मेम सा’ब

सच्चिदानंद  प्राइमरी स्कूल के मास्टर साहब बड़े जोश में चहकते से बरामदे की की सीढ़ियाँ फलाँगते घर में घुसे। अंन्दर आते ही गुहार लगाई -'' अरी सुनती हो, किस कोने में घुसी बैठी हो''? पत्नी पूजा की थाली लिये बैठक में लगभग भागती सी आईं -'' क्या हुआ, क्यों शोर मचा रहे हो ?'' अरी भागवान् बात ही कुछ ऐसी है।'' मास्टर साहब ने इधर-उधर सतर्क निगाह दौड़ाई। रिश्ते का मामला है, पक्का होने तक किसी को कानों कान ख़बर नहीं होनी चाहिये। पत्नी के निकट होकर धीरे से बोले-''अरी ! हमारे लाड़ले को प्रिंसिपल  साहब ने दफ्तर से आते देखा था।'' ''कब की बात है ? ''मास्टरनी लगभग फुसफुसाती सी बोलीं।'' ''ओफ ओह! कुछ ही दिन पहले।'' मास्टर जी झंझलाते से बोले।  कहा-'' आज मुझे प्रिंसिपल साहब का बुलावा आया था।'' अपनी बेटी के लिये हमारे लाड़ले के रिश्ते की कह रहे थे! समझो भाग्य ही खुल जाऐंगे तुम्हारे लाड़ले के!!'' पत्नी बोलीं-'' सोचते क्या हो  ,हाँ कर देनी थी ,हम तो धन्य हो जायेंगे । परिवार और समाज में रौब होगा । बेटा अफसर है और बहु बड़े घर की बेटी !!'' ''शुभस्य शीघ्रम् !! पर बेटे से पूछ लेते हैं ।''


शाम को बेटा घर आया तो मास्टर साहब ने बात की। भला उसे क्या ऐतराज हो सकता था! प्रिंसिपल साहब की बेटी अभी दसवीं में ही थी, पर थी पन्नों का चाँद!! बस रिश्ता पक्का कर दिया गया, बेटे की एक ही मंन्शा थी, कच्चा घर पक्का करवा कर ही शादी करूँगा! बड़े घर की बेटी है, कोठियों में रहने वाली !!


साल भर बाद जब डोली मास्टर जी के घर उतरी तो  घुँघट में से ही गृह लक्ष्मी ने घर का मुआयना किया।


सारा उत्साह जाता रहा । सोचा था अफसर के घर जा रही हूँ , ऐश करूँगी , पर ये तो दो कमरों का मकान!! पर है पक्का ! चलो । एक गहरी साँस मुँह से निकल पड़ी ।


मास्टर जी व मास्टरनी बहू की अगवानी करने में गर्व महसूस कर रहे थे । बड़े घर की बेटी है !! नई दुल्हन ने डोली से निकलने के लिए रस्मानुसार सिर झुका उतरने के बजाय ,पैर बढ़ाया मास्टर जी अनायास ही बोले -'' मेम सा'ब इधर सम्हल कर पग बढ़ाओ ।'' बड़े घर की बेटी गर्व से झूम उठी ,गर्दन अकड़ कर तन गई !! ससुर द्वारा मेम सा'ब संम्बोधन सुन झूम उठी !! उसे अपना कद दस गुणा बढ़ा लगने लगा , मास्टर जी बहुत बौने हो उठे ! मानों दो फुट जमीन में नीचे धँस गये हों !!



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