ग़ज़लें
पूरी न हुई बात, चलो फिर कभी सही
छोटी थी मुलाक़ात, चलो फिर कभी सही
दे पाया कब जबाव ज़माने की जिरह का
मुश्किल थे सवालात, चलो फिर कभी सही
इस हफ़्ते का वादा था मगर हफ़्ते में दिन तो
होते हैं फ़क़त सात, चलो फिर कभी सही
आज़ादी की इक सांस तक लेने नहीं देती
रिश्तों की हवालात, चलो फिर कभी सही
उस ने तो महज़ जिस्म में घोंपी थी कटारी
ज़ख़्मी हुए जज़्बात, चलो फिर कभी सही
मेहंदी की तरह हम में कोई रंग न आया
पिसते रहे दिन-रात, चलो फिर कभी सही
वादों के घटाटोप से उबरे तो ये पाया
बदले नहीं हालात, चलो फिर कभी सही
मत डालेंगे हम तो सदा सच्चाई के हक़ में
खाई है सदा मात, चलो फिर कभी सही
उन की तो यही ज़िद थी कि दामन पसारिए
डाली नहीं सौग़ात, चलो फिर कभी सही
राही जी कभी अपने गरेबान में झांकों
इत्ती सी है औक़ात, चलो फिर कभी सही
चाहे दुनिया ये आनी-जानी है
इस के कण-कण में इक कहानी है
दिल में जो दर्द जैसा रहता है
वो तेरे प्यार की निशानी है
हम सफ़ाई पसन्द हैं इतने
हमने सड़कों की ख़ाक छानी है
लोग अपने की भी नहीं सुनते
हम ने ग़ैरों की बात मानी है
भाई-बहनों में बांटना खुशियाँ
रीत अपनी ये ख़ानदानी है
शेर मेरा वो सब से अच्छा है
याद जो आप को ज़बानी है
मेरे सपने बहा नहीं सकता
आँख से बह रहा जो पानी है
फूल कांटों में जो खिला 'राही'
उसकी ख़ुशबू बड़ी सुहानी है