मेरा बच्चा
मेरा बच्चा आज इम्तिहान देने गया है।
कक्षा दो में पढ़ता है मेरा बेटा
इम्तिहान से एक दिन क़बल
यानी कल, उसका चेहरा देखा मैंने ध्यान से
इम्तिहान का तनाव उसके चेहरे पर चस्पाँ था
उसकी वो निश्छल, धवल, चंचल मुस्कान
सिरे से नदारद थी चेहरे से
जिसे देखने का अभ्यस्त था मैं।
जिगर के टुकड़े, अपने मासूम के मुख पर
व्यापे इस तनाव को देखकर, सच,
मेरा मन छलनी-छलनी हो गया।
मैं उस व्यवस्था को कोस रहा था
जो एक मासूम से उसकी मासूमियत
छीनकर उसे इस कदर गंभीर बना देती है
और एक पवित्र और निष्पाप कमल-सरीखे
खिले बचपन को मुरझा देती है।
आग लगे उस इम्तिहान में
जो मेरे बेटे में क्षणभर के लिए भी
मासूमियत और भोलेपन और नादानी का ख़जाना
छीन लेता है और उसे उम्रदराज-सी
दुश्ंिचता और तनाव के जाल में डाल देता है!