कहाँ जी पाते हैं खुद से, अदावत जिनके मन में है

कहाँ जी पाते हैं ख़ुद से, अदावत जिनके मन में है


वो अपने भी नहीं होते, सियासत जिनके मन में है


 


हमें तो इश्क़ है, हम तो उसी के दर पे बैठेंगे


वो बुतख़ाने चले जाएँ, इबादत जिनके मन में है


 


मुहब्बत से ही निकला है, मुदावा1 जब कभी निकला


कहाँ हल कोई दे पाते, तिजारत जिनके मन में है


 


हुकूमत की अटारी पर, धरम-ईमान गिरवी रख


सिंहासन पर वही बैठे कि नफ़रत जिनके मन में है


 


ये किस अलगाव की बच्चों को ही पट्टी पढ़ा डाली


वो उनके क्यों न हो जाएँ, बग़ावत जिनके मन में है


 


'शलभ' का इश्क़ देखो और ये दीवानगी देखो


उन्हीं के मन में जा बैठा, मसाफ़त2 जिनके मन में है


 



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