ग़ज़लें
बचायें हम मिली जो उस अमानत को कसम खाओ......
न भूलोगे शहीदों की शहादत को कसम खाओ......
जन्म-भू है हमारी ये, हमें दिल-जान से प्यारी......
बचालेंगे बचानी है मुहब्बत को कसम खाओ......
हमारा देश है आज़ाद, हम भूले नहीं बातें......
मिटेंगे हम सभी इसकी हिफ़ाज़त को कसम खाओ......
लुटाते जान सरहद पर, उन्हें प्रणाम करते हैं......
बदल दंे भ्रष्ट होती इस सियासत को कसम खाओ......
नहीं मौसम हमें मदहोश ये करता हुआ भाता......
रहें यूँ ही बहारें, अब सलामत को कसम खाओ......
कदम जो भी रखे दुश्मन, यहाँ की सरज़मीं पर तो......
भरो सब जोश बाँहों में, बग़ावत को कसम खाओ......
धरम के नाम पर 'रश्मि' मज़हबी दंगे करें अब जो......
समझ लो तुम मिटाने की अदावत को कसम खाओ......
निभ जाये, करते हैं तैयारी......
जब से सर आई ज़िम्मेदारी......
बातों के मोती तोलें हम तो......
क्या कर लेगा, आकर व्यापारी......
सुन लेना सबकी, करना मन की......
मानेगी तुमको, दुनिया सारी......
जीना है दिल में, खुशियाँ भर कर......
मत समझाकर, जीना लाचारी......
दुःख को राई-सा, कर लेना तू......
सुख से तू कर मत, ऐसी यारी......
टकराते हैं हम, तूफ़ानों से......
हिम्मत हमने बोलो, कब हारी......
कोई कितना भी कुछ, बोले 'रश्मि'......
करना मत तुम फिर, मन को भारी......