क़त्अे और शे’र
चारों तरफ धुआं-धुआं, तुम खैर से तो हो,
हां खैरियत है सब यहां, तुम खैर से तो हो
हर इक खबर से उठ रही हैं लपटें आग की
ये तो कहो कि हो कहां, तुम खैर से तो हो
सौ गुना जो हमको कर दे बेखुदी होती है वो,
उम्र भर मुरझाये न जो ताज़गी होती है वो
ज़िंदगी में आती है जो मौत कहते हैं उसे
बाद मरने के रहे जो ज़िंदगी होती है वो
कोई सूरत सदा आंखों में बसाये रखना
नाउमीदी में भी उम्मीद जगाये रखना
बड़ा दुःख देगा ये छोड़ोगे जो इसको तन्हा
दिल को लाज़िम है किसी काम लगाये रखना
माहौल खुशगवार फिर इक बार हो गया,
गुलशन तुम्हारे आने से गुलज़ार हो गया
इससे हसीन दिन भी कोई होगा और क्या
मुद्दत के बाद यार का दीदार हो गया
गुनगुनी धूप कभी ठंडी हवा हो जाऊं
लादवा दर्द की यारब मैं दवा हो जाऊं
कल फरिश्तों को सुना हमने ये कहते,
एक ज़र्रे की है ख्वाहिश कि खुदा हो जाऊं
वो शख्स रहता है वहीं वो घर अभी भी है
वो ही गमक वो झूमता मंज़र अभी भी है
मुद्दत हुई है छत उड़े दीवारें ढह चुकी
लेकिन मेरी निगाह में वो दर अभी भी है
सब मुश्किलात वक्त़ की आसान हो गयीं
मेरे रकीब को भी मुझसे प्यार हो गया
हंसना मुझे जो आ गया है अपने हाल पर,
सरहद से हंसने-रोने की मैं पार हो गया
ज़हर पीना लाज़मी है ज़िंदगी के वास्ते,
मरके जीना लाज़मी है ज़िंदगी के वास्ते
जख़्म खाना नित नये और उनको फिर
रोज़ सीना लाज़मी है जिं़दगी के वास्ते
वो जो सच्चे फकीर होते हैं
वो ही सचमुच अमीर होते हैं
वो जो होते नहीं बज़ाहिर कुछ
उनमें नानक-कबीर होते हैं
वो बयां में ज़ोर है कि बंदा घबराने लगे,
इस तरह से झूठ बोले सच भी शर्माने लगे
मौसम का रंग वक्त़ की रफतार देखकर,
बदला बयान यारों ने दरबार देखकर
ज्यों खिलोने कांच के रक्खे हुए बाज़ार में,
रहते हैं अकड़े हुए कुछ लोग इस संसार में
महान होने ही वाला हूं दोस्तो, अब मैं,
अब आप लोग मेरा एतबार मत करना
खलाओं में तकता खुदा रह गया
बिन आदम के जन्नत में क्या रह गया