कहानी - गौरैया का घोंसला

“पहले हमारे यहाँ गौरैया बहुत आती थी। झुंड की झुंड दाना चुगने, मिट्टी में लोटने और थाल में भरे पानी में नहाने। नए जोड़ों को जब अंडा देना होता तो उनको घोंसला बनाने की चिन्ता सताने लगती। फड़फड़ा-फड़फड़ा कर घर के कोनों को तलाश करते फिर पसन्द आने पर अपने घोंसले के लिए तिनका, सूखी घास और दूसरी कई चीजें चोंच से उठा-उठाकर जमा करते। एक चहल पहल सी घर के अन्दर बाहर मची रहती। इस कोशिश और तलाश में अक्सर चिड्डे चिड़ियाँ चलते पंखे की पंखुड़ियों से टकरा कर अपनी जान भी दे देते थे। मगर यह बातें तो गुजरे कल की हैं अब तो गौरैया देखने को नहीं मिलती, सिवाए यादों में उड़ने के ”इतना कह कर ताई जी चुप हो गईं और घुटनों में मालिश करने लगीं। ''तो आर्डर कर दीजिए अमाजान से आ जायेगी।” चार साल के चुलबुल ने कहा फिर अपनी जगह से उठते हुए बोला, “पापा से कह कर आता हूं। कितने का आर्डर करना है ताई माँ?''


“यह तेरा पिज्जा और जूते नहीं हैं। यह चिड़िया है चिड़िया।'' कुछ चिढ़े कुछ हँसी भरे स्वर में ताई जी बोलीं।


“आपको कुछ पता तो है नहीं ... जब सब कुछ ऑन लाइन आ सकता है तो चिड़िया क्यों नहीं?''


“मैं अंग्रेजी में एम.ए. हूँ ... कहता है मैं कुछ जानती नहीं हूँ।” ताई जी इस बार हँस पड़ी फिर बोलीं, “कानूनी और गैरकानूनी क्या होता है पता है तुझे?''


चुलबुल मम्मी-पापा से चिड़िया मंगाने को कहने के लिए उछलता कूदता भाग गया।


“पापा आप चिड़ियों का आर्डर कर दें। ताई माँ को हमेशा गौरैया याद आती है।'' चुलबुल ने पापा की गोद में बैठते हुए कहा।


“चिड़िया आर्डर पर नहीं आती है।” पापा बोले।


“क्यों नहीं आती है। गौरैया जरूर मिलेगी।” चुलबुल ने फोन पापा को देते हुए कहा।


''अच्छा रुको!” मम्मी ने वाशिंग मशीन से कपड़े निकालते हुए कहा, “मैं अभी आर्डर करती हूं।''


“कैसे?'' पापा ने ताज्जुब से कहा।


“देखो चुलबुल इस पर तरह-तरह की चिड़ियाएं हैं मगर यह मंगाई नहीं जा सकती हैं, चिड़ियों को पिंजड़े में नहीं रखना चाहिए, इसलिए यह बिकती नहीं। मगर यह विडियो देखो! इसमें कितनी चिड़ियाएं हैं तरह-तरह की। इनके नीचे इन के नाम लिखे हुए हैं इन पर उंगली रखोगे तो यह अपनी बोली में चहचहा उठेगी। यह देखो ... यह देखो।''


चुलबुल ने पहले ताली बजाई फिर फोन लेकर सोफे पर बैठ गया और चिड़ियों की तरह-तरह की आवाजें सुनकर हँसता रहा। वह ताई माँ का आर्डर भी भूल गया।


“फ्लैट में रहने और तीस-पैंतीस मंजिला इमारत में जब हवा खुल कर नहीं बहती तो गौरैया कहाँ से तंग बालकनी में फुदकेगी?'' पापा बोले।


“चाची को आदत तो बड़े से आंगन वाले घर की पड़ी है। उसकी याद तो आती होगी मम्मी ने कहा! इसके बाद दोनों अपने-अपने कामों में व्यस्त हो गए।”


ताई माँ की उम्र ज्यादा नहीं हुई थी मगर दुर्घटना में उनके पैर की हड्डी टूट गई थी। हड्डी जुड़ गई मगर घुटने में कभी-कभी दर्द रहता है। अपने आप्रेशन के चलते वह आगरा से मुम्बई आई हुई है क्योंकि चुलबुल के पापा हड्डियों के डॉक्टर हैं। चुलबुल कहानी सुनने के लालच में ताई माँ के पास आता है, उनकी कहानियों में अलग तरह का रस होता है। दोपहर में जब वह उनके कमरे में गया तो देखा ताई माँ बालकनी के जंगले में हुक फँसा रही हैं।


“आप क्या कर रही हैं?''


“गौरैया को दावत दे रही हूँ।'' यह कह कर उन्होंने उस हुक में दो कटोरे फँसाए। जिसमें पानी और दाना था। चुलबुल उनको यह सब करते बहुत गौर से देख रहा था।


''आपकी गौरैया तो बहुत शरीर है।” चुलबुल हंसा। “वह नहीं आयेगी।'' “वह कैसे?''


''आप ही तो कहानी सुनाती हैं खिचड़ी वाली जिसमें चिड़िया सब खाना खा लेती है और चिड्डे के लिए कुछ नहीं छोड़ती है।''


“देखते हैं भाई। यह कैसी निकलती है। पहले आए तो।” ताई माँ इतना कह कर कमरे में आई और मेज पर रखे फलों में से सेब उठाकर काटने लगीं। तभी जेब में छुपाया मोबाइल चुलबुल ने निकाला और बटन दबाया। चिड़िया की चहचहाहट कमरे में गूंज गई। ताई माँ सेब काटते-काटते रुक गईं। चैंक कर उन्होंने बाल्कनी की तरफ देखा, फिर सर झुकाकर सेब काटने लगीं।


“मेरे कान बज रहे हैं शायद'' ताई ने मन ही मन सोचा फिर सेब की प्लेट चुलबुल की तरफ बढ़ाई और एक टुकड़ा उठाकर खुद खाने लगीं। पल भर ही गुजरा था फिर कोई चहचहाहट उन्हें सुनाई पड़ी। उन्होंने इधर-अधर देखा तो तन्हा बैठा चुलबुल जोर-जोर हँसने लगा।


“क्या हुआ ताई माँ?” चुलबुल ने छेड़ा।


“कुछ भी नहीं। तुम सेब खाओ।'' ताई जी चुलबुल की शरारत समझ गई थीं क्योंकि यह विडियो उन्होंने ही शेयर किया था।


चुलबुल ने देखा ताई पर कोई असर नहीं हुआ तो वह बिस्तर पर उछलने लगा और जोर-जोर गाने लगा -


चूँ चूँ करती आई चिड़िया


दाल का दाना लाई चिड़िया


''शोर नहीं। चुपचाप बैठो। मुझे कुछ काम करना है।” इतना कह कर ताई ने दफ्ती, कैंची और दूसरी जरूरत की चीजें निकालने लगीं। चुलबुल बैठकर उन्हें काम करता देखता रहा फिर वहीं लेटा-लेटा सो गया।


कई दिन गुजर गए। कोई चिड़िया चिड्डा न आया। कुल्हड़ों का दाना पानी ताई बदलती रहीं और जो सुन्दर सा घर उन्होंने चिड़िया के लिए बनाया था वह खाली पड़ा रहा। चुलबुल रोज बालकनी में आकर ताई माँ को निराश बैठा कुछ पढ़ते देखता मगर कुछ भी पूछना उसने छोड़ दिया था। खुद ताई उसे यह कह कर जाने को कहतीं, “जाओ यहाँ से जब चिड़िया आयेगी तो बुला लूंगी।''


चुलबुल लौट जाता मगर उसका भी ध्यान इसी बात पर लगा रहता कि क्या सामने के पेड़ जो दूर से छोटे-छोटे नजर आते हैं उन्हें छोड़ कर कोई चिड़िया यहाँ आयेगी? अपना घोंसला बनाएगी?


सप्ताह भर बाद ताई माँ वापस आगरा चली गईं।


उनके जाने के कई दिन बाद चुलबुल गेस्ट हाऊस में खेलते-खेलते पहुँचा तो वह चैंक पड़ा। चिड़ियों का एक जोड़ा रेलिंग पर बैठा चहचहा रहा था। धीरे-धीरे वह पास गया


और दरवाजे के शीशे से दीवार पर टाँगे घर को देखा। जहाँ घोंसला बना हुआ था। तिनके बाहर निकले नजर आ रहे थे। कुछ बालकनी की जमीन पर गिरे हुए थे। चुलबुल दम साधे दोनों गौरैयों को चूं धूं करते देख रहा था।



 


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