बाल विमर्श- गुम होता बचपन

बच्चों का बिखरता बचपन


चिंतित रहती है मैना


बच्चों बिन सूना बगीचा देख कर


पूछ ही लिया तोते ने


मैना को उदास देखकर


क्या है कारण इस उदासी का


मैना कुछ तो बताओ?


हाँ उदास रहती हूँ


कारण तुम से कहती हूँ


बचपन है कारण उदासी का


असमय वयस्क होता बचपन


बच्चों का बिखरता बचपन


देखा नहीं जाता


बच्चों बिन सूने बगीचे खलते हैं


बचपन बंद कमरों में पलते हैं


बच्चे अपनों से दूर जा रहे हैं


बच्चे अपराध लिप्त हो रहे हैं


हाँ मैना तुम्हारी चिंता सत्य है


बच्चों के कलुषित होते आचार विचार


चिंता का विषय बने हैं


लेकिन यह सवाल भी उठता है कि आखिर


कौन है इनका कसूरबार?


शायद बच्चे तो नहीं हैं


बच्चों को जो मिल रहा है


वही तो ले रहे हैं


समाज में व्याप्त कलुषता


समाज के बदलते जीवन मूल्य


बच्चों की परवरिश


घरों के परिवेश


सब है जिम्मेदार


संवाद हीनता है


अकेलापन है


शोषण है


तनाव है


बचपन की हैं चुनौतियाँ


बच्चों का बचपन पहले जैसा नहीं रहा


बच्चे आज बुजुर्गों के साये से महरूम हैं


दादा दादी की कहानियों से वंचित हैं


घरों में रामायण गीता के पाठ कम हैं


घरों में सेवा, त्याग के भाव कम हैं


जीवन के आदर्श क्या हैं?


न घर से न पाठशाला से मिलते हैं


अमीर बपचन सुविधा


गरीब बचपन दुविधा


में पल रहा है


भारी बस्ते हैं


तरह तरह के ट्यूशन हैं


किंतु दिशा हीन हैं


बचपन मासूमियत खोने लगा है


बचपन का निर्मल आंनद गुम होने लगा है


बच्चों की नैतिक शिक्षा


बच्चों की सही गलत का ज्ञान


कौन कराए?


घर जो प्रथम पाठशाला


या स्कूल जो द्वितीय पाठशाला


बच्चों को अभिभावकों सें संस्कार


गुरुओं से व्यवहारिक ज्ञान मिले


पाठ्यक्रम में बदलाव हो


नैतिक मूल्यों से युक्त पाठ्यक्रम हो


बचपन को सुरक्षित बनाना होगा


बच्चों को चरित्रवान बनाना होगा



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