तुम्हारी जुस्तजू है और मैं हूँ

तुम्हारी जुस्तजू1 है और मैं हूँ


यही इक आरजू2 है और मैं हूँ


 


यही है इश्क़ की तेरे इनायत3


कि तू मेरा ख़ुदा है और मैं हूँ


 


तेरे अक्सों में वो तनवीर4 देखू


मुक़द्दस5 आईना है और मैं हूँ


 


तुम्हारे हिज्र6 में जलते ही रहना


यही अपनी सज़ा है और मैं हूँ


 


बहुत काँटों भरा मंज़िल का रस्ता


यही इक रास्ता है और मैं हूँ


 


'शलभ' की वेदना को, समझो यारो


सभी कुछ अनकहा है और मैं हूँ



Popular posts from this blog

अभिशप्त कहानी

हिन्दी का वैश्विक महत्व

भारतीय साहित्य में अन्तर्निहित जीवन-मूल्य