ख़ुसरू और शीरीन

नेज़ामी उस समय के पहले कवि थे जिन्होंने वर्गों की असमानता की बातें की हैं। उनका प्रसिद्ध काव्य-खण्ड ''खुसरू और शीरीन'' इसी विचार पर आधारित उनकी श्रेष्ठ प्रेम रचना है। जिसमें प्रेम की ऊँचाइयों को विरह की नई अभिव्यक्तियों के साथ बयान किया गया, जिसमें औरत और मर्द की बनावट का अलग-अलग मनोविज्ञान दर्शाया गया है जहाँ दोनों बादशाह हैं, मगर प्यार के तेवर बिल्कुल अलग कसौटी पर रखते हैं जहाँ आज के मर्द औरत भी अपनी झलक देख सकते हैं।



शाह हरमुज़़ ने राज की बाग़डोर संभाली और हज़ारों मन्नत मुरादों और असंख्य पशु बलि के बाद वह, एक बेटे का बाप बन गया जिसका नाम उसने परवेज़ रखा और दासियों की देखरेख में वह नौनिहाल एक गोद से दूसरी गोद में किलकारी मारता बड़ा होने लगा। जब वह चैदह वर्ष का हुआ तो उसे हकीम 'बुर्जुग उम्मीद' की शार्गिदी में दे दिया और सारी कलाओं के साथ पहलवानी भी सीखने लगा। बादशाह उसे संसार की हर वस्तु से अधिक प्यार करता था बल्कि वह उस पर अपनी जान भी निछावर कर सकता था। बादशाह हरमुज़़ ने इस कारण कि उसका शहज़ादा सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करे और वह प्रजा के दुख-सुख का पूरा ध्यान रखे, उसने न्याय के लिए मुनादी करा दी कि जो आदमी किसी दूसरे को दुख पहुँचाएगा या अपना घोड़ा दूसरे के खेत में चरने को छोड़ेगा उसे अवश्य दंड दिया जायेगा।


इत्तिफ़ाक़ से एक रोज परवेज़ शिकार खेलने गया। वह दिन भर शिकार में डूबा रहा, रात हुई तो उसने एक घर में वहीं महफिल जमाई और शराब और कबाब में शिकार की थकान उतारने लगा। इस बीच जाने कैसे उसका घोड़ा छूटकर पास के खेत में घुस गया और वहां उसने फसल का काफी नुकसान किया और उसके गुलाम अंगूर के बाग़ में पहुँचे और अंगूर भी जी भर कर खाये और तोड़े। छोटे से घर में साज व आवाज़ के शोर से वहाँ के रहने वालों का जीना हराम कर दिया।


प्रजा में हाहाकार मच गया और बादशाह के पास सन्देश भेजा गया कि परवेज़ ने प्रजा पर अत्याचार करने आरम्भ कर दिये हैं। उसके घोड़े ने खेत की फसल रौंद डाली है और उसके गुलामों ने बाग़ में घुस कर अंगूर के गुच्छे चुराए हैं। परवेज़ एक किसान के घर बलपूर्वक घुस गया और रात भर शराब पीकर शोर मचाता रहा। जिससे स्त्रियों को बड़ा कष्ट हुआ और लोगों ने दुःख में यहां तक कह दिया कि 'हरमुज़़ यदि शहज़ादे की हरकतें यही रहीं तो हम उसे तेरा बेटा नहीं मानेंगे। खुदा उसे गारत करे।'


हरमुज़़ ने बेटे को सज़ा देने के लिए एक तरह से उसे नकार दिया और आज्ञा दी कि परवेज़ के घोड़े के पैर काट दिये जायें, उसका गुलाम उस किसान को बख्श दिया जाये, जिसके घर में घुसकर उसने रंगरलियां मनाई थीं, उसको तख़्त दे दिया जाए। जिस वादक ने सितार बजाया था उसके नाखून काट दिये जायें और उस सितार को तोड़-फोड़ दिया जाये।


(कितना विचित्र है कि प्राचीनकाल में लोग किसी गलती पर केवल दूसरों को नहीं बल्कि अपने जिगर के टुकड़ों को भी वैसी ही सजा़ देते थे। वह आग की पूजा भले करते थे परन्तु उनके कुफर में सच्चाई की वह गर्मी थी कि हमें अपने मुसलमान होने पर शर्म महसूस होती है।)


परवेज़ ने देखा कि पिता ने जो उसे सजा़ दी है वह न्याय पर आधारित है उसे अपने अपमान का दुख हुआ और एक आदमी को अपनी सिफारिश के लिए साथ लेकर पिता के सामने उपस्थित हुआ। वहां पहुँच कर वह पिता के सामने नतमस्तक हुआ और अपनी नादानियों और जवानी में हुई गलतियों पर पश्चाताप के आंसू बहाए और क्षमाप्रार्थी हुआ। हरमुज़़ ने देखा बेटे को अपनी हरकतों का अहसास है वह सजा़ भुगतने के लिए राजी है, यह देखकर उसने बेटे को माफ कर दिया। उसके माथे का चुम्बन लिया और उसको अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।


परवेज़ खुशी-खुशी अपने महल लौटा और रात को उसने सपने में अपने पूज्य दादा को देखा जो चार चीजों का वरदान दे रहे थे। जो इस प्रकार से थे:


प्रथम - वह अपनी सजा़ को संतोष और खुशी से भुगतने के लिए तैयार हो गया था इसलिए उसे शीरीन नाम की प्रियतमा मिलेगी।


द्वितीय - चूंकि उसके प्रिय शबरंगी घोड़े के पैर काट दिये गये थे। इस कारण उसे शबदीज़ नाम का काले रंग का घोड़ा मिलेगा।


तृतीय - चूंकि उसका तख़्त किसान को दे दिया गया है। इसलिए उसे 'तख़्ते ताकदीस' मिलेगा!


चैथा - चूंकि उसे साज और संगीत से दूर कर दिया गया था। इस कारण उसे बारबद जैसा संगीतज्ञ मिलेगा।


इस सपने से जब परवेज़ जागा तो उसने खुदा का शुक्र अदा किया और अपने सपने के सच होने का इन्तज़ार करने लगा। उसका एक मित्र शाहपुर था जो बहुत बड़ा कलाकार और दक्ष चित्रकार था। एक दिन शाहपुर शहज़ादे के सामने उपस्थित हुआ और धरती का चुम्बन लेकर यूं कहने लगा- यदि आज्ञा हो तो कुछ मज़ेदार बातें सुनाऊं?' पहाड़ों के उस पार एक औरत का राज्य है वह शाही कुटुम्ब से संबंध रखती है उसका नाम महीनबानो है, आरान से अरमनिस्तान तक सारा इलाका उसके राज्य में सम्मिलित है उसकी एक भतीजी है, लड़की क्या है चांद का टुकड़ा है। उसके शरीर से फूटती चाँदनी से रात जगमगा जाती है। उसकी आंखों के कालेपन में आबे हयात हिलोरें लेता है, उसके होंठ रसीले हैं या रस से भरे लाल मणि हैं। उसके बाल हैं या बटी हुई कमबंद, जब वह मुस्कुराती है तो उसके दांत मोती की लड़ी की तरह दमक उठते हैं। जिससे उसके रूप का लावण्य सौ गुना बढ़ जाता है। आश्चर्य है कि होठों व उसकी हँसी में नमक भी है और मिठास भी। उसके कपोल चमेली के फूल जैसे सफेद और बदन चमेली के पुष्प की तरह सुगन्धित, उसके सीने कच्चे अनार की तरह हैं और गर्दन


हिरणी समान है। उसका रंगरूप शक्कर हैं बल्कि उसका नाम ही शीरीन (मिठास) है।


शाहपुर ने कहा, शीरीन महीनबानों की उत्तराधिकारी है। उसके पास शबदीज़ नामक घोड़ा है जो इस समय का तीव्रगामी घोड़ा है। आंधी आये या तूफान उसका वेग एक समान, हवा से बातें करता है।


शाहपुर ने शीरीन और शबदीज़़ का इतना बखान किया कि परवेज़ के लिए सोना-जागना उठना-बैठना हराम हो गया। वह मन ही मन शीरीन के बारे में सोच कर खिल उठता। अन्त में उसने एक दिन शाहपुर से कहा - “जो कहानी तुमने आरंभ की है उसे अन्त तक पहुंचाओ। यदि वास्तव में शीरीन का मन मोम की तरह नरम है तो उसपर मेरा चित्र अंकित करने की कोशिश करो और यदि वह फौलाद की तरह कठोर दिल है तो ठण्डा लोहा काटने से क्या फायदा? तब तुम फौरन लौट आना और मुझे सूचित करना।


शाहपुर ने धरती का चुम्बन लिया और शहज़ादे परवेज़ को आशा बंधाई वह किसी न किसी प्रकार अपने स्वामी को उस दिलरुबा के पास पहुँचाएगा जब तक आपका सर उसी दिलरुबा की गोद में न देख लूं। मैं दम नहीं लूंगा, यदि उसे न ला सका तो फिर स्वयं पलट कर नहीं आऊंगा।'


शाहपुर ने यात्रा की तैयारी की और पहाड़ों की तरफ चल पड़ा। चलते-चलते वह एक सरसब्ज़ जगह पहुंचा जहां शीरीन और उसकी कनीज़़़ें ग्रीष्म ऋतु व्यतीत करने आती थीं। शाहपुर थकन से चूर-चूर था। वहीं पास के एक खण्डहर में उसने पनाह ली।


खण्डहर में उसने लोगों से पूछा कि लड़कियां अपना खेमा कहां लगवाती हैं?


''प्रातः वह पहाड़ के दामन में आ जाती है और फिर सारे दिन जश्न मनाती है।” जवाब मिला।


शाहपुर प्रातः उठा और लड़कियों से पहले ही वह उस बाग़ में पहुंच गया और कागज़ पर परवेज़ की तस्वीर बनाई और उस चित्र को एक पेड़ की टहनी पर टांग वह वहां से गायब हो गया। घंटे भर बाद लड़कियां वहां पहुंची और हरी भरी घासों पर अपना सामान रखा और खेलकूद-उछलकूद मस्ती में डूब गईं। चूंकि दूर-दूर तक परिन्दा पर नहीं मार सकता था यह देख लड़कियां नाचने गाने लगीं और उस बियावान जंगल में मंगल जैसा समा बंध गया।


उन्हीं लड़कियों में शीरीन थी जो सितारों में चांद की तरह चमक रही थी। शीरीन मस्ती में जाम पर जाम पी रही थी कि एकाएक उसकी दृष्टि परवेज़ के चित्र पर पड़ी। उसने कनीज़़़ों को आज्ञा दी कि वे चित्र को उतार लाऐं। शीरीन एक घंटे तक टिकटिकी बांधकर तस्वीर को देखती रही वह एक पल के लिए भी अपनी आंखें झपकाने को तैयार न थी। जैसे हर पल उसको अधिक मस्त कर रहा हो। कनीज़़़ों ने जो शीरीन का यह हाल देखा तो मज़ाक में चित्र कहीं छुपा दिया। शीरीन फिर उसे ढूंढ़ लाई। कनीज़़ पहरेदारों ने शीरीन का यह हाल देखा तो डर गई कि कहीं शहज़ादी प्रेमजाल में न फंस जाए। उन्होंने चित्र को फाड़ डाला और बोली, 'यह चित्र परियां उठा लाई हैं हम लोग यहां से कहीं और चलते हैं यह बाग़ भूतों का डेरा लगता है।



लड़कियों ने भूत, परी की छाया से बचने के लिए टुटके-टोने किये और दूसरे जंगल की तरफ घोड़े दौड़ा दिए। लेकिन शाहपुर पहले ही वहां पहुंच चुका था वहां भी उसने उसी प्रकार से परवेज़ का दूसरा चित्र बनाकर पेड़ की शाख पर टांग दिया था। यह जगह भी हरियाली व फूलों से भरी हुई थी। हर शाख पर झूमती चिड़ियें चहचहा रही थीं। धीमी हवाएं सुगन्ध बिखेर रही थीं। लड़कियां वहां पहुंच कर खेलकूद में व्यस्त हो गईं। इसी बीच शीरीन की दृष्टि फिर चित्र पर जा टिकी। वह मन ही मन कह उठी कहीं यह मेरा भ्रम तो नहीं है?'


शीरीन ने एक कनीज़़़ से कहा, 'जा तस्वीर उतार ला।'बजाए लाने के कनीज़़ ने वह चित्र बड़ी चतुरता से छुपा दिया और आकर कहा, वहां तो कोई चित्र नहीं है। यह सब छलावा है, चलो हम लोग यहाँ से दूर कहीं चलते हैं।


लड़कियां तीसरे जंगल में पहुंचीं, थोड़ा दम लिया फिर खाने-पीने, खेलने-कूदने का सामान फैलाया, इधर शाहपुर ने परवेज़ का चित्र उसी प्रकार से लगा दिया। शीरीन ने जब फिर वही चित्र देखा तो उसे बहुत आश्चर्य हुआ। इस बार उसने स्वयं जाकर वह तस्वीर उतारी और सोच में डूब गई।


शीरीन की सखियां समझ गईं कि यह तस्वीर किसी जिन परी के द्वारा नहीं रखी है बल्कि यह काम किसी आदमी का है। इसके बाद वे बोलीं 'हम हर तरह से तेरी मदद करेंगे। यह कहकर वे सब सच्चाई का पता लगाने जंगल में चल दी।


शीरीन की बेचैनी बढ़ने लगी। उसने एक कनीज़़ को जंगल से गुज़रने वालों के पास भेजा कि शायद वह चित्र के बारे में बता सकें। परन्तु सबने इन्कार किया कि वह कुछ नहीं जानते हैं। इस बीच शाहपुर पेड़ क पीछे से बाहर निकल आया। जब शीरीन ने उसे देखा तो शाहपुर का चेहरा उसे जाना पहचाना सा लगा। उसने कनीज़़ से कहा कि वह इस अजनबी से चित्र के बारे में पूछे।


शाहपुर समझ गया कि शिकारी खुद जाल में फंस गया है। कहने लगा, “मैं इतनी सरलता से यह भेद नहीं बता सकता हूं।” यह सुनते ही शीरीन तेज़ी से आगे बढ़ी और स्वयं शाहपुर से बड़े नाज़ व अदा से कहने लगी, “यह अजनबीपन छोड़ो, अपनों जैसी बातें करो।'' शाहपुर ने तन्हाई में जाकर शीरीन को बताया कि यह तस्वीर ईरान के शाह खुसरू परवेज़ की है जिसपर ईरान की धरती को गौरव है जैसे-जैसे शाहपुर परवेज़ के बारे में बताता  जाता, शीरीन की बेचैनी बढ़ती जाती और वह कुरेद-कुरेद कर पूछती जाती थी। जब उसके सारे प्रश्नों का उत्तर शाहपुर ने दे दिये तो शीरीन को टटोलने लगा। शीरीन ने अपने दिल का भेद खोल दिया और बोली, 'मैं अपना दिल इस चित्र को दे चुकी हूं, तुम इस मामले में मेरी मदद करो।'


यह सुनकर शाहपुर ने कहा, 'यह तस्वीर मैंने बनाई है और देर तक वह शीरीन से परवेज़ की बातें करता रहा। शीरीन परवेज़ के बारे में शाहपुर की कही बातें सुनकर ऐसी मस्त हो रही थी जैसे कान से मदिरा पान कर रही हो। अन्त में उसने पूछा, 'अब क्या किया जाए?' शाहपुर ने कहा, 'प्रथम तो यह भेद खुलने न पाए, दूसरे तुम अपने शबदीज़़ घोड़े पर बैठकर यहां से भाग जाओ। मैं शीघ्र ही तुमसे आ मिलूंगा।'


यह कह कर उसने शीरीन को निशानी के तौर पर परवेज़ की अंगूठी दी और कहा - 'यदि रास्ते में तुम्हें परवेज़ से भेंट हो जाए तो उसे यह अंगूठी दिखाना। यदि ऐसा न हो तो


सीधे मदाईन की राह पकड़ना और वहां शाही महल के दरबानों को अंगूठी दिखाना। वे लोग तुम्हें शाही बाग़ में ले जायेंगे, वहां बेखौफ होकर तुम घूमना-फिरना और वहीं तुमसे खुसरू परवेज़ की मुलाकात हो जायेगी।'


अगली सुबह शीरीन ने शिकारियों का वस्त्र धारण किया, कनीज़़ों के साथ शिकार के लिए निकली। इधर-उधर घूमती रही। एक जंगल से दूसरे जंगल में घोड़ा दौड़ाती रही, अचानक उसने शबदीज़़ को ऐड़ लगाई और हवा से बातें करती आंखों से ओझल हो गई। कनीज़़ों ने उसका पीछा किया परन्तु उसकी घूल भी न पा सकीं। वे सब रात गये तक उसे तलाश करती रहीं। अन्त में थकी निराश महीनबानों के पास पहुंची और बड़े दुख के साथ उसको शीरीन के बिछड़ जाने की दुखद घटना सुनाई, दुख से बावली हो महीनबानों ने भतीजी के लिए छाती कूटनी शुरू कर दी।


इधर शीरीन घोड़ा दौड़ाए चली जा रही थी और पूछ-पूछ कर रास्ता तय कर रही थी। चैदह दिनों बाद प्रातः वह एक हरे भरे बाग़ में पहुंची जहां स्वर्ग की सुन्दरता उतर आई थी। वहीं एक चश्मा भी था जिसका पानी अमृत की तरह जीवन दायी था। शीरीन थकन से चूर उसका अंग-अंग टूट रहा था, शरीर धूल से कुम्हला गया था उसने सोचा नहा लेना चाहिए, यह सोच कर उसने घोड़े को पेड़ से बांधा, फिर अपने कपड़े उतारे और कमर पर रेशम का नीला कपड़ा लपेटा ताकि चश्मे के स्वच्छ पानी में वह धूल और थकन को धो डाले।



इधर शाह हरमुज़़ का कान भरने वालों ने बाप को बेटे की तरफ से बदगुमान कर दिया कि परवेज़ ताज व तख़्त हासिल करने की लालच में बाप की जान का दुश्मन बन चुका है। हरमुज़ इस ख़बर से क्रोधित हुआ और बेटे की इस नाफरमानी पर उसे कारागार में डालने का हुक़्म दे डाला। यह ख़बर 'बुजुर्ग उम्मीद' ने शहज़ादे को सुनाई और सलाह दी कि वह यात्रा पर चला जाए। इस बीच शाह हरमुज़ का क्रोध भी शांत हो जाएगा। परवेज़ ने वही किया जो गुरु ने समझाया था। शिकार का बहाना बना परवेज़ माशूक के दीदार को निकल पड़ा। चलते समय उसने महल की कनीज़़ों को आज्ञा दी कि अगर कोई सुन्दरी आये तो उसको स्वागत के साथ महल में उतारें और उसका आवभगत के साथ आदर सत्कार व आराम का ध्यान रखें।


यह केवल इत्तिफ़ाक़ ही था कि परवेज़ अपने कुछ गुलामों के साथ अरमनिस्तान की तरफ जा रहा था, चलते-चलते वह उसी हरे - भरे कुंज की ओर आ पहुँचे जहां शीरीन मौजूद थी। चलते-चलते परवेज़ का घोड़ा अचानक रुक गया। परवेज़ गुलामों से बोला, “तुम लोग घोड़ों को चारा खिलाओ। मैं जरा आसपास का एक चक्कर काट कर आता हूं। वह उस बाग़ में इधर-उधर घूमने लगा। यह वही पल था जब शीरीन ने अपना सुन्दर शरीर नदी के नर्म पानी के सपुर्द किया हुआ था। एकाएक उसकी दृष्टि शीरीन पर पड़ी जो नाफ तक रेशम के नीले कपड़े को लपेटे पानी में ऐसे बैठी थी जैसे कोई पाकीज़ा कमल का फूल पानी में खिला हो।''


शीरीन पानी में बैठी अपनी भीगी लटों को अंगुलियों से सुलझा रही थी। परवेज़ की जवान नज़रें उस पर जम गईं। एक अजनबी को यूं अपनी ओर घूरते देखकर शीरीन ने शरमा कर लटों में अपना मुंह छुपा लिया। परवेज़ ने घबरा कर मुंह फेर लिया, इतने में शीरीन पानी से बाहर निकली कपड़े पहने और शबदीज़़ पर बैठकर हवा से बातें करने लगी। रास्ते भर सोचती गई कि शायद यह जवान वही चित्र वाला युवक तो नहीं है जिसे वह अपना दिल दे बैठी। परन्तु यह जवान परवेज़ कैसे हो सकता है। इसमें तो बादशाहों वाली कोई बात न थी, शीरीन भूल गई थी कि जब राजा महाराजा शिकार पर निकलते हैं तो शहाना लिबास नहीं पहनते हैं ताकि उन्हें कोई पहचान न सके, इसी गुत्थी को सुलझाते हुए वह बहुत दूर निकल गई।


इधर परवेज़ ने दोबारा चश्मे की तरफ देखा तो वहां सन्नाटा था उसने हर तरफ घोड़ा दौड़ाया मगर उस हसीना का कहीं पता न था। परवेज़ ने एक ठंडी सांस भरी और उसकी आंखें आंसुओं से भर गईं। अफसोस, अवसर हाथ से निकल गया, वह हाथ मलते हुए सोचने लगा। उसका भाग्य ही खराब है, दुखी-सा वह अरमनिस्तान की ओर चल पड़ा।


इधर शीरीन जो चली तो सीधे मदाईन जाकर रुकी। शाही महल में उतरी। कनीज़़ों ने उसको हाथों हाथ लिया, फिर उसकी सेवा सम्मान में ऐसा लग गई जैसे वास्तव में वह उनकी मलिका हो। शीरीन के घोड़े को शाही अस्तबल में रखा गया कनीज़़ों ने जब उसे बताया कि परवेज़ शिकार को गया है और वहां से वह अरमनिस्तान की ओर जायेगा तो उसका दिल दर्द से फटने लगा। अब उसे पक्का विश्वास हो गया कि रास्ते वाला जवान खुसरू परवेज़ ही था। अपने ऊपर उसे क्रोध आ रहा था, परन्तु सिर्फ खून के घूंट पीने और प्रतिक्षा करने के अलावा कोई दूसरा चारा उसके पास न था।


कुछ अरसे बाद शीरीन को पता चला कि परवेज़ अपने पिता के डर से अरमनिस्तान की तरफ गया है। इस ख़बर से आगाह होने के बाद वह उदास और ग़मग़ीन हो उठी। हर दिन उसकी पीर पर्वत में ढल रही थी और हर पल महल में शीरीन का दम घुट रहा था। आखिर उसने कनीज़़ों से कहा कि उसकी तबियत ठीक नहीं है उसके लिए एक महल पहाड़ पर बना दिया जाये, क्योंकि उसको पहाड़ पर रहने की आदत है। यहां की गर्म हवा से उसका मुख पीला पड़ता जा रहा है।


कनीज़़ों ने आज्ञाकारी दासियों की तरह माथा टेककर हुक्म बजा लाने के लिए सर झुकाया, परन्तु दरबारी अन्दर-अन्दर ईर्ष्या की ज्वाला से जल रहे थे। राजगीर की मुट्ठी उन्होंने गर्म की और कहा कि महल ऐसे स्थान पर बनाओ जहां की आबो-हवा बहुत ही दूषित हो। राजगीर ने किरमान शाह से दस मील की दूरी पर एक महल बनाया वहां की आबो-हवा ऐसी खराब थी कि हफ्ते भर में ही बच्चा बूढ़ा हो जाए। महल जब बन गया तो शीरीन परवेज़ के इन्तजार में वहां जाकर रहने लगी।


इधर परवेज़ पिता के भय और शीरीन की याद में डूबा रात-दिन घोड़ा दौड़ाता हुआ अरमनिस्तान पहुंच कर महीनबानों का मेहमान हुआ। बानों ने बहुत आवभगत की और 'बस्तीद' नामक बाग़ में उसे ठहराया। बाग़ की आबोहवा गर्म थी और सर्दी में वहां की अजीब छटा थी। खुसरू ने वहां मस्ती से भरपूर दिन गुज़ारे, परन्तु उसे अरमनिस्तान की शराब का स्वाद हमेशा शीरीन की याद में कड़वाहट से परिपूर्ण लगा।


एक दिन उसे पता चला शाहपुर चित्रकार वहां आया हुआ है, वह खुशी से उछल पड़ा। उसने हुक्म दिया कि शाहपुर को उपस्थित किया जाए। शाहपुर आया तो परवेज़ ने उठकर उसे गले लगाया और अकेले में ले जाकर उससे शीरीन का कुशलक्षेम पूछा। शाहपुर ने शुरू से आखिर तक सारी कथा कह सुनाई कि किस प्रकार उसने चित्र बनाए और शीरीन को भागने में सहायता दी। खुसरू परवेज़ ने भी शीरीन के चश्में में नहाने और गायब हो जाने की बात बताई। आखिर दोनों ने सलाह मशविरा करके यह तय किया कि महीनबानों से कहा जाये कि सरकश घोड़ा शीरीन को दूसरे ओर ले गया है। बेहतर है उनके लिए शबदीज़़ जैसा तेज़ दौड़ने वाला घोड़ा मंगाया जाए ताकि वे मदाईन जाकर शीरीन को ले आए।' क्योकि इस समय कासिद भेजना उचित नहीं लगता। यह समाचार सुन महीनबानों खुश हुई और 'गुलगून' नामक घोड़ा शबदीज़़ की तरह का उन्हें दिया। शाहपुर उस पर बैठा और हवा से बातें करने लगा।


शाहपुर जब मदाईन पहुंचा तो उसने शीरीन को उदास और दुखी पाया। शाहपुर ने उसे परवेज़ की बात बताई और दोनों अरमनिस्तान की ओर चल पड़े। इधर परवेज़ शीरीन की याद में घुलता रहा। इसी बीच मदाईन से सन्देशवाहक आया कि उसके पिता बादशाह हरमुज़ स्वर्ग सिधार गये हैं। यह खबर दुख का पहाड़ बनकर परवेज़ के ऊपर टूटी, वह मदाईन जाने की तैयारी करने लगा, परन्तु उसका मन शीरीन में अटका हुआ था। कुछ दिन बाद शाहपुर शीरीन के साथ अरमनिस्तान पहुंचा, महीनबानों अपनी खोई भतीजी को पाकर बहुत खुश हुई और पिछली बातों को उसने माफ कर दिया, परन्तु शीरीन को परवेज़ नहीं मिल सका।


परवेज़ मदाईन पहुंच कर ईरान के तख़्त पर बैठा। परन्तु कठिन समय अभी समाप्त नहीं हुआ था। अभी पिता का सोग समाप्त नहीं हो पाया था कि बहराम चैबीन जो बादशाह के फौज में था। उसने अचानक बाग़ी होकर आक्रमण कर दिया। उसने छल कपट के साथ प्रजा को अपने में मिला लिया। यह कह कर कि परवेज़ एक हव्सबाज़ जवान है। तख़्त पर बैठने के लायक नहीं है। अब परवेज़ ने अपने को अकेला निसहाय-सा पाया तो घबरा कर आजरबैजान भाग गया और वहां मूकान में ठहरा। अचानक एक दिन शिकार खेलने में उसे शीरीन मिल गई जो वहां आई हुई थी, दोनों की आंखें एक दूसरे को देखकर सजल हो उठीं और माथे खुदा के आगे झुक गये। क्योंकि इस बार न दोनों एक दूसरे से जुदा हुए और न ही गुलगून व शबदीज़ ने एक दूसरे का रास्ता काटा।



जब महीनबानों को दोनों की मुलाकात का पता चला तो उसने परवेज़ को बुलाकर अपने यहां दूसरी बार शाही अतिथि बनाया। उसके पास बहुत सारे बहुमूल्य उपहार भेजे और उसके स्वागत में बहुत बड़े राजसी भोज का आयोजन किया। परन्तु उसके साथ वह इन दोनों का अनुराग देखकर चिंतित हुई। यह आग और तेल का खतरनाक खेल कब तक चलेगा। आखिर उसने शीरीन को अपने पास बुलाया और कहा - 'तुम एक ऐसे खज़ाने के समान हो जिसको किसी ने हाथ नहीं लगाया है, न तुमने संसार की अच्छाई-बुराई ही देखी है। मुझे लगता है परवेज़ तुमसे ब्याह की बात सोच रहा है। परन्तु मेरी एक बात गिरह में बांध लो वह जितनी बेचैनी दिखाए, तुम अक़्ल का दामन हाथ से मत छोड़ना, कहीं ऐसा न हो कि वह मीठी बातें करके तुम्हारी मिठास को चूस ले और तुम्हें जूठा करके छोड़ दे और फिर किसी अन्य पुष्प के पीछे चला जाए। क्योंकि इस संसार में ऐसा होता है कि लोग ताज़ा खिले नाजुक पुष्प की तरफ लपकते हैं पर उसे सूंघने के बाद पैरों तले रौंद देते हैं।


शीरीन ने महीनबानों की उपदेश भरी बातों को सुनकर कहा, “मैं सौगन्ध खाती हूं इन सितारों की और पवित्र पुस्तक की, कि मुझे परवेज़ के इश्क़ में खून के आंसू रोने पड़ें, परन्तु जब तक उसकी बाका़यदा पत्नी नहीं बनूंगी अपने आपको पवित्र रखूगी।'' इसके बाद महीनबानों ने शीरीन को आज्ञा दे दी कि वह कनीज़़ों की उपस्थिति में परवेज़ से मिल सकती


वसंत का मौसम था। चारों तरफ फूल व हरियाली का बोलबाला था। एक दिन शीरीन अपनी सहेलियों और परवेज़ को लेकर चैगान खेलने निकली, लड़कियों ने खूब शोर मचाया, और खेल में वह दक्षता दिखाई की परवेज़ ने भी दाँतों तले उंगली दबा ली। अब परवेज़ और शीरीन की बारी थी। दोनों ने खेल आरंभ किया। कभी खुसरू परवेज़ गेंद लेकर भागता, कभी शीरीन, जैसे दोनों चन्द्र व सूर्य हों जो एक दूसरे के पीछे भाग रहे हों।


खेल समाप्त हुआ तो काफिला मैदान की ओर निकल कर शिकार खेलने में व्यस्त हो गया। रात हुई तो सब वहीं थक कर सो गये। इस प्रकार से उन्होंने एक मास जंगल में व्यतीत किया। परवेज़ सदा इस अवसर की तलाश में रहता कि किसी प्रकार शीरीन से अपने दिल का हाल बयान कर सके। परन्तु कनीज़़ें हर समय शीरीन को घेरे रहती थीं और परवेज़ दिल मसोस कर रह जाता था।


एक दिन यह लोग एक बाग़ में पहुंचे, खाने-पीने की चीजें रखकर दास, दासियां सब चन्द्राकार गोलाई में बैठ गये और बीच में शीरीन और खुसरू बैठ गये, शराब का दौर चल रहा था कि झाड़ी से एक शेर निकला और उन पर झपट पड़ा। सारे लोग सर पर पैर रखकर भागे केवल परवेज़ रह गया। शेर उसकी ओर लपका, परवेज़ के शरीर पर केवल मामूली सा वस्त्र था। न जिरिहवक़्तर थी न तलवार, शराब का नशा अलग, परन्तु उसने हिम्मत से काम लिया। एक जोरदार घूसा शेर के माथे पर ऐसा मारा कि शेर चकरा कर वहीं ढेर हो गया। यह देखते ही गुलामों ने शेर को मार डाला और उसकी खाल निकाल कर रख ली।


परवेज़ की बहादुरी देखकर शीरीन दंग रह गई। उसने बढ़ कर परवेज़ का हाथ चूम लिया और जवाब में परवेज़ ने शीरीन के होंठों पर अपने होंठ रख दिये जैसे बता रहा हो कि चुम्बन की जगह हाथ नहीं, होंठ हैं। शीरीन के होंठ क्या थे, शक्कर के भरे प्याले थे, आज परवेज़ ने इस तरह से अपने दिल की बात शीरीन से आखिरकार कह ही दी।


इसके बाद परवेज़ ने जाम पर जाम चढ़ाए परन्तु कभी भी वह उस अनोखी मदिरापान का स्वाद न भुला सका।


इस घटना के पश्चात शीरीन व खुसरू रात-दिन मगन खूब शराब पीते, जंगल में जंगली फूल चुनते और जब कभी अवसर मिलता तो एक दूसरे के ओठों का चुम्बन लेते। शीरीन लज्जा से दोहरी हो जाती और भाग जाती। खुसरू सोचता रहता कि कभी शीरीन मस्त होगी तो उसकी इच्छा की पूर्ति हो जायेगी।


आखिरकार एक रात समारोह आयोजित हुआ। बहार की मस्ती चारों तरफ छाई थी। आसमान पर चांद जगमगा रहा था। शराब का दौर चल रहा था। ठण्डी-ठण्डी हवा बह कर नशे को दुगना कर रही थी। थोड़ी देर में सबकी आंखों में नींद का खुमार छाने लगा और एक-एक कर सब सोने चल दिये। तन्हाई देखकर नशे में डूबा खुसरू शीरीन के दामन से लिपट गया। उसका आग्रह देखकर स्वयं शीरीन दो दिल हो गई, परन्तु बलपूर्वक उसने अपनी इच्छाओं पर काबू पा लिया। मगर परवेज़ कहाँ मानने वाला था, अपनी मुराद पूरी न होते देख कहने लगा मुझे डर है कि कल तुम्हारा चेहरा खराशों से भर जायेगा जब मेरे जैसा आशिक मर जायेगा। मेरे खून का धब्बा तुम्हारे दामन को दागदार कर देगा, क्योंकि आशिकों का खून कभी बेकार नहीं जाता। मैं एक बोसे का ही तो ख्वाहिशमन्द हूँ। यह इल्तिजा सुनकर शीरीन नहीं पिघली। परवेज़ अपनी बेताबी का इज़हार करता रहा।


''यह परिन्दा” भूख और प्यास से तड़पता हुआ तुम्हारे दामन पर आन गिरा है, इसका कुछ तो ख्याल रखो। देखो, यहाँ तन्हाई है। मेरे और तुम्हारे सिवा कौन है?


उसकी बेकरारी देखकर शीरीन ने केवल इतना कहा, ''गर्मी के मौसम में मिठास खाना नुकसानदेह है।''


इस तरह का ठंडा जवाब सुनकर भी परवेज़ न माना तो शीरीन ने कहा, ''मुझसे ऐसी बात की उम्मीद न करो जो मेरी आबरूरेज़ी की वजह बने और मैं उसे अंजाम न दे सकू।'' फिर उसे उपदेश देती हुई बोली, “यदि तुम्हें मुहब्बत की इतनी चाहत है जिससे मुझे डर लगता है कि तुम अपनी शाही ज़िम्मेदारियों को भूल जाओगे, अगर तुम अपना राजपाट दोबारा हासिल करना चाहते हो तो उस तरफ पहले ध्यान दो वरना मुझे भूल जाओ।


परवेज़ इस दो टूक जवाब से जहां आहत हुआ वहीं


क्रोधित भी। उसका दिल ग़म से फटने लगा


''तेरी दीवानगी ही मेरे तख््त व ताज से दूरी की वजह बनी। तेरे जुनून ने ही मुझे हर चीज से बेगाना कर दिया और अब तू मुझे इस तरह दुतकार रही है?'' इतना कह वह शबदीज़़ पर उचक कर बैठा और आहत स्वर में कहा, “मैं चलता हूं! शबाखैर!''


दिल में तख़्त व ताज के खोने और शीरीन के इस बर्ताव का घाव लिए वह रोम की तरफ चल पड़ा। उसकी शिराओं में पारा तड़प रहा था कि उसे अब अपना खोया अभिमान वापस लेना है।


जगह-जगह ठहरता, वह भारी मन लिए किसतुनतुनिया पहुंचा, रोम के बादशाह ने उसका शानदार स्वागत किया, अपने को भाग्यशाली समझा और अपनी लड़की मरियम से उसका विवाह किया और एक बड़ी भारी फौज के साथ उन्हें विदा किया। खुसरू रोम के योद्धाओं को लेकर मदाईन पहुंचा और बहराम चैबीन से इस तरह टक्कर ली जिसमें हिन्दुस्तानी तलवारों से दुश्मनों के सर तरबूज की तरह कट-कटकर गिरने लगे, बहराम  चैबीन बुरी तरह हार गया और खुसरू परवेज़ दोबारा सिंहासन पर बैठा। उसे संसार भर का ऐश्वर्य प्राप्त था परन्तु शीरीन की याद उसे बराबर सताती थी।


इधर शीरीन भी अपने खोये महबूब के लिए विरह की आग में जल रही थी, खुद को कोसती कि उसने खुद अपने पैरों में कुल्हाड़ी मारी है। शाहपुर और महीनबानों उसे समझाते, उसे सब्र करने के लिए कहते हैं। कुछ समय पश्चात् महीनबानों बीमार पड़ी और खजाने की कुंजी शीरीन को देकर इस संसार से चल बसी।


शीरीन अरमनिस्तान के तख़्त पर बैठी उसने कैदियों को आजाद किया और न्याय के साथ राजकाज में लग गई। परन्तु उसका मन राजकाज में नहीं रमता था। वह तो बस खुसरू के प्रेम में तड़पता रहता था। उसे परवेज़ का गुस्सा और अपना क्रोध याद आता तो वह मन ही मन पछताती थी। हर आते-जाते से उसका पता पूछती थी, अन्त में उसे पता चल गया कि खुसरू दोबारा तख़्त पर बैठ गया है और मरयम नाम की एक औरत से शादी कर ली है। उसे यह भी पता चला कि मरयम बड़े कठोर हृदय वाली औरत है। उसने खुसरू से सौगन्ध ले रखी है कि उसके जीते जी वह दूसरा विवाह नहीं कर सकता है। यह सब सुनकर शीरीन खून के आंसू रोई परन्तु फिर सोचने लगी, एक बार मदाईन चलकर किस्मत आज़माने में बुराई नहीं है। उसने सिंहासन की बाग़डोर अपने विश्वासी वज़ीर के हाथों सौंपी और बहुत सारी दासियों और खज़ाने के साथ मदाईन की ओर चल पड़ी। वहां पहुंच कर वह उसी महल में ठहरी जिसमें पहले वह ठहर चुकी थी।


खुसरू को शीरीन के आने की खबर मिली तो उसकी प्रसन्नता की सीमा न रही। परन्तु मरयम का डर था क्या करता, केवल पत्र और सन्देश तक बात बढ़ी। लेकिन धीरे-धीरे खुसरू की प्रेम अग्नि ज़ोर पकड़ती गई। एक दिन बेताब हो नशे की हालत में वह मरयम के पास पहुंचा और मन में दबी इच्छा उससे बयान कर बैठा- “यदि आज्ञा हो तो शीरीन को इसी महल में ले आऊं?'' परन्तु मरयम कब पिघलने वाली थी उसने कहा- 'तुमने सौगन्ध खाई थी, यदि तुम शीरीन को यहां लाए तो मैं बाप की सौगन्ध खाकर कहती हूं कि मैं अपने को फांसी लगा लूंगी।


शाहपुर खुसरू और शीरीन के बीच सन्देशवाहक बना था, एक दिन शाहपुर से खुसरू परवेज़ ने कहा, “तुम चुपके से शीरीन को मेरे महल ले आओ, मैं मणि की तरह उसे छुपा कर रखूँगा। परन्तु मेरे हालात ऐसे नहीं हैं कि मैं डंके की चोट पर उससे प्रेम करूं। चूंकि मरयम बला की ईष्र्यालू औरत है। मुझे डर है यदि मरयम को पता चल गया तो वह ईसा की तरह फांसी पर चढ़ जायेगी। उचित यही है कि मैं शीरीन के साथ गुप्त सम्बन्ध रखंू।''


शाहपुर शीरीन के पास गया और बताया, “खुसरू तुम्हें पाने के लिए बेचैन है लेकिन मरयम को देखकर उसका सारा जोश ठण्डा पड़ जाता है। खुसरू की मजबूरी यह है कि वह रोम के शाह के सामने दूसरा विवाह न करने की शपथ ले चुका है अगर तुम उचित जानों तो छुपकर खुसरू के महल में जाकर विरह की अग्नि को शांत कर लो।'' इस पैगाम को सुनकर शीरीन शाहपुर पर बुरी तरह बरस पड़ी जिसको सुन शाहपुर भौचक रह गया। उसने क्रोध में उबलते हुए पहले जी भर कर शाहपुर को बुरा-भला कहा, “तुम्हें लाज नहीं आती? क्या तुम बिल्कुल ही अधर्मी हो गये हो, क्या यहां का दस्तूर यही है कि जो मोती दिखे उसे गूंथ लो और जो बात समझ में आये बक दो। मैं एक उच्च कुलीन घराने की लड़की हूं, ऐसी तुच्छता की मुझसे आशा न रखना, मुझसे कभी न होगा कि मैं छुपकर खुसरू के महल में जाऊं? मैं यहाँ घुट-घुट कर पल-पल गुजार रही हूं और वह महल में मरयम के साथ गुलछर्रे उड़ा रहा है। ऐसे संगदिल से दिल लगाने से क्या मिला? मैं कभी भी इस दर्द की जलन को भूल नहीं सकती हूं कि मैं परदेश में मोम की तरह विरह की आग में पिघल रही हूं और मरयम खुसरू के साथ मिलन का सुख भोग रही है। फिर एकाएक शीरीन तुनककर शाहपुर से बोली, “यदि खुसरू मेरे प्रेम का दावा करे तो कहना- शीरीन इन बहलावों में आने से रही, अगर वह यह कहे कि मैं मिलन की भोर का इच्छुक हूं तो कहना सो जाओ रात बहुत लम्बी है। अगर वह यह कहे कि मैं शीरीन को सीने से लगाना चाहता हूं तो कहना - इस आरजू को दिल से निकाल दे और अगर वह कहे कि मैं चाँद के बराबर अपना चेहरा रखूँ और उससे इर्षा करूं तो यह मुमकिन नहीं है- ठीक उस शतरंज की वीसात पर शाह व रूख़ का क्या जोड़।


शीरीन ने अब तक खुसरू के प्रेम में जो मुश्किलें उठाई थीं यह सोचकर उसका दिल भर आया। वह अपने आपसे बोली- “यह आग मेरे अस्तित्व को जला कर राख कर देगी, इस इश्क़ में रात की नींद और दिन का चैन गया, परन्तु बदले में खुसरू से एक पल का भी सुकून न मिला। मेरे बहते आंसुओं ने समुद्र और मेरी आहों ने नरक की लपटों को मात कर दिया है।''


शाहपुर ने आदर से धरती का चुम्बन लेकर कहा- “हमारी राय से तुम्हारी राय बेहतर है।'' यह कहकर वह उत्तर देने खुसरू के पास चला गया।


शीरीन का दिल इस जंगली महल में उचाट रहता था। उसके सामने हज़ारों प्रकार के स्वादिष्ट व्यंजन रखे जाते, परन्तु वह केवल घोड़ी का दूध पीकर रहती थी। जहां पर यह महल था उसके आस-पास की वनस्पति कड़वी होने के कारण ग्वाले बहुत दूर चैपायों को चराने ले जाते थे और वहां से दूध लाने में कनीज़़ों को बहुत मुश्किल पड़ती। यह सब देखकर शाहपुर से शीरीन ने एक दिन अपनी मुश्किल बयान की तो शाहपुर कहने लगा कि मेरा एक मित्र है फरहाद वह इस गुत्थी को सुलझा देगा। यूं तो शाहपुर और फरहाद चीन में एक ही उस्ताद के शागिर्द थे, पढ़ाई के बाद शाहपुर ने ब्रश संभाला और फरहाद ने छेनी और हथौड़ी!


शीरीन ने हुक्म दिया कि फौरन फरहाद का पता लगाया जाए। इस बीच शाहपुर संगतराश फरहाद को ढूंढ़ कर शीरीन के हुजूर में ले आया, फरहाद किसी शिला के समान मजबूत और हृष्ट-पुष्ट था और दिल से हर प्रकार के कार्य के लिए कमर कसे हुए था। शीरीन ने अपने दिल लुभावने अन्दाज से बात की और फरहाद उसकी कंठ की शीतलता उसके उच्चारण की कोमलता पर हज़ार जान से मर मिटा। कहते हैं शीरीन को शीरीन नाम इसलिए दिया गया था क्योंकि उसकी बातों में शहद की घुलावट थी। फरहाद उसकी मिठास से अपना सब कुछ खो बैठा और सांप की तरह व्याकुलता से बल खाता जमीन पर सर पटकने लगा।


“शीरीन ने कहा कि कोई ऐसी तरकीब निकालो कि मेरे महल तक आसानी से दूध पहुंच जाए। यहां से जानवरों का बाड़ा काफी दूर है, दूध के लिए कनीज़़ों को दूर जाना पड़ता है। कोई नहर बनाओ जिससे ग्वाले वहां जंगल से दूध डालें तो सीधा मेरे महल तक पहुंच जाए।''


फरहाद, शीरीन को देखकर होश हवास खो बैठा था। उसे कुछ पता नहीं था कि शीरीन क्या कह रही है, जब दूसरों ने उसे शीरीन की बात बताई तो उसने आदर भाव से आंखों पर हाथ रखा। इसके बाद फरहाद अपने काम में तल्लीन हो गया। उसने जंगल से महल तक नहर का रास्ता बना डाला और बड़ी-बड़ी शिलाओं को मोम की तरह तोड़ता एक मास में नहर का काम तमाम कर दिया। नहर जंगल से महल के हौज तक आती थी। ग्वाले ऊपर से दूध डाल देते जो बहता हुआ हौज तक जाता था।


जब शीरीन ने सुना कि नहर का काम फरहाद ने पूरा कर दिया है तो उसे देखने के लिए वह जंगल में आई। उसे फरहाद के कार्य की तत्परता पर आश्चर्य हुआ। उसे यकीन नहीं आ रहा था कि यह किसी आदमी का काम हो सकता है। उसने फरहाद की पत्थर काटने की कला की सबसे प्रशंसा की और अपनी सभा में ऊंचे आसन पर बिठाया और अपने कानों के झुमकों से चन्द मोती निकाल कर उसे भेंट किये। फरहाद ने वह सारे जवाहर शीरीन के कदमों पर निछावर कर दिये और जंगल की ओर चला गया। वह दिल के हाथों मजबूर था। उसे इन चीजों से क्या सरोकार!


फरहाद किसी भटकी आत्मा की तरह जंगलों, पहाड़ों पर घूमता रहता था। इश्क़ ने उसके दिल का चैन और तन का आराम छीन लिया था। उसकी आंखें सावन-भादों की तरह बरसती और दिल और जिगर में आहे उठतीं। उसे अपने दर्द की कोई दवा पता न थी। दोस्तों से दूर फरहाद के साथी अब हिरन व चीतल रह गये थे। रात को छुप कर वह शीरीन के महल में बने हौज के किनारे जाता, चुल्लू भर दूध पीता और वापस जंगल में आ जाता। हर हफ्ते शीरीन उसे महल में बुलाती थी और वह केवल शीरीन का मुख निहारता रहता और जंगल में जा विरह के गीत गाता।


बहुत जल्द फरहाद के इश्क़ की बात हर जगह फैल गई। यहां तक खुसरू परवेज़ के कानों तक पहुंच गई। उसे फरहाद की इस धूर्तता पर क्रोध आया, परन्तु समझ न सका कि इस दीवाने के साथ क्या करे। फरहाद को न तलवार का, न तीर का डर था और न जवान व बूढ़े का लिहाज था, परन्तु खुसरू के प्रेम की अग्नि फरहाद के आचरण को देखकर भड़क उठी। आखिर उसने अपने मित्रों से मशवरा किया कि आखिर इस पागल के साथ क्या व्यवहार किया जाए? क्योंकि यदि छोड़ देता हूं तो मेरी बात बिगड़ती है। यदि मरवा देता हूं तो एक बेगुनाह के खून से हाथ रंगता हूं।


दरबारियों में से कुछ ने कहा- 'इस मुश्किल का हल पैसा है, पैसा देखकर आंख वाला भी अंधा हो जाता है और लोहा मोम बनकर पिघल जाता है। यह सुनकर खुसरू परवेज़ ने पत्थर तराश फरहाद को दरबार में बुलाया, फरहाद हाज़िर हुआ। उसकी नज़रें नीची थीं, उसने खुसरू के शहाना तख़्त व ताज की तरफ आंख उठाकर भी नहीं देखा। वह सांसारिक सुखों और लालचों से दूर था। खुसरू के इशारे से, गुलामों ने हीरे जवाहरात के ढेर फरहाद के कदमों पर लगा दिये, परन्तु जो मोती फरहाद के दिल में था उसके आगे सब कुछ हीन था।


जब खुसरू ने देखा कि वह जवाहरात की ओर आंख उठाकर नहीं देख रहा है तो उसने इधर-उधर की बात शुरू कर दी। खुसरू की हर बात का जवाब फरहाद देता, उसकी बातों से थक कर खुसरू मित्रों से बोला, “मैंने आज तक इतना हाज़िर जवाब आदमी नहीं देखा।''


इसके बाद खुसरू ने फरहाद से कहा, “क्या अच्छा होता जो तुम विस्तों पहाड़ के बीच से लोगों के आने-जाने के लिए एक रास्ता बना दे। फरहाद अभी सोच रहा था कि खुसरू ने उसे शीरीन की कसम दे दी और फरहाद ने इस शर्त के साथ काम करना मंजूर कर लिया कि खुसरू अपने दिल से शीरीन का अनुराग निकाल दे। यह सुनते ही खुसरू के तन-बदन में आग लग गई, इसकी इतनी हिम्मत? फिर खून के घूँंट पीकर सोचने लगा इतने कठिन काम के अन्त तक तो फरहाद स्वयं अपनी जान से हाथ धो बैठेगा।


जोर-शोर से काम शुरू हुआ, सबसे पहले फरहाद ने एक बड़ी चट्टान काट कर शीरीन की मूर्ति बनाई, फिर खुसरू और उसके घोड़े शबदीज़़ की फिर अपने काम में जुट गया।


फरहाद रोज शीरीन की मूर्ति का चुम्बन लेता, कभी रोता और पत्थरों से अपना दर्दे दिल कहता हुआ काम में लगा रहता। मैंने कभी जवानी के सपने देखे थे, परन्तु अब तो केवल मृत्यु ही मेरे लिए रह गई है जिसने मुझे इस काम पर लगाया है वह मेरी मौत का इच्छुक है। आत्मा में दर्द की मिलावट ऐसी घुल-मिल गई है कि अब मरना ही उचित है। अपनी बेबसी पर फरहाद आठ-आठ आंसू रोता हुआ अपने भाग्य की शिकायत करता “अगर मैं कुएं में सौ साल तक क़ैद कर दिया जाऊं तो भी मुझे वहां देखने वाला कौन है, केवल इन आहों के। यह


धरती कुत्तों के रहने की जगह है। पहाड़ों पर शेर और दरिया में घड़ियाल रहते हैं, वीराने में भेड़िया। इस धरती पर घास-फूस के लिए जगह है पर मेरे लिए नहीं है। मुझे कहीं आराम नहीं, न पहाड़ पर न मैदान में।


फरहाद के पहाड़ काटने के चर्चे दूर-दूर तक फैलने लगे। अंत में शीरीन भी फरहाद की दक्षता देखने आई, जब फरहाद ने यह सुना तो उसमें जीवन को नई आभा और स्फूर्ति की नई उमंग आ गई और वह बड़ी-बड़ी चट्टानों को ढेलों की तरह फोड़ने लगा। शीरीन जब आई तो फरहाद के काम से प्रभावित हुई। अपने हाथ से एक प्याला दूध का भर कर उसने फरहाद को दिया और कहा, “अपने दिल से दुख धो डालो और किसी बात के लिए उदास न हो।''


शीरीन लौटने लगी तो उसका घोड़ा पत्थर से ठोकर खाकर गिर पड़ा। यह देखकर फरहाद आगे बढ़ा और शीरीन को घोड़े समेत कंधों पर उठाकर उसके महल छोड़ आया।


इधर खुसरू के पास खबर पहुंची कि जब से शीरीन फरहाद से मिलकर लौटी है फरहाद के जिस्म में जोश उमंग का समुद्र ठाठे मार रहा है और वह मस्त मगन एक चोट में चट्टानें उड़ा रहा है। यदि इस रफ्तार से उसने काम किया तो एक मास में काम समाप्त हो जायेगा। घबरा कर खुसरू ने बड़े बूढ़ों से मशवरा किया। उन्होंने कहा कि, “फरहाद के पास सन्देश भेजा जाए कि शीरीन मर गई। यह खबर सुनकर फरहाद सारा काम काज त्याग देगा। इस षडयंत्र के तय होने के बाद एक कर्कश सन्देशवाहक फरहाद के पास भेजा गया कि तुम जिस शीरीन के लिए पत्थर काट रहे हो वह तो मर गई।” यह सुनते ही फरहाद किसी चैड़ी शिला की तरह पहाड़ से नीचे आ गिरा और रोते हुए कहने लगा। अफसोस! ज़िन्दगी भर दुख झेला और बिना सुख भोगे आज जा रहा हूँ। यह कहकर उसने शीरीन के नाम का नारा लगाया, उसकी याद में धरती का चुम्बन लिया और आंखें बन्द कर ली।


शीरीन को जब फरहाद की मौत का पता चला तो सावन व भादों की तरह बरस पड़ी। उसके अंतिम दाह संस्कार का आयोजन किया और उसके कब्र पर एक बड़ा-सा गुंबद बना दिया। जब यह खबर खुसरू तक पहुंची तो वह डर गया कि कहीं कोई फरहाद के खून का बदला न ले।” फिर उसने शीरीन को फरहाद की मौत पर दुख भरा पत्र लिखा। परन्तु पूरा पत्र दुख प्रकट न कर कटु वचनों से विंधा हुआ था।” तूने उस प्रेमी की कामवासना में पड़कर उसकी मौत पर रो-रोकर आसमान सर पर उठा लिया है, 'जबकि मैं यहां तेरे लिए तड़पता हूं और तू नज़र उठाकर नहीं देखती। तूने खुद फरहाद को मारा । अब ढोंग रचा रही है, तुने खून किया है, तू ही उसका मातम कर तूने उसे बदनाम किया है। अब तू ही उसकी प्रशंसा कर परन्तु आह! अब आंसू बहाने से क्या फायदा? अगर फरहाद चला गया तो क्या दुख की बात है, खुदा शीरीन को सलामत रखे। उस पीले फूल के मुरझाने का मातम क्यों करे। चमेली की ताजगी तो बाकी है।


शीरीन को खुसरू का खत मिला तो प्रसन्नता से उसका चुम्बन लिया और व्याकुलता से खोला मगर मीठे शब्दों में छुपे जहरीले कटाक्ष से वह घायल हो उठी, पर सोचकर संतोष किया कि देखो भाग्य आगे क्या रंग दिखाता है।'


इस बीच मरयम चल बसी। खुसरू खुश हुआ, परन्तु दुनिया के दिखावे के लिए काले कपड़े पहने और समारोह इत्यादि कुछ समय के लिए बन्द कर दिये। इस खबर से शीरीन भी खुश हुई, मगर परवेज़ के लिए शीरीन ने भी एक मास तक सोग मनाया। इसके बाद शीरीन ने खुसरू के पत्र का उत्तर लिखा पर ज़हर से बुझा हुआ कटु वाणों से बिंधा हुआ।


'अगर बादशाह की मलिका मर गई तो क्या, उसके हरमखाने में न जाने कितनी सुन्दरियां हैं। परन्तु फिर भी मलिका की बात ही अलग थी, पर आशा है बादशाह सलामत सब कुछ भूल जायेंगे और किसी और फूल को पसन्द कर उस पर मंडरायेंगे। बादशाह सलामत दुख न करें, आपकी मलिका तो एक खज़ाना थी, उस खज़ाने को धरती में गाड़ना ही अच्छा है। अगर आपके बाग़ से एक हिरनी गायब हो गई तो क्या पूरा बाग़ हिरनिओं से भरा हुआ है।'


पत्र पढ़कर खुसरू ने सोचा ठीक है ईंट का जवाब पत्थर ही होना चाहिए था। मरयम के सोगवारी का समय समाप्त हुआ तो खुसरू फिर शीरीन के लिए व्याकुल हो उठा और सोचने लगा किसी प्रकार से उस संगदिल को मोम करना चाहिए।


इधर शीरीन को यकीन था कि एक न एक दिन खुसरू उसे अपनी दुल्हन बनाएगा। परन्तु खुसरू का ध्यान इस तरफ फिर भी न गया और दोनों ओर से तनाव बना रहा। परवेज़ शीरीन के नखरो व नाज व अदा व इंकार से थक गया । अन्त में खुसरू परवेज़ ने सोचा कि ऐसा कुछ करना चाहिए कि शीरीन प्रतिशोध की आग में झुलस जाए।


एक दिन जब दरबार सजा हुआ था। बहुत से बादशाह तख़्त के चारो तरफ बैठे हुए थे। साक़ी प्यालों में शराब भर रहे थे। आँखों की शर्म घुल रही थी, तभी खुसरू परवेज़ ने पूछा कि इस दुनिया में कौन सी जगह में सबसे ज़्यादा सुन्दरता है। हर एक ने कोई न कोई नाम लिया। उन्हीं में से किसी ने सपाहान के शहर में 'शकर' का नाम लिया। उसके सौन्दर्य की प्रशंसा करते हुए कहा कि अगर कोई रात को उसे अपने आगोश में लेगा तो वह रात कभी नहीं भूलेगा। यह सुनकर शाह परवेज़ 'शकर' के ख्याल में डूब गया कि कैसे शकर को लेकर शीरीन के दिल में जलन की आग सुलगाई जाए?


इस विचार में वह वर्ष भर उलझता रहा, फिर सपाहान जाकर 'शक्कर' से विवाह कर लिया। कुछ समय तक वह शक्कर में डूबा रहा, फिर उसे शीरीन की याद सताने लगी। आखिर फिर उसने शीरीन को तोड़ने की तरकीबें शुरू की। अन्त में उसका आखिरी सहारा उसके दुख को बांटने वाले शाहपुर को शीरीन से अलग कर दिया। शीरीन तन्हाई में तड़प उठी। क्या करे? एक दिन उसने तड़प कर दुआ मांगी, “खुदाया! तुझे यतीम बच्चों के आंसुओं की कसम, बूढ़ों के दुःखों की, परदेसियों की थकन की सौगन्ध, वे क़ैदी जो अंधे कुएं में पड़े हैं, तुझे उन फ़र्यादियों की क़सम जो सदा न्याय-न्याय की मांग करते चिल्लाते रहते हैं, तुझे उन पापियों का वास्ता है जो तौबा करते हैं, तुझे उन लोगों का वास्ता है जो घर से दूर और काफिले से पिछड़ गये हैं, तुझे हर दुआ हर इबादत की सौगन्ध है कि इन सबके बदले में मुझे इस दुःख के भंवर से नजात दे जिसमें मैं फंसी हुई हूं।”


यह दुआ शीरीन के दिल से निकली थी सो उधर खुसरू एक अनजाने दर्द से व्याकुल हो उठा। घबरा कर शिकार के लिए निकल पड़ा। और एक हफ्ते तक शिकार खेलता रहा। शीरीन के महल से कुछ दूर पर पड़ाव डाला, सर्दी का मौसम था। अलाव की गर्मी से खुसरू को नींद आ गई। सुबह जब आंख खुली तो कई प्याले मदिरा के पिये और शबदीज़़ पर बैठकर शीरीन के महल की ओर चल पड़ा।


जब शीरीन को ज्ञात हुआ कि खुसरू उससे मिलने आ रहा है उसे अपनी बदनामी का भय सताया उसने फौरन हुक्म दिया कि महल के सारे दरवाज़े बन्द कर दिये जायें, लेकिन बाहर के रास्ते पर कालीन बिछा दिये जायें। जब शीरीन छत पर गई तो देखा खुसरू शबदीज़़ पर झूमता चला आ रहा है। वह सोचने लगी 'खुदाया क्या करूं।' यदि खुसरू को बिना मुराद पूरी किये वापस जाने देती हूं तो उसकी जुदाई अब सही नहीं जाती। और महल में बुला कर अपना वुजूद उसे समर्पण कर देती हूं तो सारे संसार में बदनाम हो जाती हूं।


खुसरू जब महल के समीप पहुंचा तो देखा सारे दरवाज़े बन्द हैं पर स्वागत के लिए कालीन बिछी है उसे शीरीन के इस व्यवहार पर दुख हुआ, और वहीं ठहर गया। गुलाम को बुलाकर कहा- “जा! जाकर शीरीन से कह उससे मिलने ईरान का बादशाह नहीं बल्कि एक मामूली सा गुलाम आया है। मेहमान के लिए क्या हुक्म है वह अन्दर आये या वापस चला जाए।”


शीरीन चेहरे पर नाजुक नकाब डाल दोबारा छत पर खुसरू को देखने आई। उसने खुसरू पर से हज़ारों मोती निछावर किये। यह देखकर खुसरू ने उसके काले बालों में लज्जा से छुपे गोरे मुख की तरफ देखकर पूछा, “तुम्हारे होठों पर नम्रता और व्यवहार में विनम्रता है फिर मेहमान के लिए दरवाज़़ा बन्द क्यों है। दरवाज़़ा खोलो, मैं बादशाह होकर खड़ा हूं। मैं तुमसे मिलने आया हूं बिना मिले ही चला जाऊं- क्या- मैं मेहमान नहीं हूँ? कोई घर आये शख़्स के लिए यूँ दरवाज़े बन्द कर देता है?''


''मैं तुमसे प्रेम जरूर करती हूं परन्तु प्रेम की खातिर बदनाम नहीं हो सकती हूं, मैं मलिका बनकर तुम्हारे महल में आना चाहती हूं। इस तरह छुप-छुप कर मिलना मुझे पसन्द नहीं है। मैं यहां अकेली हूं और तुम शराब में मस्त यहां आये हो, मेरे लिए लज्जा की बात है। एक बादशाह की तरह ज्ञानियों, दरबारियों के साथ मुझे ब्याह कर अपने महल में ले जाओ, परन्तु में यूं फूल सूंघने की इजाज़त तुम्हें नहीं दे सकती हूं।''


फिर नई मलिका शकर के बारे में शीरीन ने शिकवा करते हुए कहा- 'एक समय में दो लोगों से प्रेम करना कहां का कानून है। अब शीरीन, शीरीन कहना छोड़ दो। अधिक मिठास से तुम्हारी जबान में छाले पड़ जायेंगे। मेरे पास मेरे बहलावे के लिए सिर्फ तुम हो पर तुम्हारे लिए हज़ारों दिल बहलाने वाले हैं। वह कौन-सी मुबारक घड़ी थी जब तुमने मुझे याद किया वह कौन-सा खुशकिस्मत दिन था जब तुमने मेरे दिल को खुश किया, तुमने कब अपने गिरेबान को चाक़ किया, कब मेरे लिए बदनामी मोल ली, तुम केवल शराब के जाम पर जाम चढ़ाते रहे, जबकि शाहपुर अपना ब्रश चलाता रहा और फरहाद अपना फावड़ा।'


खुसरू शर्मिन्दा हुआ और बोला- मैंने गलती जरूर की है पर तुम अपनी मेहरबानी का ध्यान करो, इन्सान तो संसार के आरंभ से गलतियां करता आया है मेरा तन जरूर दूसरों के साथ सुख भोगता रहा परन्तु मेरा मन मेरी आत्मा तेरी चैखट पर तड़पते रहे थे, अगर मैंने भोग विलास में जीवन की चन्द घड़ियां बिताई हैं तो कौन-सी गलती की है, जवान हूं और जवानी में यह सब कुछ होता है।'


लेकिन उसके बाद भी शीरीन ने कहा- 'तू बादशाह सही पर परन्तु मैं बिना विवाह के उस महल में कदम नहीं रखूगी।'


जब खुसरू परवेज़ निराश हो गया तो मजबूर होकर अपनी फौज की तरफ लौट आया और शाहपुर से अपना दर्द कह सुनाया- शीरीन की कठोर हृदय की शिकायत की और साथ ही धमकी भी दी कि यदि शीरीन उसकी इच्छा को यूं ही ठुकराती रही तो वह अपने बल का प्रयोग करेगा। शाहपुर ने अपने आशापूर्ण दिलासों से उसके क्रोध को शांत किया और उसे विश्वास दिलाया कि शीरीन एक न एक दिन पिघलेगी जरूर, उसने जो इस तरह बातें की है उसका ठण्डा व्यवहार नहीं बल्कि उसके नाज व अदा हैं, शीरीन जैसी सुन्दरी जितना भी सितम तोड़े उससे नाता नहीं तोड़ते हैं, उसकी नाज़ बरदारी करते हैं।


इधर शीरीन अपने दिल में पश्चाताप की भावना में तड़पती उदास बैठी थी कि खुसरू परवेज़ के साथ उसको ऐसा शुष्क व्यवहार नहीं करना चाहिए था, यह सोचकर वह तड़प उठी, फौरन घोड़े पर बैठी और खुसरू के खेमे की तरफ चल पड़ी। शाहपुर ने दूर से शीरीन को देखा, उसने बड़ी मुश्किल से


इधर-उधर की बातें करके खुसरू को सुलाया था। बाहर आकर उसने शीरीन से पूछा!


शीरीन जो अपने व्यवहार से हैरान लज्जित, चिन्तित और पछतावे में थी उसने शाहपुर से कहा, मेरी एक इच्छा है यदि तुम कहते तो मैं यहां ठहरूं वरना चली जाऊं। बस मैं किसी कोने से छुपकर खुसरू की झलक भर देखना चाहती हूं। परन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि मैं बिना विवाह के अपने को खुसरू के हवाले कर दूंगी।'


शाहपुर ने शीरीन को शाही खेमे के एक सुरक्षित कोने में ठहरा दिया। प्रातः जब खुसरू परवेज़ की आंख खुली तो उसने शाहपुर से कहा कि मैंने एक बहुत अच्छा सपना देखा है। शाहपुर ने कहा- 'खुदा ने चाहा तो दुख की कालिमा छट जायेगी। खुसरू ने आज्ञा दी - राजसी शान के साथ एक समारोह आयोजित किया जाए जिसमें विशेषकर 'बारबद और नकीसा' जैसे संगीतज्ञ शामिल हों। खुसरू और शाहपुर संगीत के लिए तार छेड़ दिये गये और वातावरण मस्त धुनों और संगीत लहरी में डूब गया।


शाहपुर ने 'नकीसा' को उस पर्दे के पास बिठाया जिसमें शीरीन छुपी हुई थी और उसने इशारे से कहा कि वही धुन छेड़ो जो शीरीन के हृदय की आवाज़ है सो नकीसा ने वही धुन छेड़ी जिसमें शीरीन की दिल की धड़कने थीं और दूसरा संगीतज्ञ 'बारबद' खुसरू के मनोभावों को गा रहा था, दोनों संगीतज्ञों ने संवेदनाओं से भरपूर ऐसा वातावरण पैदा कर दिया कि शीरीन के हाथ से धैर्य का दामन छूट गया और वह तड़प उठी। उसके मुंह से 'आह' निकल गई। खुसरू ने 'आह' का जवाब 'आह' से दिया। सुनने वाले समझे कि यह एक ही आह की प्रतिध्वनि है, 'आह' की आवाज़ सुनते ही परवेज़ ने बारबद और नकीसा को बाहर भेजा और शाहपुर से धीरे से पूछा, 'यह गम में डूबी किसकी आवाज़ थी? अभी शाहपुर कुछ जवाब देता कि शीरीन दीवानी हो खेमे से बाहर निकल आई और खुसरू के पैरों पर बेतहाशा चुम्बनों की बौछार कर दी। खुसरू ने कहा, “अब होठों का चुम्बन भी ले लो।''


यह सुनकर शीरीन के माथे पर शिकन आ गई। शाहपुर ने आगे बढ़कर शाहपुर के कान में धीरे से कहा, ''शीरीन अपनी पवित्रता के कारण इन्कार कर रही है क्योंकि उसे डर है कि अगर बादशाह को अपने ऊपर काबू न रहा तो मुझे बदनामी के अलावा कुछ न मिलेगा।


खुसरू को अब पक्का यकीन हो गया कि शीरीन बिना विवाह के राजी न होगी। तो उसने सौगन्ध खाई कि वह बहुत जल्दी बुजुर्गों के साथ आयेगा और उसे ब्याह कर ले जायेगा, शीरीन यह बात सुनकर खुशी से पागल हो गई। उसने तड़पकर खुसरू के ओठों का चुम्बन ले लिया। इस तरह से मदहोश दोनों प्रेमी एक हफ्ते साथ रहे परन्तु एक रात जब दोनों सीमाएं पार करने लगे तो खुसरू परवेज़ ने आज्ञा दी कि शीरीन अपने महल में लौट जाए और खुद भी फौज के साथ अपने महल लौट आया।


महल में पहुंच कर खुसरू ने ज्योतिषियों को बुलाया। आज्ञा दी कि शीरीन की ब्याह कर लाने की एक शुभ घड़ी निकाले। जब शुभ घड़ी निकल आई तो बादशाह ने शीरीन को लाने के लिए हज़ार ऊंट, घोड़े, खच्चर रवाना किए। उनके साथ हज़ार कनीज़़ें थीं। शीरीन को सवारी के लिए एक सुनहरा तख़्त था और असंख्य ज़र व जवाहर के माल और बहुमूल्य वस्त्र थे। सारे रास्ते केवल पालकी और आमारी ही नज़र आ रही थी जिसमें कनीज़़ें बैठी हुई थीं जो रास्ते पर मोती लुटाती हुई आगे बढ़ रही थीं, आखिर खुसरू के महल में शीरीन को ले आईं।


शीरीन ने जब महल में पैर रखा तो खुसरू ने उसके चरणों में ढेर सारा सोना निछावर किया, फिर धार्मिक पंडितों को बुलाकर धार्मिक मंत्रों के बीच खुसरू ने शीरीन से विवाह कर लिया।


खुसरू ने शीरीन को एक विशेष महल में उतारा था। विवाह के बाद वह मित्र मंडली के साथ मदिरापान में डूब गया। जब वह शीरीन के पास पहुंचा तो शीरीन ने अपने स्थान पर सजा़-संवार कर एक बुढ़िया बिठा दी जो कमजोरी से कांप रही थी। खुसरू नशे में उसे शीरीन समझा, परन्तु जब बुढ़िया, चीखी तो शीरीन सोलह सिंगार किये पर्दे से बाहर निकली।


उसके सौन्दर्य को देख चांद शरमा रहा था और खुसरू की दीवानगी चांद देखकर और बढ़ गई पर नशे के कारण शीघ्र ही वह नींद में डूब गया।


प्रातः खुसरू जब नींद से जागा तो अपने पहलू में एक सुन्दर दुल्हन को पाया। दोनों प्रसन्न थे इसी प्रसन्नता और मिलन के झूले में झूलते कई साल गुजर गये।


शीरीन से विवाह के बाद खुसरू परवेज़ न्याय और प्रजा सुख की ओर आकर्षित हुआ और प्रजा बादशाह की दया से सराबोर सुख चैन से जी रही थी। मरयम मरते समय एक पुत्र छोड़ गई थी। जिसका नाम 'शेरविए' था। जब खुसरू और शीरीन की शादी हुई तो 'शेरविए' उस समय नौ वर्ष का था परन्तु इस बालकाल में ही उसका नन्हा-सा मस्तिष्क और दिल शीरीन के सौन्दर्य से प्रभावित हो गया कि काश! शीरीन मेरी पत्नी होती।' जब उसके मनोस्थिति का ज्ञान खुसरू को हुआ तो वह क्रोध से बल खाकर रह गया। महल से उसे निकाल नहीं सकता था। बहरहाल वह उसका पुत्र था।


इस तरह से कई वर्ष बीत गये। एक रात खुसरू शीरीन के साथ महल में सो रहा था शेरविए चोरों की तरह महल में घुसा और तलवार से बाप का सीना चाक कर दिया। मीठी नींद से परवेज़ जागा तो शयनकक्ष खून में डूबा देखा। खुसरू ने असहनीय पीड़ा में सोचा कि शीरीन को जगा दे और एक घूँट पानी मांगे। परन्तु सोचा कि शीरीन इस दर्दनाक दृश्य की ताव न ला सकेगी। यह सोचकर उसने तड़प-तड़प कर जान दे दी।


इधर शीरीन के शरीर में जब गर्म खून लगा तो वह जाग पड़ी घबरा कर उठी और यह हृदय विदारक दृश्य देखकर वह तड़प उठी। उसने खुसरू के शरीर से चादर हटाई तो वहां खून ही खून था। “शीरीन फूट पड़ी और दहाड़ें मार-मारकर रोने लगी। फिर उसने इत्र और गुलाब मंगवाए और उससे खुसरू के घावों को साफ किया। शीरीन ने काले कपड़े पहने और मातम मनानें बैठ गईं मगर शेरविए ने उसको सन्देश भिजवाया कि जैसे ही हफ्ता खत्म होता है मैं तुम्हें अपने बाग़ का फूल बना लूंगा 'यह सारा खज़ाना तेरे हवाले कर दूंगा और तुझे खुसरू से अधिक ठाठ-बाट से रखूँगा। शीरीन को इसकी दुष्टता पर क्रोध बहुत आया पर उसने ऐसा दिखावा किया जैसे वह राजी है क्योंकि वह शेरविए को भ्रम में रखना चाहती थी।


दूसरे दिन ईरान के शाही रस्म रिवाज के अनुसार खुसरू के शव को ताबूत में रखा गया। बादशाहों ने कन्धा दिया, और बड़े-बड़े सरदार और हाकिम शवयात्रा में सम्मिलित हुए। शीरीन भी कनीज़़ों के पीछे चल रही थीं उसने कानों में बुन्दे पहन रखे थे। आंखों में काजल लगा रखा था, शरीर पर लाल रेशमी कपड़े और सर पर पीली ओढ़नी थी। जिसने शीरीन को देखा समझा कि उसे परवेज़ की मौत का जरा भी अफसोस नहीं है। शेरविए को भी यह


धोखा हुआ कि शीरीन ने उसकी बात मान ली है।


खुसरू का ताबूत कब्र में उतारा गया तो शीरीन ने अन्दर जाकर मकबरे का दरवाज़़ा बन्द कर लिया। कफ़न हटाकर उसने खुसरू परवेज़ के घाव को चूमा लिया और फिर कपड़ों में छुपे खंजर निकाल कर अपने सीने पर मार लिया।


शीरीन ने अपने खून से मकबरे को धो डाला। फिर चीखें मारी ताकि सबको ख़बर हो जाए।


इसके बाद उसने खुसरू के होठों पर होठ रखे और सीने पर सीना और इस तरह से वह अपने प्रीतम की आगोश में समा सदा के लिए मौत की नींद सो गई।



 


 


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