शाह बहराम मुश्तरी गुंबद में

''हफ्त पेकर'' जिसमें नेज़ामी ने बहराम बादशाह की वीरता, विजय, युद्ध, समाजों का वर्णन किया है। इस कारण यह काव्य खण्ड ''बहराम नामे'' से भी प्रसिद्ध है। चूंकि बहराम ने शत्रु पर विजय प्राप्त की थी। इस खुशी में उसने हुक्म दिया कि आकाश के सातों उपग्रहों के नाम पर सात रंगों के गुंबद बनाए जाएं, ज्योतिषियों की कल्पनाओं के अनुसार हर गुंबद का रंग उपग्रह के रंग का था जैसे पहला काले रंग का गुंबद, शनैश्चर उपग्रह के समान, दूसरा बृहस्पति के आकार का चन्दन के रंग का, तीसरा मंगल जो लाल रंग का, चैथा-सूर्य की तरह ज़र्द, पांचवां शुक्र की तरह सफेद, छठा- बुध की तरह फ़ीरोज़ी और सातवां- चन्द्रमा के आकार का हरे रंग का गुंबद बनवाया गया।


जब गुंबद बन गये तो उसने सात विभिन्न देशों की शहज़ादियों को उनके चेहरे के रंग के अनुसार गुंबद में रखा। हफ्ते का हर रोज वह एक गुंबद में गुज़ारता। उस दिन उसी रंग के कपड़े पहनता और उस गुंबद की रानी से कहानी सुनता। उन्हीं सात गुंबदों में से दो कहानियाँ दी जा रही है।



बृहस्पत के दिन बहराम ने सन्दल रंग का लिबास पहना और मुश्तरी गुंबद में चीनी शहज़ादी के पास पहुँचा। सारे दिन चीनी शहज़ादी उसे शराब पिलाती रही और अपनी अदाओं से उसका दिल बहलाती रही। जब रात हुई तो बहराम ने उस खिंची-खिंची आँखों वाली चीनी हसीना से कहा कि वह कोई ऐसी कहानी सुनाए जिससे उसका दिल आनन्द से भर उठे। शहज़ादी ने शाह की फर्माइश सुनकर पहले उनके पेशानी और हाथों को चूमा, फिर उनकी सुरक्षा व सलामती की दुआएं की।


शहज़ादी ने किस्सागोई की शुरुआत कुछ इस तरह से की -


किसी शहर में दो जवान रहते थे। एक का नाम ख़ैर था और दूसरे का नाम शर था। दोनों घूमने निकले। उनके साथ खाने-पीने का सामान था। रास्ते भर ख़ैर खाता पीता रास्ता तय करता रहा। शर पानी को बड़ी होशियारी से खर्च कर रहा था। चलते-चलते वह एक बंजर इलाके में पहुंचे जहाँ लू के गर्म थपेड़े थे और पानी के स्रोत का दूर-दूर तक पता न था। यह बात शर को पता थी इसलिए उसने अपनी पानी से भरी छागल छुपा रखी थी। दोस्त की आँखें बचाकर वह बीच-बीच में गला तर कर लेता था। ख़ैर इस बात से बेख़बर सारा पानी पी गया। छागल में एक बूंद पानी की नहीं बची थी। बियाबान की गर्मी में जब ख़ैर को प्यास सताने लगी तो बेचैन हो उठा। उसे पता था कि शर के पास पानी है मगर संकोच के मारे मांग नहीं पा रहा था। जब उसकी जबान सूख गई। गले में कांटे चुभने लगे और आँखों के सामने अंधेरा छाने लगा तो मजबूर होकर उसने सोचा कि मेरे पास मणि के कीमती मोती हैं उसके बादले में दो घूंट पानी माँगने में कोई हर्ज नहीं है। यह सोच कर उसने शर से कहा, “मैं प्यास से मर रहा हूँ मुझे चुल्लू भर पानी पिला दो, चाहे दानी की तरह मुफ्त या फिर पानी के बदले में मणि ले लो।


शर को यह सौदा मंजूर न हुआ और कहा, “मैं तेरे चक्करों में नहीं आने वाला। इस तन्दूर बने रेगिस्तान में तू कीमती मोती देना चाहता है, मगर शहर पहुँचते ही वापस ले लेगा। इसलिए तू मुझे ऐसे मोती दे जो कभी वापस न ले सके।''


“वह कौन सा मोती है?” ख़ैर ने पूछा।


“वह तेरी आँखों का मोती है। अगर तू पानी चाहता है तो अपनी आँखें मुझे दे दे। मेरे पानी को नदीदी नज़र से न देख।''


''तुझे रत्ती भर भी खुदा का भय नहीं है जो चंद कतरे पानी के बदले तू मेरी आँखें माँग रहा है। यदि मैं अपनी आँखें दे डालूँगा तो इस चुल्लू भर पानी से क्या बनेगा? इस तरह की बेतुकी बातें क्यों कर रहा है। अरे मेरे पास जो भी मोती हैं वह ले ले और बदले में मेरा गला तर कर दे। अगर चाहता है मैं लिख कर दूं तो दे देता हूँ।'' ख़ैर ने कहा।


“यह सारी बातें बेवकूफ बनाने की हैं। मुझे तुम्हारी आँखें चाहिए न कि हीरे जवाहरात, समझे!''


यह सुन कर ख़ैर दंग रह गया। प्यास के मारे बुरा हाल था। उसके बदन में कमज़ोरी का यह हाल था जैसे कि वह बस दम तोड़ने वाला हो। प्यास के आगे वह मजबूर हो गया


और शर से बोला, “जाओ! खंजर या तलवार ले आ और मेरी आँख निकाल ले मगर फौरन मेरी प्यास बुझा दे।”


वृहस्पत - मुश्तरी, संदल - चंदन               


खै़र - अच्छाई, शर -  बुराई (प्रतीकात्मक नाम)


शर ने खंज़र निकाला और ख़ैर की आँखें निकाल लीं। मगर बिना पानी पिलाए ख़ैर का सारा सामान समेट कर वहाँ से चलता बना। ख़ैर खून में नहाया अकेला ज़मीन पर तड़पता रहा। आँखें वह खो चुका था जो अपनी बेचारगी को देख पाता।


इत्तिफ़ाक़ से उस रास्ते से जहाँ जख्मी ख़ैर पड़ा था एक कुर्द मुसाफिर का गुज़रना हुआ। वह बहुत मालदार था। उसके पास बहुत से पशु थे। वह जंगल-जंगल फिरता था। जहाँ हरियाली और पानी नज़र आता वहीं वह हफ्ता दो हफ्ता ठहर जाता था। 'उस कुर्द के एक लड़की थी। बेहद खूबसूरत तुर्कों की तरह उसकी आँखें थीं। चेहरे पर काला तिल था। उसके लम्बे-लम्बे बाल थे जिन्हें वह अपनी गर्दन के चारों तरफ लपेटे रहती थी।


एक दिन जब वह पानी लेने गई। बहुत दूर चलकर उसे पानी नज़र आया। उसने वहाँ जाकर अपनी सुराही भरी और चलने को मुड़ी तभी उसके कानों में किसी की दर्द में डूबी पुकार सुनाई पड़ी। वह आवाज़़ की ओर चल पड़ी। वहाँ जाकर देखा एक जवान खून व खाक में नहाया तड़प रहा है। लड़की ने आगे बढ़कर पूछा, “तुम कौन हो और क्यों इस बुरी हालत में पड़े हुए हो?''


''तुम कोई आसमानी फरिश्ता मालूम होती हो। मेरी कहानी लम्बी है अगर तुम्हारे पास पानी है तो जल्दी से मेरे हल्क में टपका दे वरना अपने रास्ते जा! मैं तो अब मरने वाला हूँ।''


उसकी मुश्किल हल करने की कुंजी उस लड़की के हाथ में थी। उसने ख़ैर को आगे बढ़ कर जी भर पानी पिलाया। जब ख़ैर के बदन में ज़रा सी जान आई। लड़की ने पास पड़ी उसकी आँखें धूल से उठाई और रब का नाम ले उन्हें उनकी जगह लगा दी। इसके बाद लड़की ने उसे सहारा देकर उठाया और अपने खेमे तक ले गई और ख़ैर को अपने नौकर के हवाले कर माँ के पास पहुंची और सारा क़िस्सा बयान किया। माँ बेटी ने मिलकर ख़ैर के लिए बिस्तर तैयार किया और खाना खिलाकर उसे सुला दिया।


रात को कुर्द जब घर लौटा तो देखा घर में एक जवान बेसुध पड़ा सो रहा है। उसने पूछा तो पता चला कि इस घायल की आँखें निकाल दी गई थीं। अब दोबारा लगाकर आँखों पर पट्टी बाँध दी गई है।


“यही करीब में एक दरख्त है जिसका तना जमीन से निकलते ही दो शाखों में बंट जाता है। एक शाख की पत्तियाँ आँखों की रोशनी वापस ले आती हैं और दूसरी शाख़ की पत्तियों से बेहोश आदमी होश में आ जाता है।” कुर्द ने सारा माजरा सुनकर कहा।


“खुदा के वास्ते आप जाकर वह पत्तियाँ ले आइये।” यह जानकर बेटी ने पिता से कहा। यह सुनकर कुर्द उठा और वह पत्तियाँ ले आया। बेटी ने उसे धोने के बाद कूटा और फिर रस छान लिया फिर जवान की आँखों में डाल दिया। ख़ैर- पहले दर्द से कुछ देर बेचैन रहा फिर कराहते-कराहते सो गया।


इस तरह से पाँच दिन ख़ैर की आँखें बन्द रहीं। छठे दिन जब आँखें खुली तो लगता था जैसे कभी कुछ हुआ ही नहीं था। ख़ैर ने पाया कि उसकी आँखों में रोशनी वापस आ गई है। यह देखकर कुर्द का सारा परिवार खुश हुआ कि जवान तन्दुरुस्त हो गया है। लड़की इतने सजीले नवजवान को देखकर पहले ही उसे दिल दे बैठी थी। ख़ैर भी उसकी मीठी दिलचस्प बातें सुनकर उसे पसन्द करने लगा था।


ख़ैर रोज कुर्द के साथ जंगल जाता। चैपायों की देखभाल करता और जी जान से मालिक की सेवा करता। कुर्द उसकी लगन व मेहनत को देखकर बहुत खुश था। धीरे-धीरे उसने घर की सारी ज़िम्मेदारी जवान के कन्धों पर डाल दी। एक दिन कुर्द ने ख़ैर से पूछा, ''आखिर तुम पर बीती क्या थी।” मालिक के पूछने पर ख़ैर ने जो कुछ गुजरा था कह सुनाया कि कैसे वह शर के साथ सैर-सपाटे के लिए निकला। रेगिस्तान में उसे प्यास लगी। शर ने पानी देने का वचन देने के बाद उसकी आँखें निकाल लीं और बिना उसकी प्यास बुझाए उसको ज़ख़्मी हालत में तड़पता छोड़ कर वह चला गया। कुर्द ने सारी विपदा सुनकर ऊपर वाले का शुक्र अदा किया। वह पहले से ज़्यादा ख़ैर का ध्यान रखने लगा।


कुर्द की लड़की भी दिल व जान से ख़ैर की देखभाल करती थी। ख़ैर ने उसकी सेवा देखकर मन बना लिया था कि वह ज़िन्दगी के आख़री दम तक इस लड़की का साथ निभाएगा। क्योंकि उसी के चलते उसे दूसरी ज़िन्दगी मिली थी। इस फैसले के बाद वह जी जान से इस परिवार के प्रति वफ़ादार हो उठा, मगर कभी-कभार उसको एक बात खटकती थी कि कुर्द हसीना क्या मुझ जैसे गरीब व बे-घरबार से शादी करने पर राजी होगी? आखिर मैं ऐसा क्या करूँ जिससे दौलतमन्द बन सकूँ और अपनी पसन्द की लड़की से शादी करने के काबिल बन जाऊँ।


इस फिक्र में डूबा ख़ैर इस नतीजे पर पहुँचा कि अब मुझे यहाँ से दूर चला जाना चाहिए। क्योंकि चांद की इच्छा भर से उसके हाथ चाँद तक नहीं पहुँच सकते। जिस नदी का पानी पी नहीं सकता उसके किनारे इन्तज़ार में प्यासा बैठना कोई अक्ल की बात नहीं है। उसने रात को कुर्द से अपनी बात कह दी।


“मेरी आँखों की रोशनी और दिल का सुकून आपकी बदौलत है। मैंने इतने दिनों तक आपका नमक खाया है। सच तो यह है कि मेरे बदन के पसीने से तुम्हारे खानों की सुगन्ध आती है। आपकी मेहमान नवाज़ी का सुख पाया है। आपने जो अहसान मुझ पर किया है उसका बदला मैं कभी नहीं चूका सकता हूँ। मुझे आपसे दूर जाने का दुख है मगर क्या करूँ, मुझे घर से निकले बहुत दिन हो चुके हैं। अब मैं कल यहां से जाने की इजाज़त आपसे चाहता हूँ।


ख़ैर की बातें सुन कुर्द रोने लगा। बाकी सदस्यों को भी बहुत दुख हुआ। आखि़र कुर्द ने कहा, “मैं समझ रहा हूँ तेरे जज़्बात मगर अपने वतन पहुँच कर फिर किसी मुसीबत में फँस  गया तो क्या करेगा। क्या वहाँ तुझे सारी सुख-सुविधा प्राप्त है। मेरे पास केवल एक बेटी है मगर हर तरह का आराम और सामान मौजूद है। मेरी बेटी दिल की नर्म और खिदमत करने वाली शरीफ व नेक इन्सान है। अगर वह तुम्हें पसन्द है तो मैं दिल व जान से तुम्हें अपना दामाद बनाने में खुशी महसूस करूँगा। और पशुबाड़े के सारे जानवर तुम्हें देता हूँ।''


ख़ैर यह सुनकर सिजदे में गिर गया। उसने खुदा का शुक्र अदा किया। रात चैन से सोया। दूसरे दिन वह बेहद खुश था। कुर्द ने निकाह का बन्दोबस्त किया और शादी के बाद बेटी को ख़ैर के हवाले किया।


ख़ैर को कुर्द की हसीन बेटी इस तरह मिल गई जैसे बृहस्पत ग्रह शुक्र ग्रह को मिल गया हो। वह आदमी जो कल तक प्यास से दम तोड़ने वाला था। आज अमृत पीकर जी उठा है। और वह कली जिसने सूरज की रोशनी नहीं देखी थी आज खिली धूप देख खिलकर फूल बन गई। दोनों पति-पत्नी खुशी-खुशी ज़िन्दगी गुज़ारने लगे। कभी-कभी वह अपनी सुखी गृहस्थी देखकर पुरानी बात याद करके दोनों खुदा का शुक्र अदा करते। कुर्द के सारे माल का मालिक बनकर दोनों बड़े सुख से रह रहे थे।


कुछ दिनों के बाद ख़ैर और उसकी पत्नी ने तय किया कि यहाँ से कहीं और चला ताए। जगह छोड़ने से पहले सन्दल के उस पेड़ के पास गया जिसकी पत्तियों से उसकी आँख अच्छी हुई थी। उसने दो थैलों में उसकी पत्तियाँ भर लीं। चलते-चलते दोनों शहर पहुँचे। वहाँ के बादशाह की बेटी बीमार थी। उस पर शायद भूतप्रेत का साया था। बड़े-बड़े वैद्य और हकीम आए मगर कोई भी शहज़ादी पर से भूत का साया न हटा सके। हाक़िम ने यह मुनादी करा दी थी कि जो शख़्स शहज़ादी को ठीक कर देगा। उससे वह बेटी का ब्याह कर देगा। अगर उसे देखकर कोई ईलाज नहीं कर पाया तो उसका सर धड़ से अलग कर दिया जायेगा।


शाही दामाद बनने के लालच में जाने कितने आए और मौत के घाट उतार दिए गए थे। जब यह एलान ख़ैर ने सुना तो एक आदमी को भेज कर शाह को सन्देशा भेजा कि मैं शहज़ादी को ठीक कर दूंगा और बदले में कुछ नहीं चाहता हूँ।


शाह ने फौरन ख़ैर को बुला भेजा। और उससे पूछा, 'तेरा नाम क्या है?'


ख़ैर ने बताया, 'ख़ैर'।


बादशाह ने कहा 'तेरा अन्त खुदा ख़ैर करे।'


बादशाह ने एक दासी के साथ ख़ैर को शहज़ादी के महल की तरफ भेजा। ख़ैर ने जाकर देखा तो पाया कि शहज़ादी बेंत की तरह बिस्तर पर पड़ी काँप रही थी। न दिन को चैन था न रात को नींद थी। ख़ैर ने सन्दल के पेड़ की कुछ पत्तियों को लेकर पीसा और शरबत बनाकर शहज़ादी को पिला दिया। शरबत के पीते ही शहज़ादी की बेचैनी जाती रही। थोड़ी देर बाद उसे नींद आ गई। ख़ैर ने जब देखा शहज़ादी को आराम आ गया है तो वह घर वापस आ गया।


शहज़ादी तीन दिन तक रात दिन सोती रही। चैथे दिन वह नींद से जागी और पेट भरकर खाना खाया। इस ख़बर के सुनते ही बादशाह बेटी के महल की तरफ नंगे पैर दौड़ा। वहाँ जाकर देखा शहज़ादी मसहरी पर बड़े आराम से बैठी है। बादशाह ने पूछा, “क्या हाल है?''


यह सुनकर शहज़ादी ने सर झुका लिया और खुदा का शुक्र अदा किया।


बादशाह खुशी से अपने महल की तरफ लौट गया।


बेटी ने बाप के पास यह सन्देश भिजवाया।



“जो लोग वचन देते हैं उसको पूरा भी करते हैं आपने मेरे इलाज न कर सकने वाले सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतार दिया। अब यही समय है जब आप अपना दूसरा किया गया वायदा पूरा करें। यानी कि जिस आदमी ने इलाज कर मुझे सेहतमन्द कर दिया है उससे मेरी शादी कर दें और उसके सर बादशाही का ताज रख दें। क्योंकि मैं उसके अलावा किसी और से शादी नहीं करूँगी।''


बादशाह को बेटी की बात मुनासिब लगी। उसने हुक्म दिया कि ख़ैर को फ़ौरन हाज़िर किया जाए। ख़ैर बादशाह के सम्मुख हाज़िर हुआ। बादशाह ने पूछा, “आखिर तू अपनी खुशनसीबी से मुँह क्यों मोड़ रहा है?''


ख़ैर का जवाब था कि वह शादीशुदा है और यह क़दम अपनी पत्नी और ससुर की इजाज़त और राय के बिना नहीं उठा सकता। शाह उसके जवाब से बहुत खुश हुआ और इस सारी घटना को सुनकर ख़ैर की पत्नी और ससुर से इज़ाज़त मिल गई।


इसके बाद ख़ैर को उपहारों से लाद दिया गया और शहर को दुल्हन की तरह सजा़या गया और ख़ैर से शहज़ादी की शादी कर दी गई। इस तरह से शर के हाथों अंधा हुआ ख़ैर बादशाह के तख़्त व ताज का हक़दार बना।


इत्तिफ़ाक़ से वज़ीर की भी एक सुन्दर बेटी थी। जिसकी एक आँख चेचक की बीमारी में जाती रही थी। वज़ीर ने ख़ैर से विनती की। वह उसकी बेटी का भी इलाज करे और उससे निकाह कर ले। ख़ैर ने सन्दल के पेड़ की पत्तियों से वज़ीर की बेटी का इलाज किया और उसे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। अब उसकी तीन रानियाँ थीं। कभी वह वज़ीरज़ादी से अपने मन की मुराद पूरी करता था कभी शहज़ादी के सौन्दर्य से सुख लेता था। तो कभी कुर्द की बेटी के साथ समय बिताता था।


समय के गुज़रने के साथ ख़ैर उस इलाके का राजा बन गया। एक दिन ख़ैर अपने महल से बाहर निकला और शाही बाग़ की तरफ गया। अचानक उसकी नज़र शर पर पड़ी जो एक यहूदी से सौदा कर रहा था। ख़ैर को पहचानने में जरा भी देर न लगी और हुक्म दिया कि जब यह शख्स अपनी सौदेबाज़ी से फुर्सत पा ले तो उसे मेरे पास लेकर आना। जब कुर्द तलवार हाथ में पकड़े शर को ख़ैर के सामने लेकर हाज़िर हुआ। तो ख़ैर ने उस से उसका नाम पूछा। तो शर ने जवाब दिया।


''बशर!'' जिसका अर्थ था इन्सान ।


ख़ैर ने पूछा, “आखिर तुम अपना असली नाम क्यों नहीं बता रहे हो?''


शर ने कहा, “यही मेरा असली नाम है।''


ख़ैर ने कहा, “तेरा नाम बशर नहीं है। तूने ही एक प्यासे की प्यास बुझाने के बदले में उसकी आँखें मांगी थी और बिना पानी पिलाए उसकी कमर से मोती चुरा उसे अकेला छोड़ भाग गए थे। ग़ौर से देख! मैं वही प्यासा हूँ आज मेरा वक्त बुलन्दी पर है और तेरे सर पर मुसीबतों का साया मँडरा रहा है। यानी कि मैं जिन्दा हूँ तू मुर्दा है।''


शर ने ध्यान से देखा तो ख़ैर को पहचान लिया। फौरन कदमों पर गिर पड़ा। और क्षमा याचना करने लगा।


“मैंने सच, बहुत बुरा काम किया था। मेरी बुराई की तरफ मत देख, अपनी अच्छाई की तरफ नज़र कर। मेरा नाम शर है और तेरा ख़ैर। मैं अपने नाम के अनुसार बुराई करता हूँ तू अपने नाम के अनुसार दूसरों का भला और अच्छाई करता है।''


शर के कहे जुम्ले के अर्थ को समझते हुए ख़ैर ने उसे माफ कर दिया। अपनी आजादी का हुक्म सुन शर खुशी के मारे हवा में उड़ता हुआ दरबार से बाहर निकला ही था कि कुर्द की तलवार ने उसका सर धड़ से अलग कर दिया।


“तेरा नाम बुराई है तू कभी सुधर नहीं सकता है।''


कुर्द ने उसके मुर्दा जिस्म की तलाशी ली और वह दो कीमती मोती ढूँढ़ लिए और ख़ैर के हुजूर में हाज़िर होकर बादशाह को मोती पेश किए।


ख़ैर ने उन मोतियों को चूमा और कुर्द को वापस करते हुए कहा।


“आपके दिये हुए यह दो मोती मेरे पास हैं मुझे अब इसकी जरूरत नहीं है आप इसको रख लें।''


ख़ैर ने अपनी ह़ुकूमत में न्याय और सच्चाई को बढ़ावा दिया। मुल्क़ को मजबूत बुनियाद दी। कभी-कभी ख़ैर उस दरख्त के पास जाता और सलाम व सम्मान के साथ उसके सामने सर झुकाता। उसी पेड़ के चलते उसने सन्दली रंग के कपड़े पहनने शुरू कर दिए। सन्दल का लेप लगाने से न सिर्फ सरदर्द दूर होता है बल्कि दिल व जिगर की जलन भी गायब होती है।


चीनी शहज़ादी ने अपनी टूटी फूटी भाषा में यह दिलचस्प किस्सा कह सुनाया जिसे सुनकर बहराम शाह ने मलिका को बड़े प्यार से अपने आगोश में छुपा लिया कि कहीं उसे बुरी नज़र न लग जाए।


 


अनुवाद: फारसी लघुकथा


 


एक रात हारूनुलरशीद ने सपना देखा कि एकदम से उसके सारे दांत बाहर गिर पड़े हैं। सुबह उठते ही उसने मौअबरी1 को बुलाया और अपना सपना उसे सुना कर उसका कारण मालूम करना चाहा।


ज़िन्दगी बादशाह सलामत बहुत लम्बी है, इतनी लम्बी है कि हुजूर की आंखांे के सामने ही सारे रिश्तेदार स्वर्ग सिधारेंगे, केवल आप ही तन व तन्हा रह जायेंगे।'' सपने का अर्थ बताने वाले ने सर झुका कर आदर से कहा- सुनकर बादशाह हारून ने हुक़्म किया कि, ''इस शख़्स को सौ कोड़े मारे जायें, ताकि उसे अपने कड़वे और सख़्त शब्दों के उन कोड़ों का एहसास हो जो उसने मेरे दिल पर मारे हैं, मेरे सारे सगे-संबंधी मर जायेंगे तो मैं किसके लिए ज़िन्दा रहूंगा?'' इसी बीच दूसरा ख्वाबगुजार2 बुलाया गया और बादशाह ने उसके सामने रात का सपना दोहराया और ताबीर3 पूछनी चाही।


ख्वाबगुजार बोला, “यह ख्वाब जो बादशाह सलामत ने देखा है वह इशारा करता है कि खुदाबंद ने अधिक लम्बी उमर पाई है। अपने सब ही रिश्तेदारों से?'' सुनकर हारून बादशाह बोला, अर्थ पहले वाले से अलग नहीं हैं परन्तु एक ही अर्थ को बयान करने के अंदाज में ज़मीन-आसमान का फर्क है। इस ख्वाबगुजार को सौ दीनारें दी जाएं।''     -नासिरा शर्मा


 


काबूसनामा: 1. ज्योतिषी जो सपने का अर्थ बताते हैं। 2. सपने का अर्थ बताने वाला 3. सपने का अर्थ


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