बात में वजन

सार्थक कथन


बात मेंवजन


 


पाँव भूमि पर


हाथ में गगन


 


कर्म से बढ़े-


ब्याज-मूलधन


 


नींव यदि सही


तो सही भवन


 


कलह की जगह


रोपिये अमन


 


कलुमयी मन


व्यर्थ हैहवन


 


हक-हकूक पर


बाँधिये कफन


 


जातिवाद को


कीजिये दफन


 


मन हिला गया


तेरा बागपन


 


प्यास-इम्तहां


ओस आचमन


 


शान्ति की डगर


राह पोखरन


 


सत्य पर अटल


साधु के वचन


 


सन्त भेष में


सैकड़ों मदन


 


हाँसले बढ़े-


क्षीण संगठन


 


प्रेम से कहो


मादरे वतन


 


देश में बढ़े


प्यार का चलन


 


चैन से आप सोते रहे


किन्तु हम लोग रोते रहे


 


हमको अपनी खबर ही नहीं-


आपका बोझ ढोते रहे


 


प्रेम का खेत बंजर यहाँ-


हल कहाँ आप जोतेरहे


 


आप वैसे बड़े नेक हैं-


किन्तु कांटे चुभाते रहे


 


जिनका दादा लुटेरा में थे-


उनके अय्याश पोते रहे


 


कामनाओं में भटका किये-


सिद्धियाँ आप खोते रहे


 


धर्म ने जो पढ़ाया पढ़ा-


धर्म के आप तोते रहे।



 


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