ग़ज़लें
वादा नहीं यकीन दिया कर
सपनों को रंगीन किया कर
लाले नहीं पड़े खुशियों के
मन को ना गमगीन किया कर
इस रिश्ते का स्वाद है फीका
नमक बढ़ा नमकीन किया कर
किस-किस को समझाएगा तू
जिह्वा राम-रहीम किया कर
बेज़ारी घुटनों पर होगी
ख़ुद में ख़ुद को लीन किया कर
टीस की आग पे उबल रहा है
दर्द का चेहरा बदल रहा है
छांव, बसेरा, प्यार इबादत
सिर्फ इन्हीं पर दखल रहा है
जाने किसी की दुआ लगी जो
पत्थर का दिल पिघल रहा है
मंजिल तक जाने की ज़िद में
गिरकर कोई संभल रहा है
उसकी बात संवर जायेगी
जो अंतस का धवल रहा है
सांच को आंच नहीं होनी है
बेमतलब तू दहल रहा है
कब तक बेजान संग से फरियाद हम करें
नाहक क्यों अपना वक़्त ही बर्बाद हम करें
दम तोड़ती उम्मीदें हैं शीशे के घर में आज
क्यों दायरों से ख़ुद को ना आज़ाद हम करें
पंछी ने छोड़ा था जहाँ वर्षों से चहकना
उस घोंसले को आज से आबाद हम करें
काग़ज़ की छतरियाँ तो है श्रृंगार के लिए
मौसम के इस मिज़ाज को भी याद हम करें
सबकी ख़ुशी में झूम तो लेती हैं मंजुल
अपने लिए भी दिल को कभी शाद हम करें
इश्क़ में हासिल तमन्ना की हक़ीक़त क्या लिखें
बेवफाई की मुकद्दर से शिकायत क्या लिखें
हम मुहब्बत के नये अंजाम से वाक़िफ हुए
अपने दामन पर ज़माने की बग़ावत क्या लिखें
आप क्या बेलौस चाहत का सिला देंगे कभी
गर नहीं तो पत्थरों पर हम इबारत क्या लिखें
सब बतादेगा तुम्हें माज़ी हमारा एक दिन
इसकी ख़ातिर आज हम रूदादे-चाहत क्या लिखें
तितलियों से कह दो 'मंजुल' बाग में शिरकत करें
हम गुलों की पंखुड़ी पर अब मुहब्बत क्या लिखें