कुछ भी तो दुश्वार नहीं था
कुछ भी तो दुश्वार नहीं था
बस तुमको स्वीकार नहीं था
ग़ैर के दर पर जाता मैं क्यों
ऐसा भी लाचार नहीं था
पार तो हम भी लग जाते पर
हाथों में पतवार नहीं था
तुम को जीत न पाया तो क्या
इश्क़़ मेरा हथियार नहीं था
मैं भी तुम-सा ही था रक़ीबो
मैं कोई ग़द्दार नहीं था
कुछ तो मुझको इश्क़ ने मारा
कुछ मैं भी दमदार नहीं था
अपनों से था, जितना था मैं
दुनिया से बेज़ार नहीं था
ख़ूब उड़ाईं तुमने ख़बरें
जिनका कुछ आधार नहीं था
समझोगे कल बात 'शलभ' की
शाइर था अख़बार नहीं था