ग़ज़लें


प्यार में सौदा नहीं बस प्यार होना चाहिये


आदमी कैसा भी हो दिलदार होना चाहिये


 


अब सुदामा और कृष्ण इस ज़माने में कहाँ


दोस्ती ज़िन्दा रहे एतबार होना चाहिये


 


सुर्खियों में छप रहा है हर घोटाला आजकल


रहनुमा का अब नया किरदार होना चाहिये


 


खुदशनासी बेच देंगे चन्द सिक्कों के लिये


बिकने को तैयार हैं बाज़ार होना चाहिये


 


प्यार में ग़र चाहते हो दोस्तो पाकिज़गी


फर्द के किरदार का मैयार होना चाहिये


 


चन्द लोगों ने है लूटा जिस तरा इस देश को


आज हर इन्सान को बेदार होना चाहिए


 


ज़र्द पत्ते हुये तो पेड़ गिरा देता है


वक़्त नाज़्ाुक हो तो हर शख़्स भुला देता है


 


ज़िन्दगी क्या है कभी हुस्न से जो पूछ लिया


मुट्ठी भर ख़ाक हवाओं में उड़ा देता हैं


 


पेट की भूख हो या हिज्र का रोना धोना


दर्द कैसा भी हो इन्सा को रुला देता है


 


जब कभी अब्रे-करम बन के बरसता है


तपते सहराओं की भी प्यास बुझा देता है


 


फैज़ पाते हैं वही लोग जो ख़ुद शीशा हैं


ऐसे वैसों को तो वो शीशा दिखा देता है


 


उसकी रहमत से जिये जाता हूँ 'सागर'


जो भी देता है मुझे मेरा ख़ुदा देता है


 


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