेंटाइंन वाले महीने मे!
शायद खिल ही जाती कलियाँ, भर ही जाता चमन फूलों से, अगर पता न चलता जनवरी-से वाले जवान को दिसंबर की ठिठुरन वाली लड़की के शुष्क आंखों का राज। जवान को पता चला कि दिसंबर -सी ये लड़की कभी माँ नहीं बन सकती। बचपन में एक एक्सीडेंट ने उस पर यह कहर गिराया था।
इससे पहले कि वो लड़की जिंदा मुस्कान लिए, जवान चमकीली राहों से गुजरती, उसे अपने बारे में सब कुछ पता चल चुका था।
जनवरी-से जवान की अपनी मजबूरियाँ थीं। वो संघर्षशील माँ-बाप की इकलौती संतान था। और फिर जैसा अक्सर होता है, उसे भी माँ बाप के आँसुओं के आगे अपने प्यार को कुर्बान करना पड़ा ।
दिसंबर-सी लड़की का हाथ छुड़ाकर चला गया जनवरी- सा लड़का। नए साल में नया संसार बसाने, इस दुनिया के लिए एक नई दुनिया बसाने, लेकिन उस छुअन को नहीं भूल पाया। कुछ देर के लिए ही सही, मिले तो थे।
आज भी वो जश्न मनाते हैं । इकतीस दिसंबर और एक जनवरी की मध्यरात्रि को, जब घड़ी की सुईयां एक दूसरे से गलबहियाँ करतीं हैं, जैसे दिसंबर-सी लड़की, जनवरी-से जवान से मिल रही हो। एक पल के लिए ही सही...वो मिलते तो है। आज सारी दुनिया इस मिलन की साक्षी है,और यह जश्न चारों ओर है!
प्रेम का जिंदा रहना ज्यादा जरूरी है। है न!............
'पगली'
“रात के आगोश में चमकते सितारे यूँ लगते हैं गोया कि माँओं के आंचल में छिपे बैठे शैतान बच्चों की मचलती हुई आँखें और आसमान का चाँद फुल पावर का स्म्क् गोल बल्ब। वो जो ध्रुव तारा है, बिलकुल अपने छोटे भाई की तरह लगता है; जिद्दी, मेरी तरह। उसे भगवान पाने की जिद थी और मुझे अपनी माँ को एक बात बताने की, कि जब वो स्कूल जाती है बच्चों को पढ़ाने, तब पापा ऑफिस से जल्दी आकर बगल वाली आंटी को साड़ी पहनाना सिखाते हैं। हाँ! यही तो पूछा था मैंने जब वे आंटी की साड़ी पकड़ कर खड़े हुए थे।“
बड़की का मन दौड़ रहा था और वो बड़बड़ा रही थी।
''पापा जब आप इतनी अच्छी साड़ी आन्टी को पहनाना सिखाते हो तो मम्मी को भी सिखा देना। मैं मम्मी को बताऊंगी कि आप बहुत अच्छी साड़ी पहनाते हो''
बड़की को याद आ रही थीं ये बातें, कि हाथ गाल पर चला गया ,जब पापा ने इस बात पर इतनी जोर से थप्पड़ मारा था कि उसे तारे ही तारे दिखाई देने लग गए थे और तब से हमेशा तारे दिखाई देते हैं रात हो कि दिन।
तभी छुटकी की आवाज आई, ''बड़ी ,यह क्या बड़बड़ा रही हो?”
तो बड़की ने बताया उसे,
''यह चाँद है ना ...यह स्म्क् बल्ब है और ये जो सितारे है ना ..ये ढेर सारे बच्चों की ढेर सारी आँखें हैं ....शैतान बच्चों की ....और वह जो ध्रुवतारा है ना... वह ..वह भाई है हमारा ,छोटू -सा..जिद्दी सा....”
''फिर वही उलटी पुलटी बातें ''
छुटकी ने एहतिहात जताते हुए कहा,
''ज्यादा सोचा ना कर वर्ना मम्मी पापा फिर ले जाएंगे तुम्हें, डॉक्टर के पास 'पागलखाने'''।