मेरा बेटा हर रोज़ एक हिमालय ढोता है
मेरा बेटा हर रोज़ एक हिमालय ढोता है
इस तरह कतरा-कतरा वह अपना बचपन खोता है
मेरा बेटा हर रोज़ एक हिमालय ढोता है।
मेरे बेटे के बस्ते में जीवन में तरक्की की कुछ
जड़ी-बूटियाँ भरी हैं
किताबों का यह दुस्सह भार-मानो शिक्षा व्यवस्था में
त्रुटियाँ भरी हैं
विज्ञान, गणित, भूगोल, समाज की संजीवनी है इसमें
तो गाँधी, नेहरू, सुभाष, भगत की जीवनी भी इसमें
स्कूल से लेकर घर तक
उसे ये संजीवीनियाँ सुघाई जाती हैं, चटाई जाती हैं
बच्चे की बुनियाद मज़बूत हो इसलिए उसे
अंगरेजी में पोएम और राइम्स रटाई जाती हैं।
मेरा बेटा हर रोज़ एक हिमालय ढोता है।
मेरे बेटे के बस्ते रूपी हिमालय में मैडम जी की
छड़ी, चाक, डाँट-फटकार, मार-पिटाई होती है
थोड़ी-थोड़ी लिखाई तो थोड़ी-थोड़ी पढ़ाई होती है।
मेरा बेटा हर रोज़ एक हिमालय ढोता है
मानो अपने उज्ज्वल भविष्य का बिरवा बोता है।
मेरे बेटे के हिमालय में उसके खिलौने कहीं गुम जाते हैं
उसकी मासूमियत, उसकी हँसी की खनक कुछ कम हो जाती है।
मेरा बेटा अपनी पीठ पर हर रोज़ सुनहरे
भविष्य के नाम पर एक हिमालय ढोता है
पर मुझे लगता है, भविष्य की जगह वह
अपने बचपन के घायल सपनों का ज़ख़्म बोता है।