सीख अनोखी - बाल नाटक
एक स्कूल की छठी कक्षा. बच्चों की उम्र बारह-तेरह साल. कुछ लड़के और कुछ लड़कियां. धमा-चैकड़ी में मस्त हैं कि महिला-शिक्षक का प्रवेश. शिक्षक के प्रवेश करते ही सभी बच्चे अपनी-अपनी सीट पर खड़े होकरः
सभी बच्चेः (समवेत) नमस्ते मैम्म !
(महिला शिक्षक अपने निर्धारित स्थान पर जाकर एक निगाह सभी बच्चों पर डालती है और उन्हें बैठ जाने का संकेत करती है . सभी अपनी-अपनी जगह पर बैठ जाते हैं.)
शिक्षकाः हाँ तो कल हम क्या कर रहे थे (एक लड़की अपना हाथ उठाती है) यस
छात्राः मैम, कबीर पर ...पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ
शिक्षिकाः ओ के, शुरू करते हैं
एक छात्रः पढ़-पढ़ के बोर हो गए मैम्म, आज कोई एक्टिविटी करवाईये न.
सभी छात्र-छात्राएः (तेज आवाज़ में) यस मैम्म
शिक्षिकाः इम्तिहान कौन देगा?
सभीः हम मैम्म
शिक्षिकाः तो पढ़ेगा कौन?
सभीः हम मैम्म, आज एक्टिविटी
शिक्षिकाः सब एक्टिविटी के लिए तैयार
सभीः यस मैम्म
शिक्षिकाः मोहित, बताओ तुम किस किससे प्यार करते हो?
मोहितः मम्मी, पापा,रोहन, दीपिका, और सबसे
शिक्षिकाः और नफरत
मोहितः नहीं
शिक्षिकाः चलो नापसंद किस-किसको करते हो?
(मोहित खामोश रहता है)
शिक्षिकाः कोई और बताएगा (कक्षा में खामोशी) तुम.. कोई नहीं बोलेगा, पर मैं जानती हूँ कि कौन किससे....तुम्हारी यही एक्टिविटी है...नहीं समझे, समझाती हूँ...तुम सब घर जाकर कुछ आलू लोगे और हर आलू पर उसका नाम लिखोगे जिससे तुम नफरत करते या पसंद नहीं करते और कल अपने-अपने आलू लाकर मुझे दिखाओगे...इज दैट राईट?
सभीः यस मैम्म
शिक्षिकाः चलो अब आज का पाठ पढ़ो
(सभी कुछ हैरान से होकर अपनी-अपनी किताब खोल लेते हैं) दृश्य लोप
दृश्य दो
अगला दिन. वही क्लास, वही बच्चे, वही शिक्षिका.
शिक्षिकाः कौन-कौन लाया आलू
(सभी बच्चे हाथ उठाते हैं)
शिक्षिकाः हर आलू पर किसका नाम? रोहन तुम्हारे पास कितने आलू?
रोहनः सात
शिक्षिकाः ओ तो इसका मतलब हुआ कि तुम सात लोगों से नफरत करते हो, ऐसा क्यों?
रोहनः मैम्म यह भी बताना पड़ेगा
शिक्षिकाः ओ के , रहने दो, मोहित तुम्हारे पास कितने आलू?
मोहितः मैम्म दस
शिक्षिकाः ओगॉड! और तुम सब
(इसके बाद तो एक के बाद एक बच्चों में यह बताने की होड़ लग जाती है कि किसके पास कितने आलू हैं. कुछ बच्चे बढ़-बढ़ कर ऐसे बताते हैं जैसे उन्होंने अपने आलुओं पर कुछ नाम लिख-लिख कर कोई बड़ा महान काम किया है)
शिवानीः मेरे आलू देखिये, मैंने कैसे लिखे हैं नाम (अपना एक आलू दिखाती है. आलू पर एक नाम खुदा है और उस नामपर एक खंजर बना हुआ है. देखा-देखी सभी बच्चे बढ़-चढ़ कर अपने-अपने आलू दिखाने लगते हैं. किसी के आलू पर खुदे नाम की मूंछें निकली हुई हैं, किसी नाम के साथ कव्वा बना हुआ है. यानी बच्चों की कल्पना के अलग-अलग आयाम उन आलुओं पर लिखे नामों के साथ नजर आते हैं)
शिवानीः आलू दूं....
शिक्षिकाः इस एक्टिविटी के नंबर तब मिलेंगे, जब तुम सब इन आलुओं को कुछ दिन अपने पास रखोगे....
शिवानीः (हैरानी से ) अपने पास ?
शिक्षिकाः हाँ अपने पास, घर में भी, और रोज इन्हें स्कूल लाओगे
मोहितः क्या मैम्म, घर में कैसे?
शिक्षिकाः जैसे भी...अपने बस्ते से इन्हें बाहर नहीं निकालोगे
एक छात्रः मैम्म, यह भी क्या एक्टिविटी हुई, आलुओं पर नाम !
शिक्षकाः यही एक्टिविटी है और अब मैं तुमसे एक सप्ताह के बाद बात करूंगी और एक बात जानलो, जो अपने पास जितने दिन ज्यादा आलू रखेगा, उसे उतने ही ज्यादा नंबर मिलेंगे. सब समझ गए न, अब हम एक हफ्ते के बाद मिलते हैं.
अँधेरा और नेपथ्य से स्वर: और फिर एक सप्ताह के बाद
वही कक्षा, वही बच्चे. सभी के चेहरों पर परेशानी. सभी के हाव भाव बता रहे हैं की बस्तों में सड़ते आलुओं की गंध उनसे बर्दाश्त नहीं हो रही.
शिक्षिका का प्रवेश. सभी बच्चे खड़े होकर दबे और टूटे स्वर में कहते हैं “नमस्ते मैम्म'. शिक्षिका नमस्ते का जवाब देकर उन्हें बैठने के लिए कहती है. सभी बच्चे बैठ जाते हैं.
रोहनः मैम्म, यह आलू और कब तक हम रखेंगे अपने बस्ते में
दीपिकाः मुझसे तो आलुओं की बदबू बर्दाश्त नहीं हो रही
मोहितः मेरे पापा बहुत नाराज हैं मुझसे, कहते हैं यह क्या एक्टिविटी हुई.. वे आपसे मिलना चाहते हैं मैम्म.
शिक्षिकाः हाँ, जरूर, और भी जो पेरेंट्स मुझसे मिलना चाहते हों, उन्हें कल बुलालो...लेकिन पहले आप सब मुझे एक सवाल का जवाब दोगे, दोगे ना?
सभीः यस मैम्म
शिक्षिकाः तुममें क्या अभी भी कोई है जो इन सड़े हुए आलुओं को अपने पास रखना चाहता है
सभीः नौ मैम्म, इन्हें हटाओ, नम्बर दे दो बस
शिक्षिकाः बच्चो, मेरी बात ध्यान से सुनना और समझना कि यही तुम्हारे नंबर हैं ...मैं बहुत दिनों से देख रही थी तुम सबको, एक दूसरे की शिकायतें और एक दूसरे से नफरत...बच्चो!मैं तुम्हें यही समझाना चाहती थी की नफरत सड़े हुए आलुओं की तरह से है. तुमने एक सप्ताह तक नफरत से भरे आलुओं का भार ढोया और उन्हें सड़ने दिया...नफरत ऐसा ही सड़ा हुआ भाव है..इसे अपने पर मत लादो और ना इसकी बदबू लो...सोचो कि तुम लोग एक सप्ताह में ही परेशान हो गए और जो लोग सारा जीवन किसी न किसी से नफरत करते रहते हैं, उनका क्या हाल होता होगा, चलो अब सब अपने-अपने आलू बाहर फैंक कर आओ और इस एक्टिविटी से जो सबक मिला, उसे याद रखो, ठीक!
(सभी बच्चे हतप्रभ से एक दूसरे की ओर देखते हैं और जल्दी से जल्दी बाहर जाकर अपने-अपने बस्ते आलुओं से खाली कर देते हैं.)
शिक्षिकाः चलो बच्चो, अब मेरे साथ गीत गाओ, मेरे पीछे-पीछे बोलना
शिक्षिकाः हम नहीं बनेंगे इस दुनिया में, आलू सड़े हुए, आलू सड़े हुए
बच्चे: हम नहीं बनेंगे इस दुनिया में, आलू सड़े हुए, आलू सड़े हुए
शिक्षकाः प्यार भरे हीरे हैं हम तो, मन में जड़े हुए, मन में जड़े हुए
बच्चेः प्यार भरे हीरे हैं हम तो, मन में जड़े हुए, मन में जड़े हुए
शिक्षिकाः छोटी मोटी बातें तो होती हैं जीवन में , होती हैं जीवन में
बच्चेः छोटी मोटी बातें तो होती हैं जीवन में, होती हैं जीवन में
शिक्षिकाः मामूली सी बातों पर क्यों हम रहें अड़े हुए , अड़े हुए
बच्चेः मामूली सी बातों पर हम क्यों रहें अड़े हुए, अड़े हुए
शिक्षिकाः प्यार भरे हीरे हैं हम तो, मन में जड़े हुए, मन में जड़े हुए.
सभी समवेत स्वर में यही पंक्ति बार-बार दोहराते हैं.
(पटाक्षेप)