ग़ज़लें
कौन सीरत पे ध्यान देता है
आईना जब बयान देता है
मेरा किरदार इस ज़माने में
बारहा इम्तिहान देता है
पंख अपनी जगह पे वाज़िब हैं
हौसला भी उड़ान देता है
जितने मग़रूर आप होते हैं
मौला उतनी ढलान देता है
बीती बातों को वो भुला के मुझे
आज फिर से जुबान देता है
तेरे बदले में किस तरह ले लूँ
वो तो सारा ज़हान देता है
हादिसातों की कहानी कम नहीं
हौसलों में भी रवानी कम नहीं
मेरे बाजू हैं मुसलसल काम पर
यू समन्दर में भी पानी कम नहीं
साथ तेरे जो गुज़ारी है कभी
चार दिन की ज़िन्दगानी कम नहीं
प्यार हमको आपसे था ही नहीं
आपकी ये सचबयानी कम नहीं
हम अँधेरों की कहानी क्यों कहें
साथ में यादें सुहानी कम नहीं
यूँ परवतों से उतरती है शान पानी की,
के गीत छेड़ रही है जुबान पानी की।
ये जो बादल है परिन्दे हैं अर्श पर फैले,
या कि निकली है सफ़र पे उड़ान पानी की।
बढ़ी जो प्यास तो दर्या ने भी मुँह मोड़ लिया,
लगी हैं जाल बिछाने दुकान पानी की।
ये कहीं राह में बेसुध न होके गिर जाए,
यूँ बढ़ रही है मुसलसल थकान पानी की।
ये शह्र बढ़ रहे हैं ले के क़ातिलों का हुजूम,
मुझे है डर कि ये ले लें न जान पानी की।
बड़ी मासूमियत से सादगी से बात करता है
मेरा किरदार जब भी ज़िंदगी से बात करता है
बताया है किसी ने जल्द ही ये सूख जाएगी,
तभी से मन मेरा घण्टों नदी से बात करता है
कभी जो तीरगी मन को हमारे घेर लेती है
तो उठ के हौसला तब रौशनी से बात करता है
नसीहत देर तक देती है माँ उसको ज़माने की
कोई बच्चा कभी जो अजनबी से बात करता है
मैं कोशिश तो बहुत करता हूँ उसको जान लूँ लेकिन
वो मिलने पर बड़ी कारीगरी से बात करता है
शरारत देखती है शक्ल बचपन की उदासी से
ये बचपन जब कभी संजीदगी से बात करता है